Nirupama Mishra

Tragedy

4.5  

Nirupama Mishra

Tragedy

बेजान शरीर

बेजान शरीर

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एक हफ्ते पहले ही कृतिका के पति का ट्रांसफर नये शहर में हुआ था, ऑफिस के करीब ही किराये का मकान लेकर दोनों रहने लगे थे।एक शाम को बाज़ार से वापस लौटने पर मकान के गेट पर बैठे मकान के बूढ़े चौकीदार सोहन ने कृतिका से कहा कि-"मैडम आज शाम को मेरे लिए भी दो रोटियाँ बना दीजियेगा।" सुनकर कृतिका ने मुस्कराते हुए कहा कि -" ठीक है बना दूँगी।"

उसी मकान में रहने वाले पड़ोसी किरायेदारों से मालूम हुआ कि सोहन पास के ही एक गाँव का रहने वाला है लेकिन कई साल पहले ही अविवाहित सोहन को मृतक दिखाकर उसके भाईयों ने उसकी जमीन - जायदाद हड़प लिया था और सीधा-सच्चा ,बेबस सोहन गरीबी के कारण अपने हक़ के लिए लड़ाई भी नही कर सका था इसलिए मजबूरी में शहर के एक बड़े बिजनेसमैन के इस मकान के चौकीदार के साथ फुल टाइम नौकर की हैसियत से काम करके जीवनयापन कर रहा था। सोहन की मजबूरी का फायदा उठाकर उसका मालिक भी बीस रुपये रोजाना और एक टाइम का खाना ही उसे देता था।

बेबस , बेसहारा बूढ़ा सोहन चुपचाप अपने काम को ईमानदारी से करता रहा था लेकिन जब सुबह मालिक के घर से आये खाने को ही बचाकर शाम को भी खाना पड़ता तो कभी -कभी बासी खाने को देख कर उसका मन खाने के लिए मना कर देता था ऐसे में उसकी इच्छा होती कि उसे गर्म ताजी रोटियाँ मिल जाये तो पेट भर जाये। सोहन कभी तो संकोच कर जाता मगर जब दिल नही मानता तो मकान में रहने वाले किरायेदारों से ही ताजा खाना माँगकर खा लिया करता तो कभी यूँ ही पानी पीकर रात भर जागकर रखवाली किया करता था।

शाम को जब कृतिका गर्म रोटियों के साथ सब्जी लेकर सोहन को देने गई तो सोहन के चेहरे पर खुशी झलक रही थी वो भावविभोर होकर कृतिका को ढेरों आशीर्वाद देने लगा था।

कृतिका ने सोहन के बारे में पड़ोसियों से मिली सभी जानकारी बताई तो उसके पति को भी सोहन पर बहुत तरस आया।इसी तरह धीरे - धीरे एक साल बीत गये थे लेकिन आये दिन कृतिका के मन में सोहन को न्याय दिलाने , उसका हक़ उसे वापस दिला कर जिल्लत की जिंदगी से दूर खुशहाल जीवन के लिए भावना उमड़ती- घुमड़ती रहती थी।

एक दिन कृतिका के पति को ऑफिस के काम से दूसरे शहर जाना पड़ा तो कृतिका घर में अकेले ही थी , वो जल्दी से अपना सारा काम निपटा कर अपनी पसंद की किताब खोलकर पढ़ने लगी लेकिन किताब पढ़ते समय भी थोड़ी - थोड़ी देर में कृतिका का ध्यान सोहन की समस्या पर चला जाता था ऐसे मे कृतिका ने किताब बंद करके एक तरफ रख दिया और सोहन की मजबूरी का फायदा उठाकर उसके मालिक द्वारा की जाने वाली ज्यादती और सोहन के परिवार वालों की बेहयाई के बारे में सोचने लगी कि बड़ी अजीब दुनिया है, कैसे - कैसे लोग हैं इस दुनिया में, मन ही मन कृतिका बहुत कुछ करने की सोचने लगी लेकिन उसे ये भी समझ में नही आ रहा था कि कैसे वो सोहन को न्याय दिला सकेगी।

