हरि शंकर गोयल

Horror Fantasy Thriller

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हरि शंकर गोयल

Horror Fantasy Thriller

भुतहा मकान भाग 7 :

भुतहा मकान भाग 7 :

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सुबह हो चुकी थी। राजन की आंख खुली तो वह अपने बिस्तर पर पड़ा हुआ था। उसे बीती रात की एक एक करके सारी घटनाएं याद आ गई। कल रात एक साथ दो दो भूतों के दर्शन हुए थे उसे। दोनों एक जैसे लग रहे थे। सिर कटे हुए थे दोनों के। बाकी धड़ एक जैसा था। कल पहली बार उसने अपने बदन पर किसी भूत का स्पर्श महसूस किया था। वह उस घटना को याद करते ही सिहर उठा था। उसका हाथ अनायास ही अपनी गर्दन पर चला गया था। उसे हल्की सी खरोंच आई थी। उसने आईने में खुद को देखा तो गर्दन पर खरोंच के निशान स्पष्ट नजर आ रहे थे। 

उसे अब कुछ कुछ समझ आ रहा था। उसने सोचा कि डरने से कुछ हासिल नहीं होता है , मुकाबला करने से होता है। हमारे शास्त्र भी यही कहते हैं कि उठ, युद्ध कर। कापुरुष की तरह जीने के फजाय वीरों की तरह मरने से स्वर्ग प्राप्त होता है। इन भूतों ने अपनी मनमानी खूब कर ली। अब उन्हें सबक सिखाना होगा। पर कैसे ? थोड़ी देर तक उसने ठंडे दिमाग से सोचा फिर दृढ निश्चय किया। उस ने इन भूतों से निपटने का प्लान बनाया। उसने आज की छुट्टी ले ली। सबसे पहले तो उसने एक बढिया से इनवर्टर की व्यवस्था की। अब यदि लाइट चली भी जाये तो इनवर्टर से पुन : लाइट जल जायेंगी। इससे अंधेरा नहीं होगा। उसके प्लान का यह सबसे मुख्य बिन्दु था। उसे तो ताज्जुब हो रहा था कि उसने अब तक इन्वर्टर लिया क्यों नहीं ? 

भूतों का साम्राज्य अंधेरे में ही होता है। भूतों की शक्ति अंधेरे में ही प्रबल होती है। उजालों में कभी किसी ने भूत नहीं देखा है क्या आज तक ? भूत अंधेरे में ही पैदा होते हैं , फलते फूलते हैं। इसलिए भूतों की जान अंधेरे में ही होती है। राजन ने इस अंधेरे पर ही चोट कर दी थी आज। 

अब उसका ध्यान गया खिड़की पर। खिड़की में शीशे फिट थे इस कारण कमरे से बाहर का और बाहर से अंदर का दृश्य दिखता रहता था। उसने खिड़कियों पर पर्दे लगा दिए। अब बाहर का कुछ भी दिखाई नहीं देता था। अब खिड़की के बाहर खड़े हुए किसी भी व्यक्ति को देखा नहीं जा सकता था। 

उसे याद आया कि भूत घर के अंदर तक आया था और उसकी गर्दन पर हाथ भी फिराया था। उसने कुछ सोच विचार कर एक कारपेन्टर बुलवाया और दरवाजों में कुछ कुछ काम करवाया। इसके अलावा एक सीसीटीवी लेकर आया और घर के बाहर और भीतर उसने कैमरे फिट करवा दिए। मॉनीटर अपने कक्ष में रखवा लिया था। घर के बाहर की गतिविधियों पर अब वह नजर रख सकता था।

इन सब कामों को करवाने के बाद वह दिन में थोड़ी देर के लिए सो गया था। आज रात उसे जागना था और "भूत लीला" भी देखनी थी। और वह भी अच्छी तरह से। इसलिए एक बढिया सी नींद निकाल ली थी उसने। नींद निकालने के बाद वह तन और मन से अपने आपको तरोताजा महसूस करने लगा था। 

अब वह रात का इंतजार करने लगा। परिस्तिथियां कैसे बदल जाती हैं , राजन उसका उदाहरण है। जिस रात से पहले उसे डर लगता था आज वह रात होने का इंतजार कर रहा था। आखिर रात भी हुई और राजन का इंतजार भी खत्महुआ। राजन खाना खाकर रामचरित मानस पढने बैठ गया। उसने पूरे घर की लाइटें जला दीं और बाकी के दूसरे इंतजाम भी कर दिए थे। 

समय धीरे धीरे गुजरने लगा। उसकी निगाह बार बार घड़ी की सुइयों पर जाती और लौट आती थी। आज उसके दिल में धुकधुकी नहीं थी बल्कि कौतुहल था। जैसे ही रात के बारह बजे , अचानक लाइट चली गई और उसे भूतों की पदचाप सुनाई देने लगी। राजन कुछ सोचता इससे पहले ही लाइट आ गई। इन्वर्टर ने अपना काम शुरु कर दिया था। राजन की सांस में सांस आई। उसके अधरों पर एक मुस्कान बिखर गई। अब उजाले में कैसे आएगा भूत ?

उसने अपना सारा फोकस सामने रखे सीसीटीवी के मॉनीटर पर कर लिया। भूतों की पदचाप लगातार सुनाई दे रही थी। बीच बीच में उनका भयानक अट्टहास भी सुनाई पड़ता था। मगर आज भूत दिखाई नहीं दे रहा था। दोनों भूतों में से एक भी भूत नजर नहीं आ रहा था। भूतों के चलने की आवाजें तो आ रही थी मगर भूत नजर नहीं आ रहे थे। आज दरवाजे के चरमराने की आवाज भी नहीं आ रही थी। लाइट आ ही रही थी। उजाले में भूत को नहीं दिखना था , इसलिए नहीं दिखा। उसने बार बार आगे पीछे, दायें बायें सब तरफ देख लिया मगर भूत कहीं भी नहीं दिखे। आज तो दरवाजे भी नहीं खुले वरना रोज अपने आप ही खुल जाते थे। 

राजन ने राहत की सांस ली। सब कुछ उसकी योजना के अनुरूप हो रहा था। आज उसे पहली बार भूतों से डर नहीं लग रहा था बल्कि उन्हें छकाने में आनंद आ रहा था। जब मनुष्य का दिमाग काम करता है और उसे खुद पर विश्वास होता है तो डर न जाने कहां गायब हो जाता है। 

उसने मॉनीटर पर अपनी आंखें गढा रखी थी। उसे पड़ोस के बरामदे में किसी के होने का आभास हुआ। उसने उस कैमरे पर फोकस किया और उसे जब जूम किया तो पता चला कि पडोस की नीलू की बेटी रमा थी वह। इतनी रात में वह वहां क्या कर रही है ? यह प्रश्न उसके दिमाग में कौंधा मगर जवाब उसके पास नहीं था। इसका जवाब तो रमा ही दे सकती थी। 

रमा के हाथ में मोबाइल था और वह किसी से बात कर,रही थी। शायद उसका बॉयफ्रेंड हो , राजन ने सोचा। पर रमा के चेहरे पर खीझ के भाव थे। उसका चेहरा गुस्से से लाल होने लगा था। राजन की कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है ? 

राजन ने उन भूतों का बहुत देर तक इंतजार किया मगर भूत नहीं आये। धीरे धीरे उनकी पदचाप भी आनी बंद हो गई। फिर राजन भी तान खूंटी सो गया। आज उसे वाकई चैन की नींद आई थी।

क्रमश : 


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