भटकती राहें
भटकती राहें
मध्यम वर्गीय परिवार की नेहा पढ़ाई में बहुत तेज़ थी ,अपने घर और स्कूल के अलावा कुछ सहेलियां ही उसकी दुनिया थी।
फैशन और आज की रिवायतों से दूर।
कुशाग्र बुद्धि होने के कारण ही इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला हो गया और पिता ने भी उसकी पढ़ाई को पूरा करवाने की ठान ली।
यह प्रतिष्ठित कॉलेज था जहाँँ शहर की नामचीन हस्तियों के बच्चे भी पढ़ते थे।
नेहा के माता - पिता को थोड़ा डर भी था कि कहीं नेहा सबको देख कर हीनभावना से ग्रसित ना हो जाये क्योंकि उनके पास इतने संसाधन नहीं थे जिस से वो अतिरिक्त खर्च कर सके।
लेकिन विश्वास भी था अपनी बच्ची पर ।
एडमिशन के बाद कॉलेज मे नेहा का पहला दिन था इसलिए घबराहट भी थी।
लेकिन मैनेजमेंट के सख्त होने के कारण कोई रैगिंग नहीं हुई और उसका डर थोड़ा कम हुआ।
साधारण कपड़ों में एक चोटी बनाए नेहा जैसे ही क्लास में पहुंचती है वहाँँ बैठे लड़के लड़कियां उसे अजूबे की तरह देखने लगी।
वो चुपचाप बैंच पर बैठ गई।
किसी ने भी उसे अपने पास नहीं बिठाया।
पहला दिन था सो किसी से दोस्ती तो बनती नही।
सहपाठियों का रवैया उसे समझ भी नहीं आया।
घर पहुंच कर कुछ अनमनी सी थी ।
माँ को देख कर चिंता हुई…
“नेहा क्या हुआ बेटा?सब ठीक है ना।
“हाँ माँ सब ठीक है थक गई हूँ बस ।”
“चल तू आराम कर मैं खाना लाती हुँ तेरे लिए।”
खाना खाने के बाद नेहा सो गई लेकिन माँ को इसकी चुप्पी कुछ तो खटकी लेकिन नया माहौल के कारण सोच कर छोड़ दिया।
दिन प्रतिदिन नेहा का व्यवहार बदल रहा था वो थोड़ी गुमसुम रहने लगी थी और ज़्यादा समय अपने कमरे में बिताती।
सारा समय पढ़ने पर ध्यान रहता ।
अब नेहा के दिमाग के कारण उसके दोस्त बन गए थे क्योंकि नेहा पढ़ाई में मदद कर देती थी।
इनमे रूचि उसकी सबसे अच्छी दोस्त बन गई।
दोनों हमेशा साथ बैठते।
रूचि आज़ाद ख्यालों की लड़की थी लेकिन नेहा को उसका साथ अच्छा लगने लगा था।
वो अक्सर नेहा को अपने गेटअप को सुधारने की सलाह देती लेकिन नेहा ध्यान नहीं देती थी।
पर कब तक बच सकती थी।
उसकी साथ पढधने वाला आनंद बहुत चुलबुला लड़का था ।
लड़कियां उसके जादू से नहीं बच पाती थी और नेहा भी उसके आकर्षण मे फंस रही थी।
नेहा की चोटियों ने अब खुले बालों की जगह ले ली थी और आईने के सामने खड़ा होना भाने लगा था।
आंनद को वो सोचने लगी थी और चाहती थी कि वो उस पर ध्यान दे।
रूचि के कहने पर थोड़ा श्रृंगार करने लगी लेकिन छुप कर घर से।
यहीं से उसका भटकाव शुरू हो चुका था अब पढाई मे उतना मन नहीं लग रहा था उसका।
घर से परिधान पर इतना खर्च नहीं हो सकता था और उसे भी चमकना था औरो की तरह।
इसका उपाय रूचि ने बताया।
सुन कर अचम्भित रह गई नेहा।
“क्या बोल रही हो रूचि ,दिमाग खराब हो गया है क्या ? मै नहीं जाऊंगी ऐसे पापा ने देख लिया तो और वैसे भी यह ठीक नहीं है।”
“अरे तुम्हारे पापा कहां से आ जायेंगे वहां, कुछ करना थोड़े ही है कम्पनी ही तो देनी है एक घंटे में हज़ार रुपए बुरे तो नही सोच ले और कल बता देना।”
लेकिन उसका मन गवाही नही दे रहा था ये करने का।
अपने कमरे में बैठी थी नेहा, तभी उसके पापा आये।
“क्या कर रही हो बेटा ?”
“कुछ नहीं पापा। ”
“क्यों ? पढाई मे मन नहीं लगता।”
अचानक पूछे सवाल से नेहा घबरा गई।
“ऐसी बात नहीं है पापा।”
“होता है, बेटा होता है। जब मै तुम्हारे जितना था तब मुझे भी घूमना मस्ती करना बहुत पंसद था।”
“तुम्हारे दादाजी बहुत सख्त थे लेकिन मै घर से छुप कर दोस्तों के साथ निकल ही जाता था ।
पढाई नहीं कर सकने के कारण फेल हो गया
तब पिताजी ने बहुत गुस्सा किया। और बात करनी बंद कर दी।
“पहले तो मुझे फर्क नही पडा लेकिन धीरे धीरे तरसने लगा पिताजी से बात करने के लिए, अब मौज मस्ती अच्छी नहीं लगती थी क्योंकि पिताजी गुमसुम रहने लगे थे मन में मैने ठान ली थी अच्छे नंबर लाने की और मेरी मेहनत रंग लाई ना केवल अच्छे नंबर आये और सरकारी नौकरी में भी चयन हो गया।
यह बात तुम्हें इसलिए बता रहा हूं क्योंकि यही उम्र होती है जिंदगी बनाने की यह घूमना फिरना तो बाद में भी हो सकता है।
और हाँ तुम्हारे कालेज के कुछ बच्चे पकडे गए आज के पेपर में न्यूज है देख लो शायद कोई तुम्हारी दोस्त ना हो।"
अखबार पकडाते पिता ने कहा और कमरे से निकल गए।
हेडलाइन थी
इंजीनियरिंग कॉलेज की कुछ छात्राएं देह व्यापार में गिरफ्तार।
सिहर गई नेहा।अच्छा हुआ रूचि की बात नहीं सुनी और नहीं गई डांस मे पाटर्नर बनने किसी का पब मे कुछ पैसों के लिए वरना आज वो भी इनके साथ होती।
हे भगवान बहुत शुक्रिया आपका मुझे भटकने से बचा लिया।
खुले बालों को समेट कर बांधती नेहा अब
वापस लौट आई...।