शाम को सोहन की तबीयत भी कुछ ठीक नही थी तो उसका मालिक उसे दवायें देने के साथ-साथ अभद्र भाषा में न जाने क्या-क्या बोलता जा रहा था , मकान के सभी किरायेदारों को सोहन के साथ उसके मालिक का ये बर्ताव पसंद नही आता था लेकिन वो कभी उसका पुरजोर विरोध नही कर सके थे।

जैसे - जैसे रात गहराती चली गई वैसे - वैसे सन्नाटा भी गूंजने लगा था और उस सन्नाटे में बीच - बीच में सोहन के कराहने की हल्की आवाज भी गूंज रही थी, बाकी किरायेदारों की तरह कृतिका भी सोहन का हालचाल पूछकर अपने रूम में जाकर दरवाजे को लॉक करके बिस्तर पर लेट गई। थोड़ी देर बाद सोहन के कराहने की आवाज़ भी आना बंद हो गई थी शायद दवाओं के असर से उसे नींद आ गई थी। 

कृतिका हल्की नींद में ही थी कि तभी दरवाजे पर किसी ने उसे आवाज देकर बुलाया , पूछने पर उसके पति की आवाज उत्तर में आई तो कृतिका ने दरवाजा खोला। कृतिका के पति के हाथ में एक मोटी फाइल थी जिसे कृतिका को दिखाते हुए उसके पति ने कहा कि-" देखो ये फाइल, मैंने सोहन के बारे में पूरी छानबीन करके उसे उसका हक़ दिलाने का फैसला कर लिया है।" 

पति के हाथों से फाइल लेकर कृतिका ने चौंक कर खुशी से कहा कि -" हाँ सही, आपने बहुत अच्छा किया है , हमें सोहन को न्याय दिलाना ही होगा आखिरकार किसी जीवित इंसान को इस तरह कोई मृतक कैसे घोषित कर सकता है, ऊपर से उसका मालिक भी उसकी मजबूरी का फायदा ले रहा है।" 

कृतिका यूँ ही बिस्तर पर लेटे हुए नींद में बड़बड़ा रही थी और सुबह के सूरज की धूप खिड़की से भीतर आकर कमरे की दीवारों पर फैलती जा रही थी, इतने में मोबाइल बजने लगा था कृतिका हड़बड़ाहट में नींद से जागकर इधर - उधर देखने लगी तो कमरे में उसके सिवा कोई और नही था साथ ही मोबाइल पर बजने वाली ट्यून भी खामोश हो गई थी। मोबाइल पर उसके पति की कॉल दुबारा आने लगी तो कृतिका की चैतन्यता वापस आई उसने कॉल रिसीव करते ही पूछा कि -" क्या आप अभी वही हैं? क्या रात में घर वापस नही आये थे , आप कोई फाइल मुझे दे रहे थे न, वो फाइल कहाँ है? " 

कृतिका के पति ने इतने सारे सवाल एक साँस में पूछने का कारण जानना चाहा तो कृतिका चुप रही उसे रात के देखे सपने और हकीकत में फर्क समझ में आ गया तो वो बोली कि -" कुछ नही , शायद मैंने सपना देखा था, आप तो आज वापस आओगे न।" कृतिका ने अपने देखे सपने के बारे में विस्तार से बताया तो उसके पति ने उसे ज्यादा न सोचने और अपना ख्याल रखने की बात कह कर बात खत्म की।

कृतिका फ्रेश होने के लिए बाथरूम की तरफ जा ही रही थी कि नीचे से कुछ आवाजें सुनकर बालकनी से देखने लगी तो मालूम हुआ कि रात में सोहन सोने के बाद सुबह नींद से जागा ही नही वो अब इस दुनिया से विदा होकर अंतिम यात्रा पर जा चुका था। कृतिका सोहन की अचानक हुई मौत से अवाक रह गई थी कभी वो अपने रात के सपने के बारे में सोचती तो कभी सामने जमीन पर पड़े सोहन के बेजान शरीर को देखती, वो जीवित रहकर भी मृतक घोषित सोहन के वास्तव में मृत होने पर विचारों के सागर में डूबती जा रही थी कि सोहन के इस बेजान शरीर ने सोहन के मृतक होने की वर्षों से लिपटी पहचान को आज जीवित कर दिया था।


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