Nirupama Mishra

Drama

4.0  

Nirupama Mishra

Drama

अकेलापन

अकेलापन

4 mins
309


अकेलापन

पात्र- १) सविता -मध्यमवर्गीय परिवार की महिला 

२) गोपाल - सविता का पति

 ३) सोहन- सविता का बेटा 

४) सुधा - सविता की बहू 


तीन दृश्य

१- घर का ड्राइंगरूम 

२- सोहन का शयनकक्ष 

३- घर के बाहर गार्डन 

         पहला दृश्य

(पर्दा उठता है )

सोहन -( आवेश में) माँ-बाबू जी आप ही दोनों कुछ बताइये मुझे, आज फिर ऐसा क्या हुआ कि आपकी बहू का पारा आसमान में है ?

गोपाल - ( कातर स्वर में) बेटा हमने तो ऐसा कुछ नही किया जो गलत हो|

सोहन - फिर भी कुछ तो हुआ ही है , मैं अभी - अभी ऑफिस से वापस आया तो घर में भी टेंशन | 

(तभी कमरे में सोहन की पत्नी सुधा प्रवेश करती है)

सुधा -( तीखे स्वर में) अपने बाबूजी से क्या पूछते हो , अपनी माता जी से पूछो |

( सोहन अपनी माँ की तरफ देखता है तो माँ चुपचाप नीचे निगाह किये हुए बैठी थी ) 

सोहन- माँ बताइये ,क्या हुआ था |

( सोहन की आवाज़ पर माँ के आँसू जमीन पर टपक पड़े) 

सोहन - ( गुस्से में) माँ अब आप भी मुझे ये रोना-धोना मत दिखाइये, साफ- साफ बताइये क्या हुआ था |

सविता - ( डरे हुए स्वर में) बेटा क्या मैं अपने पोते को भी अपनी गोद में नही ले सकती हूँ, क्या मैं उसे प्यार - दुलार नही कर सकती हूँ, बस यही बुरा लगता है बहू को |

सुधा -(अपनी सास से ) मुझे बुरा तो लगेगा ही , आप पुराने जमाने की औरत हैं पता नही मेरे बेटे को क्या उल्टा-सीधा खिला-पिला दें और न जाने क्या - क्या सिखा देंगी तो मैं क्यों आपको अपना बच्चा छूने दूँगी |

( अपनी पत्नी को आवेश में बोलता देख सोहन उठकर अपने कमरे में चला जाता है) 

       दूसरा दृश्य

( सोहन अपने कमरे में लेटा छत को एकटक देखता सोच रहा था बगल में सुधा कभी अपने बेटे को देखती तो कभी सोहन को ) 

सुधा - अब तुम्हे क्या हो गया सोहन, तुम परेशान मत हो मैं धीरे-धीरे तुम्हारे माँ-बाप को कंट्रोल कर लूँगी तब सब ठीक रहेगा| 

सोहन ( दुःखी होकर) सुधा मेरे माँ-बाप मेरे जन्मदाता हैं तुम उन्हे कंट्रोल करने की बात कैसे कह सकती हो, उन्होनें कभी भी मुझे गलत संस्कार नही दिये और आज तुम्हारी वजह से दुःखी हैं | माँ ने कोई गलती तो नही की थी , हमारे बेटे पर उनकी ममता का पूरा हक़ है|

सुधा - सोहन अब तुम मुझे भाषण मत दो , मैं जो कह रही हूँ वो समझो बस| मेरे बेटे पर सबसे ज्यादा हक़ मेरा ही है मैं जैसे चाहूँगी वैसे वो रहेगा , जहाँ रहूँगी वो वहाँ रहेगा | 

सोहन - (आश्चर्य से)क्या कहा तुमने ? मेरा बेटा , क्या वो मेरा बेटा नही है ?

सुधा - मैंने ये कब कहा कि वो तुम्हारा बेटा नही है लेकिन मैंने जन्म दिया है उसे, नौ महीने उसे अपनी कोख में पाला है तो सबसे ज्यादा हक़ मेरा है और तुम भी इस बारे में ज्यादा बहस मत करो| 

सोहन - इसमें बहस कैसी? 

सुधा - ( गुस्से में) और नही तो क्या ? मैं पढ़ी-लिखी नये जमाने की हूँ , मुझे तुम्हारे सहारे की भी जरुरत नही है मैं खुद नौकरी करके अपने बेटे को पाल सकती हूँ|

सोहन -( अवाक होकर) अरे ये सब क्या कह रही हो तुम?

सुधा - क्यों बुरा लगा क्या ? आखिरकार तुम्हारी माँ की परवरिश असर तो दिखायेगी ही, तुम्हे अपनी माँ का ही फेवर लेना हो और मेरी बात गलत लगे तो मुझे हमेशा के लिए छोड़ दो| 

(सोहन अपनी पत्नी के अंदाज से आहत होकर बिना कुछ कहे दूसरी तरफ करवट लेकर सो गया) 

        तीसरा दृश्य

( गोपाल और सविता गार्डन की बेंच पर बैठे बातें कर रहे थे) 

गोपाल - सविता ये हमारी बहू को हमसे क्या परेशानी है ये समझ में नही आता | 

सविता - मुझे भी समझ में नही आता लेकिन जब से सोहन का विवाह हुआ है उसके बाद से अब तक बहू के रवैये से बड़ा अकेलापन महसूस होने लगा है , जैसे मन टूट गया मेरा|

गोपाल- सही कह रही हो तुम, सोहन हमारा इकलौता बेटा है और हमने बड़ी सावधानी से उसकी परवरिश की जिससे उसके जीवन में कभी कोई दिक्कत न आये मगर बहू के स्वभाव से तो सोहन के लिए भी चिंता होने लगी है |

सविता - हाँ आप सही कह रहे हैं लेकिन हम क्या करें अब , मन करता है कि हम ही अपनी जान देकर दुनिया से चले जायें , अब तो बर्दाश्त नही होता , सब कुछ सोच - सोचकर मन निराश हो जाता है | 

(सविता और गोपाल रात के सन्नाटे में यूँ ही चुपचाप बैठे रहे) 

पर्दा गिर जाता है।

सारांश- रिश्तों में अपनेपन की कमी , सम्मान उनके महत्व को नही समझने से परिवार में दुराव और अकेलापन महसूस होने लगता है।


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