भरोसे की नींव पर गलतफहमी का वार

भरोसे की नींव पर गलतफहमी का वार

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कह दे ऐ चाँद तेरे सितारों से, टूट जाये वो मेरी ख्वाहिश पूरा करने के लिए।शिद्दत से दुआओं का काफ़िला बांधा है मैंने,मेरे महबूब के लिए।

"कैसी लगी मेरी शायरी तुम्हें?"

"तुम्हारे पास काम क्या है ,मेरे पास फ़ालतू वक़्त नहीं तुम्हारे लिए।"

"क्या राहुल हर बार तुम मौका ढूढ़ते रहते हो कि कब मुझसे बहस कर सको, बात छोटी हो या बड़ी मुझपे ही खत्म होती है आकर, मैं तंग आ गयी अब,देखना छोड़ कर चली जाऊँगी एक दिन तुम्हें, फिर बातें करते रहना इन दीवारों से।"

"क्या धमकी देती हो बार बार , तुम्हे क्या लगता है कि मैं तुम्हारे बिना रह नही सकता , जाओ तुम रह लूँगा मैं, तुम्हारा धमकी देना भी खत्म हो जाएगा।"


रीवा अपने अतीत के पन्नो से कुछ पन्ने पलट कर ये जानने की कोशिश कर रही थी कि क्या ये वही राहुल है जो उसकी एक झलक के लिए घंटो होस्टल के बाहर इंतज़ार करता था, क्या ये वही राहुल है जो मुझे किसी के साथ देखता था तो बर्दास्त नही कर पाता था, मेरे लिए लड़ जाता था, और आज मुझसे ही लड़ रहा है,

हमनें शादी की ताकि हम एक दूसरे के साथ रहकर एक दूसरे को पूरा करे, पर आज मैं ही राहुल को खटक रही थी, पिछले कुछ सालों में जैसे जिंदगी ही रुख को किसी और दिशा में ले जा रही थी।

"कहाँ है मेरी फाइल ,कोई चीज़ जगह पर नहीं होती "..

और चिल्लाते चिल्लाते राहुल ऑफिस के लिए निकल गया,बहुत काम था आज ,मैड भी नही आई थी,सोचा कर लूँगी पूरा दिन है।

आज शादी का अल्बम निकाली, देख रही थी वो मुस्कान जो कहीं खो गयी थी ,जिसे मैं तस्वीरों से चुराने की कोशिश कर रही थी, जब शादी करके आयी थी तो सब ठीक था, बहुत प्यार था हम में, घंटो अपनी पसंदीदा जगह पर साथ बिताते, बातें ही ख़त्म नहीं होती थी, सब राहुल को जोरू का गुलाम कहने लगे थे, पर राहुल को ये सुनना भी मंजूर था, बहुत प्यार करता था मुझसे, शुरू में राहुल की माँ का स्वभाव अच्छा था, बेटा बेटा कहकर थकती नही थी, मुझे उनमें अपनी माँ नजर आने लगी थी, मैं सारा काम उनके हिसाब से ही किया करती थी, उन्होंने ही ज़िद की तुम इतनी पढ़ी लिखी हो ,राहुल की तरह जॉब करो ,वरना पढ़ने लिखने का क्या मतलब, वैसे भी घर मे काम ही कितना है ,सारा दिन तुम बोर होती हो, मुझे ये बात अच्छी लगी , तो मैंने राहुल से बात की , राहुल को तो पहले से ही कोई समस्या नही थी, जो मैं बोलती वो तुरंत तैयार हो जाता ,

मुझे जॉब भी मिल गयी थी , मैं खुश थी, मुझे लग रहा था सब खुश है क्योंकि कभी किसी ने कोई शिकायत नही की, 

एक दिन अचानक संडे को हमारी कॉलोनी की मेरी दोस्त से मुलाकात हुई,


"और कैसी हो"

"अच्छी हूँ"

"तुम कैसी हो ,बिजी रहती हो ह ना, बहुत दिन हो गए मिले हमें"

"ऐसा नही है, बस टाइम थोड़ा कम पड़ जाता है"

"एक बात बोलूं रीवा,तुम्हारी सास को काम पसंद नही है तुम्हारा बाहर तो क्यों करती हो"

मैं स्तब्ध थी

" ये क्या कह रही हो तुम"

"हाँ सच है, एक दिन मेरे घर आई थी, वो मेरी सास से मिलने के लिए, दोनो की बहुत पटती है, तो कह रही थी, मुझे रीवा बिल्कुल पसन्द नही, वो तो राहुल की ज़िद थी वरना मैं कभी शादी नही करती मेरे बेटे की, सारा दिन बस रीवा रीवा करता रहता है, माता पिता तो जैसे मर गए है, पता नही क्या जादू टोटका किया है जो मेरी एक बात नही सुनता, इसीलिए तो मुझे रीवा को खुश रखना पड़ता है"

मेरे पैरों तले जमीन नही थी मम्मी और ऐसा सोचती है मेरे बारे में, ओर मैं कितनी पागल थी कि उन्हें अपनी माँ समझ बैठी,

