बेटियाँ बोझ नहीं होती
बेटियाँ बोझ नहीं होती
रिया सुनो तुम कहीं नहीं जा सकती हो इस घर से, मेरे बिना तुम्हारा वजूद क्या है ! तुम इतनी सी बात का बतंगड़ बना रही हो, रिया के पति राजन ने कहा।
इतनी सी बात राजन तुम्हारे लिए है मेरे लिए बहुत बड़ी बात है, तीन साल से तुम्हारी अय्याशी की खबरें मेरे कानों तक आती थी पर हर बार तुमने मुझे ही गलत साबित कर दिया पर आज नहीं। मैं तुम्हारे पीछे आज इसलिए गई थी की आज फैसला लेने से पहले फिर एक बार अपनी आँखों से देख लूं।
तुम आज फिर किसी के साथ होटल के कमरे में अय्याशी में डूबे थे। तुम्हारे फोन से मैंने जगह और समय देख लिया था। आज मुझे फैसला लेने का जरा भी दुख नहीं है।
राजन तुम समझते क्या हो हर बार गलती तो नहीं हो सकती है ये, आदत है तुम्हारी।
रिया तुम बात बढ़ा रही हो ! घर छोड़ कर कहाँ जाओगी मायका ! वहाँ से चार दिनों में वापस भेज देंगे ! रिया जहाँ जाना है जाओ लौटकर यहीं आओगी ! कौन रखेगा तुम्हें ? माँ बाप या भाई ? उन पर बोझ ही रहोगी। कोई नहीं बोझ को ज्यादा दिन रखता राजन ने बेशर्मी से कहा।
नहीं राजन बोझ तो तुम बन गए हो मेरे लिए जिस बोझ को मैं ढो रही थी पर अब नहीं ! अब मैं ये बोझ नहीं ढो सकती। मैं हमेशा के लिए जा रही हूँ, रिया ने अपना आखिरी फैसला सुनाया।
"रिया मैं बोल रहा हूं तुम नहीं जा सकती।"
"मैं जा रही हूँ।"
एक थप्पड़ की आवाज आई जो रिया के गालों पर पड़ी थी पर ये थप्पड़ उसके दिल पर लगी थी,आँसू बह रहे थे पर ये वो थप्पड़ के नहीं विश्वास टूटने के थे।
"रिया तुम नहीं जाओगी मैं बोल रहा हूं न।"
"मैं जा रही हूँ और अब कभी नहीं आऊंगी।
तुम ऐसे नहीं मानोगी राजन उसे मारने लगा।
तुम पागल हो गए हो छोड़ों मुझे रिया ने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की।
तड़ाक एक जोरदार थप्पड राजन को पड़ी वो सकपका गया अचानक उसे इसकी उम्मीद नहीं थी। ये थप्पड़ रिया के पापा की थी रिया ने उन्हें साथ चलने बुलाया था।
"तुम इतने गिर जाओगे हमने नहीं सोचा था, तुम्हें शर्म नहीं आई हाथ उठाते ! खुद की गलती को ढकने के लिए कब तक मेरी बेटी को मोहरा बनाते रहोगे।" रिया के पापा ने कहा।
"रिया अपनी माँ के गले लग कर बिलख पड़ी। माँ, मैंने बहुत कोशिश की पर मैं अपने घर को नहीं बचा पाई।"
"नहीं मेरी बच्ची घर पति-पत्नी दोनों की ईमानदारी से बनता है, किसी एक से नहीं, तुमने बहुत कोशिश की मेरी बच्ची अब नहीं।" यह रिया की माँ थी।
मैं किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती माँ ! भैया,भाभी,या आप लोगों पर भी नहीं, रिया ने रोते हुए कहा।
"तु बोझ है हम सब पर किसने कहा ? बेटी है तु मेरी कलेजे का टुकड़ा है तु मेरा, आज के बाद बोझ कभी नहीं बोलना और तेरी भाभी ने ही हमें भेजा तुझे लाने, वो भी तुझे इस हालत में नहीं देख सकती। आखिर तुने बहन माना था तो वो भी तुझे बहन ही मानती है फिर तुने ऐसा कैसे सोचा, "चल अब घर चले अपने,अब वहीं तेरा घर होगा और नयी जिंदगी शुरू करेगी तू। रिया की माँ ने रिया से कहा।
रिया अपने पापा के गले लग गई।
"बेटा माँ बाप का सपना होता है बेटी अपने घर खुश रहे मायके आऐ और फिर अपने घर चली जाऐ पर इसका मतलब ये नहीं होता की वो मायके वालों पर बोझ बन गई है, तु दिल का टुकड़ा थी और हमेशा रहेगी मेरी बच्ची।" रिया के पापा ने अपने आँसुओं को छिपाते हुऐ कहा।
चल मेरी बच्ची।
और हाँ दामाद जी, बेटी बोझ नहीं अपने माँ-बाप के कलेजे का टुकड़ा होती है। मेरी बेटी बोझ नहीं बोझ तो आप बन गए हम सब के लिए। उसे बोझ समझने की गलती मत करना। हाँ, मैंने एक बोझ उसे दिया था वो बोझ तुम थे और वो बोझ आज उतार कर हमेशा के लिए उसे ले जा रहा हूँ।
वकील आकर तलाक के पेपर दे देगा आपको।
चल बेटा अपने घर, रिया के पापा ने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपना सहारा दिया हमेशा की तरह आखिर वो कलेजे का टुकड़ा जो थी। रिया सोच रही थी, "सचमुच बेटियाँ कलेजे का टुकड़ा ही होती हैं।"