बहादुरचंद
बहादुरचंद
उसका नाम बहादुरचंद था। वह अकेला सड़क पर शेर की भाँति गुर्राकर दहाड़ता हुआ चलता था। उसके हाथ में झूलती एके-47 उसकी बहादुरी को और भी बलशाली बनाती थी। जिसकी वफा पर उसे अपने से भी ज्यादा विश्वास था। वह पागल दीवाने की तरह उसे हवा में उछालता, चूमता-चाटता और हजारों की भीड़ को अपने पीछे हाथ जोड़कर बकरी की तरह मिमियाते हुए देखकर जोर-जोर से अट्टहास लगाकर हँसता। लूटना-खसोटना और किसी की कनपटी पर बंदूक तान कर उसे चींटी की तरह मसलना उसके बाएं हाथ का खेल था। अपने विरुद्ध जरा से विरोध की कीमत वह मौत से कम नहीं माँगता था। वह अकेला हजारों पर भारी था। लोग दहशत में हाथ जोड़े उसके आगे-पीछे गुलाम की तरह खड़े रहते थे। तभी भीड़ में किसी की हिम्मत और खुद्दारी जाग उठी और उसने घात लगाकर, चीते की फुर्ती से, लपक कर एके-47 उसके हाथ से छीन ली। अब वह अकेला और निहत्था था। उस बहादुर ने उसी की वफादार एके-47 उसकी कनपटी पर तान दी। अपने सामने नंगी नाचती मौत को देख कर, वह बकरी की तरह मिमियाते हुए रहम-रहम की भीख माँग रहा था और भीड़ बहादुरचंद की बहादुरी पर, उसी की तर्ज में अट्टहास लगा कर जोर-जोर से हँस रही थी।
