बेजान मुस्कान

बेजान मुस्कान

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पहली बार मैंने तुम्हें जब देखा तो शायद मैंने ये नहीं सोचा था की कोई कहानी मेरा इंतज़ार कर रही है। हाँ, तुम खूबसूरत बहुत हो पर मैंने उस वक्त तेरी खूबसूरती नहीं बल्कि कुछ अलग ही महसूस किया। तुम सबके साथ होते हुए भी खुद से अंजान और अकेली सी लगी थी तुम मुझे।

मैं कितना सही हूँ और कितना गलत, बस मुझे ये सुनिश्चित करना था। मुझे पता है की मेरा तुम से कुछ लेना देना नहीं है और न ही जो मैं कर रहा हूँ वो सही है क्योंकि आजकल इस भौतिकवादी दुनिया में एहसासों की नहीं बल्कि नकाबों की जरुरत है, लेकिन मैं बिन नक़ाब का चेहरा कैसे भूल सकता हूँ। सच मानो तो मैं कुछ नहीं कर रहा और न ही करना चाहता हूँ। बस जो हो रहा है वो मेरे नियंत्रण में नहीं है। 

कुछ खाब अधूरे थे हमारे जो शायद पूरे होने को थे....याद रखो शायद?


तेरे माथे की ये छोटी सी बिंदिया, शायद उड़ाती है तेरी रातों की निंदिया, तेरी ये चंचल हसीन सी मुस्कान किसी अपनों से हुई थी बेजान, तेरी ये पलकों की काले साये तुझे अपनी भूल की याद दिलाए..तेरी खूबसूरत चेहरे की एक झलक, खोले हर मुश्किलों की फलक, तू न सोच अपनी मंज़िल के रास्ते सबसे बड़ा ख़ुदा ही है तेरे वास्ते, रखना होगा खुद को यूं संभाल कर जैसे भोले रखते, गंगा जी को बाल पर, तू कर , हर वो काम जो लगे नाक़ाम, ताकि दुनिया भी करे तुझे सलाम..



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