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ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

Drama

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ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश

Drama

बग की आत्मकथा

बग की आत्मकथा

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मैं बग हूं, बग याने खटमल। सही पहचाना मगर मैं जीवित खटमल नहीं हूं। मैं कंप्युटर का बग हूं, वह बग नहीं जो मानव का खून पीता है शायद, यह सुन कर आप चकित होंगे। मगर, मेरा यह नाम खटमल के कारण ही पड़ा है।

जब कंप्युटर में कोई खराबी आती है तब झट से कह दिया जाता है— ​बग आ गया। यानी कंप्युटर में खटमल आ गया मगर, ऐसा कैसे हुआ ? आप जाननाा चाहते हो ? चलो ! मैं बता देता हूं।

यह बात 1940 की है। उस वक्त पहली पीढ़ी का कंप्युटर बना था। इसे हूपर ने बनाया था, इस का आकार कमरे से भी बड़ा होता था, जिस में कई बड़े-बड़े डायोट ओर इलेक्ट्रोमैग्नेट लगे होते थे।

यह उस समय की बात है, हूपर अपने कंप्युटर पर कार्य कर रहे थे। कंप्युटर चलते-चलते अचानक बंद हो गया। हूपर ने कई कोशिश की मगर कंप्युटर की खराबी हूपर के पकड़ में नहीं आई। उन्हों ने बहुत बार जांच की, आखिर कंप्युटर बंद क्यों हो गया।

उस वक्त ग्रेस हूपर ने कंप्युटर खोल रखा था। वे चुपचाप बैठ कर कंप्युटर को देखने लगे, आखिर ये खराब क्यों हुआ ? तब उन्होंने ध्यान से कंप्युटर को देखा। आचनक उन का ध्यान एक इलेक्ट्रोमैग्नेट पर गया। उस पर कुछ चल रहा था। ध्यान से देखने पर पता चला कि उस पर एक खटमल चल रहा था। उन्हों ने खटमल को हटाकर अलग कर दिया, तब कंप्युटर का चलाया तो वह झट से चल दिया।

ऐसा दो तीन बार हुआ। जब भी कंप्युटर खराब होता तो वे उस को खोल कर खटमल को हटा देते थे। इस तरह बार-बार की परेशानी के कारण जब भी कंप्युटर बंद होता वे तुरंत कह देते— लो फिर बग आ गया।

यह उन का तकिया कलाम बन गया था। जब कंप्युटर खराब होता, तब वे यही वाक्य दोहरा देते थे। तब से यह शब्द कंप्युटर की खराबी के लिए काम में लिया जाने लगा। जब किसी कंप्युटर में कोई खाराबी होती तो कह देते कि कंप्युटर में बग आ गया।

इसलिए मेरा नाम बग पड़ा, जबकि कंप्युटर में खराबी का संबंध बग से नहीं होता है। वह किसी भी खराबी से खराब हो उस के लिए बग शब्द का प्रयोग किया जाता है।

अब तो आप समझ गए होंगे कि मेरी कथा कहाँ से शुरू हुई थी। अब तो आप को पता चल गया है कि कंप्युटर में खराबी किसी भी वजह से आती है फिर कह देते हैं कि बग आ गया।।


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