भोग
भोग
एकादशी का पूजन पाठ कर पूजाघर से निकल किचन में पहुंची रमणीदेवी बर्तन जमाते हुए बुदबुदाने लगी - "अभी तक न तो तरकारी कटी है ना ही कुकर चढ़ा है । पता नहीं कब खाना बनेगा कब फलाहार तैयार होगा । बहुरानी तो अपने हिसाब से ही किचन में आएंगी । कोई भूखा मरे तो मरे ....थोड़ी तो चिंता होनी चाहिए ना ।"
बहुरानी मायके से एक सप्ताह बाद कल रात ही लौटी थी तो पति और बच्चों के इकठ्ठा हुए कपड़े धोने व नहाने के उपरांत चिंतातुर हो फटाफट ही किचन में पहुंच गई ।
बहुरानी के आते ही रमणीदेवी फिर पूजाघर में जा बैठी.....वे भगवान को भोग लगाना जो भूल गई थी ।