उस दिन से शायद माँ जी के लिए मेरा नजरिया बदल गया, और सच बाहर लाने के चक्कर में मैंने खुद ने अपने पैरों ओर कुल्हाड़ी मार ली,

"अरे रीवा आ गयी तुम कहाँ गयी थी।"

मन नहीं था जवाब देने का पर फिर भी बहू थी जवाब तो देना ही था, 

शीतल से मिलने गयी थी, ओर कहकर अपने कमरे में आ गयी, आज राहुल को सब सच बता दूँगी

पर मैं ये भूल गयी थी प्यार कितना भी गहरा हो माँ के आगे फीका पड़ ही जाता है, राहुल की नजर में वो एक देवी थी जो मुझे बेटी से बढ़कर मानती थी।

मैंने राहुल को बोला और उसके बाद से हमारे बीच एक अनकही चुप्पी छा गयी, वो मुझे उल्टा जवाब देने लगा, मेरा माँ के लिए कुछ भी बोलना मेरे खुद के लिए जहर बन गया, पर ये सच था जो वो देख नही पा रहा था,

हद तो तब हो गयी जब माँ जी ने मेरे चरित्र पर ऊगली उठायी, और मैं टूट गयी जब राहुल की शक भरी निगाहों ने मुझे देखा, पर शायद एक भरोसे की डोर अभी भी कैद थी हमारे बीच की उसने कुछ पूछा नही पर वो खामोशी शायद उससे गहरा घाव था,

मैंने जॉब छोड़ दी,और राहुल का तबादला दिल्ली हो गया, हम दोनों को यहाँ आये 6 महीने हो गए,पर वो प्यार कहीं खो सा गया, वो भरोसा बस कहने का रह गया, 

तभी फोन की घंटी बजी, रीवा मैं रात को बाहर बॉस के साथ खाना कहूँगा ,और फ़ोन काट दिया।

मैं फिर से वही जिंदगी चाहती थी, जहाँ सिर्फ प्यार रहा, भरोसा था, एक दूसरे के लिए वक़्त था, क्यों तुम मुझसे दूर हो रहे हो राहुल, मेरी कोई गलती नहीं थी। 

सुबह राहुल से पता चला माँ आ रही थी कुछ दिनों के लिए, मेरे चेहरे से जैसे खुशी गायब हो गयी, फिर से मेरे और राहुल के बीच गलतफहमियां बढ़ेंगी,पर मैं कुछ नहीं कर सकती थी,।

ठीक वैसा ही हुआ जैसा पहले था, माँ राहुल को दिखाने के लिए मुझसे बहुत मीठी मीठी बातें करती,और उसके जाते ही उनका असली रंग दिखने लगता,पर अब वो समझ चुकी थी मुझे सब पता था,जो कुछ उन्होंने किया, 

अगले दिन जब मैं इयरफोन लगा रखी थी, उन्हें लगा मैं गाने सुन रही हूँ, मेरी आदत हो गयी थी दिल्ली में अकेले रहने से की काम करते वक़्त गाने सुनती थी, 

पर उस वक़्त मैंने राहुल को खाने को पूछने को फ़ोन लगाया ही था, तभी उन्होंने मुझे बोला

"तुम्हें क्या लगता है रीवा की राहुल तुम पर अब पहले की तरह विश्वास करने लगेगा, मुझे तुम कभी पसंद नहीं थी,बस राहुल की जिद के आगे मेरी एक ना चली, तुमने मेरे राहुल को मुझसे छीन लिया, मैं नहीं चाहती कि तुम राहुल की जिंदगी में रहो, एक से एक रिश्ता है उसके लिए जो आज भी तैयार है, तुम कुछ भी नही उनके आगे,पता नहीं क्या देखा राहुल ने तुम में, ना ऊँचा खानदान है ना तुम हूर की परी हो, मैं राहुल की जिंदगी बर्बाद नही कर सकती, मैं इतना जहर घोल दूँगी की राहुल खुद तुम्हें घर से निकाल देगा"

पर आज तो ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था, वो एक एक शब्द जो मैंने कभी राहुल को माँ की सच्चाई बताने को कहे थे, आज वो खुद अपने कानों से सुनकर स्तब्ध हो गया था, आज तो आपका आना मेरे लिए जन्नत का रास्ता बन गया था, आज शायद फिर से हमारे रिश्ते की शुरुआत होने वाली थी

माँ राहुल आपसे बात करना चाहते है फोन चालू है, माँ के पैरों तले जमीन नही थी,

माँ इतना बड़ा धोखा किया आपने ,अपने बेटे के साथ, क्यों, इतने वक़्त से मैं और रीवा एक दूसरे के लिए दुश्मन बन गए थे, और उसकी नींव आपने बोई,मुझे माफ़ करदो रीवा, शायद बहते अश्को में कड़वाहट निकल गयी थी, और माँ को पछ्तावा हो रहा था।



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