भोली जनता
भोली जनता
एक सियार मंच पर खड़ा भाषण दे रहा था। जो गिदर है ना देश को नोच कर खा रहे है, प्यारी जनता " क्या आप देश को बचाएंगे ? बचाएंगे ?. जनता जो भोली थी, सियार और गीदर में फर्क नहीं जानती थी। या जनता को फ़िक्र नहीं थी।
वो खुश थी क्यूंकि कुछ का पेट भरा था ,कुछ के पास आधा ज्ञान था , कुछ धर्म को बचाना चाहते थे, कुछ के पास पैसा था और कुछ ऐसे थे जो इन सब झंझट में फसना नहीं चाहते थे।
एक दिन जन समर्थन का मेला लगा ,उस मेला में सियार जीत गए । कुछ दिन के बाद जनता जो भोली थी, उसे दाल में काला नज़र आने लगा था पर वो समझ चुकी थी। सियार और गीदर की लड़ाई में जनता के साथ जो हुआ था वो ऐसा था "आ बैल मुझे मार " जनता फिर भी उम्मीद लगाए बैठी है।