भोलू
भोलू
नाम था भोलूराम, हमारे गुरुजी के यहां का सेवक बहुत ही वफादार, गुरु कैसे रहेगें, कैसे उठेंगे, कैसे बैठेंगे, हर समय मुशतेद। बहुत बढ़िया लगता था उस की सेवा को देखकर।
चेहरे से भी भोलू, काम से भी भोलू पर एक गड़बड़ी थी भोलूराम में, अपनी बीबी को पीटता बहुत था, वह भी बिना मुँह की भारतीय नारी, कहती- कौनो बात नाहीं हमार मरद नहीं पिटीगा तो कौन पीटिगॉ।
हम लोग संगीत या थियेटर लेकर गुरुजी के यहां मिलते, गाते, बजाते, वह खुश हो जाता, चुपचाप सुनता, झूमता, खुश होता, फिर कहता किऔरो गावा ना काहे रुक गईनी।
सब तो ठीक था पर बीवी को पीटना कैसे रोका जाये, बहुत समझाया गया पर यहां कुछ सुनता ही नहीं, समय बीता, एक दिन पता चला कि अपने चारों लड़कों को जायदाद बांट आया पर बीवी के नाम से कुछ नहीं। हम लोगों का दिमाग हो गया गरम, तब कड़ाई से कहा गया कि बीवी पीटना बंद करोगे कि पुलिस बुलायें, वह बोला नाहीं अब ना पीटव।
भोलूराम सुधर गया और अपनी बीवी के सुखी जीवन बिता रहा है। आज हमें खुशी है भोलू राम की बुरी आदत को तो सुधारा। जीवन हमारी ली हुयी शपथ हर दिन एक बढ़िया काम करेंगे और यह आज का काम है।
शिव हमारे गुरुजी का आशीष भरा हाथ हमारे सर पर हमेशा रखें और भोलूराम, भोलूराम की बीवी हमेशा खुश रहे, यही शिव से अरदास है।