बेदर्दी बारिश
बेदर्दी बारिश
लवली अपना चेहरा शीशे में निहार रही थी और विभिन्न पोज बनाकर इतरा रही थी। उसका रूप दिन ब दिन निखर रहा था। चेहरे पर ग्लो बढ़ता जा रहा था। घड़ी ठीक पोने छः बजा रही थी। उसका मन बहुत प्रफुल्लित था। आज जब वह राज से मिलेगी तब उससे क्या क्या फरमाइशें करेगी , मन ही मन उसकी फहरिस्त तैयार करने लगी। आंखों में चमक बढ़ गई थी उसकी।
इतने में मम्मी ने जोर से कहा "लवली , देख। जोर की बारिश आ गई है। जरा कपड़े उठाकर अंदर रख दे नहीं तो बाहर रस्सी पर भीग जाएंगे"।
लवली अपने प्रेमी राज के ख्वाबों में डूबी हुई थी। उसने मम्मी की बात सुनी ही नहीं थी। वह तो छः बजे का इंतजार कर रही थी जब वह पार्क में राज से मिलने वाली थी। मम्मी ने एक बार फिर से और जोर से कहा तब लवली की तंद्रा भंग हुई। वह दौड़ी दौड़ी बाहर भागी। बहुत तेज बारिश आ गई थी। वह जल्दी जल्दी कपड़े उठाकर अंदर ले आई। बारिश से कपड़े भीग गए थे।
उसने सारे कपड़े कमरे में फैला दिए जिससे कि वे सूख जाएं।
फिर उसने खिड़की से बाहर देखा। बाहर का नजारा देखकर एकबार तो उसकी बांछें खिल उठी। कितनी तेज बारिश हो रही थी। वह भी आज बारिश में नहाने का आनंद लेगी। लेकिन अगले ही पल वह रुआंसी हो उठी। "हे भगवान ! ये तुमने क्या किया ? छः बजे ही तो राज से मिलने का समय होता है मेरा और तुमने ठीक इसी समय बरसात की झड़ी लगा दी ? अब मैं कैसे जाउंगी पार्क में ? हम कैसे मिल पाएंगे आज ? और उसके तन बदन में आग लग गई।
"चौबीस घंटों में से एक घंटा ही तो हम अपने लिए मांग रहे थे , रोज। मगर आपको वो भी मंजूर नहीं हुआ, प्रभु। सत्यानाश हो जाए इस बारिश का। निगोड़ी , इसको भी अभी ही आना था ? एक घंटे बाद आ जाती तो इसका क्या बिगड़ जाता ? नहीं जी। ये तो महारानी हैं। जब चाहेंगी आ जायेंगी और जब चाहेंगी तब चली जाएंगी। गजब तानाशाही है इनकी। इतना भी नहीं सोचा कि हम कितना तडपेंगे ? ये क्यों सोचेंगी भला ? ये तो रोज बादलों से मिलती रहती हैं ना इसलिए इसे विरह वेदना का अहसास कैसे होगा ? "
लवली मन ही मन बारिश को बुरा भला कह रही थी , गालियां दे रही थीं। वह बार बार खिड़की से बाहर देखे जा रही थी। बारिश कम होने के बजाय बढ़ती जा रही थी। जैसे जैसे बारिश की मात्रा बढ रही थी उससे कई गुना उसके सीने की आग बढ़ रही थी। बाहर कितना पानी गिर रहा है और अंदर आग जल रही है जिसके शोले धधक रहे हैं मन में। कहीं ये गाना बज रहा था
दिल में आग लगाए सावन का महीना
नहीं जीना नहीं जीना तेरे बिन नहीं जीना।
राज को फोन भी नहीं कर सकती थी क्योंकि मम्मी सामने ही बैठी है। इतने में समीर , उसका छोटा भाई भी आ गया और उसने वहीं पर बैठकर गप्पें हांकना शुरू कर दिया। लवली की बड़ी मुसीबत हो गई। अब तो वह व्हाट्स ऐप पर चैट भी नहीं कर सकती है। चोरी पकड़ में आने का जो डर था।
उसने मोबाइल खोला तो राज का मैसेज था
"हाय , मेरी जान। कहां हो ? मैं पार्क में कबसे वेट कर रहा हूं तुम्हारा ? बारिश भी भयंकर आ गयी है और मैं पूरी तरह तर बतर हो गया हूं। यहां आ जाओ ना ? रेन डांस करेंगे मिलकर"
जैसे ही यह मैसेज देखा उसने, उसके तन बदन में आग लग गई। "एक तो यह बारिश मिलने नहीं दे रही और उस पर "जनाब" को "रेन डांस" सूझ रहा है ? यहां तो "जिया जले जान जले" वाली स्थिति हो रही है और "बंदा" बारिश में मौज कर रहा है ? मिलने दो उसको , बच्चू की वो खबर लूंगी जो रेन डांस का नाम ही भूल जाएगा" ।
वह मन ही मन भुनभुना रही थी कि इतने में समीर ने चाय पकौड़े की इच्छा व्यक्त कर दी। मम्मी ने भी उसका सपोर्ट करते हुए ऑर्डर छोड़ दिया।
" जा लवली बेटा , थोड़े से पकौड़े तल ला। तब तक मैं चाय बनाकर लाती हूं"। मम्मी ने तो सहज भाव से बोल दिया मगर लवली इस स्थिति में थी ही नहीं कि वह कुछ कर सके। वह तो राज में ही खोई हुई थी। इसलिए उसने इस आफत के बारे में सोचा ही नहीं था । एक बार फिर से खिड़की के बाहर देखा तो पाया कि मूसलाधार बारिश हो रही है। उसके दिल से आवाज निकली
"दिल के अरमां आसूंओं में बह गए"। उसका मन रोने को कर रहा था इसलिए उसने मन में सोचा कि वह बाहर भीग ले। इसमें उसके आंसुओ का पता नहीं चल पायेगा। इसलिए वह उठी और बोली
"मम्मी , आप बना दो ना चाय पकौड़े ? मैं तो बारिश में नहाने जा रही हूं" और वह मम्मी की बात बिना सुने बाहर आ गई बारिश में । अब उसकी विरह वेदना आंसू बनकर आंखों के रास्ते से बाहर आ रही थी। मन कह रहा था 'बेदर्दी बारिश तेरा सत्यानाश हो' और उधर एक गाना बजने लगा
"निगोडी कैसी ये बारिश है
जो मिलने ना दे दो दिल को " बारिश की बूंदों में उसके आंसू मिलकर नमकीन समुद्र बना रहे थे।