बेदाग़ आईना
बेदाग़ आईना
एक आलीशान बंगला, जहाँ 16 साल की पीहू हाथ में ख़त लिए खड़ी थी और चुपचाप अपने पिता (आरव) को देखे जा रही थी।
पीहू :- "पापा, ये ख़त मम्मी ने भेजा है, लेकिन उनका फोन बंद पड़ा है और इस ज़माने में ख़त कौन भेजता है।"
आरवहाथों में ख़त लेकर देखते हैं।
( इस ख़त में वही खुशबू थी जो वो पहले महसूस कर चुका था, ये एहसास उन्हें 18 साल पीछे ले जाता है, जब वो पहली बार अपनी पत्नी, प्रेमिका (सान्वी) से मिला थे। बाइक सीधे जाकर सान्वी के पास रुकी)
सान्वी :- "इडियट ! दिखाई नही देता ? अंधे हो क्या ?"
आरव :- "ब्रेक ज़रा फ़ेल हो गया।"
सान्वी :-" ऐसे कैसे फेल हो गया ? इडियट।"
(सान्वी आगे चली जाती है। आज कॉलेज का पहला दिन है। जैसे ही कॉलेज पहुँचती है।सामने आरव को देखकर)
सान्वी :- "अच्छा तुम मेरा पीछा करते हुए यहाँ तक आ गए?"
आरव :- "ओ °°°° हल्लो ``` ये मेरा कॉलेज है।" (प्यार से उसकी तरफ देखते हुए)
(दोनों अपनी जगह आकर बैठ जाते हैं। ये खट्टी-मीठी नोंक-झोंक कब प्यार में बदल जाता है । दोनों को पता ही नहीं चलता।)
(आज दोनों की शादी है। दोनों बहुत खुश हैं।क्यों न होती भला ये खुशी, सान्वी जहाँ कॉलेज की सबसे खूबसूरत लड़की थी वहीं, आरव काफ़ी ज़हीन और खुशमिजाज़)
आरव :- (घूँघट उठाते हुए)
*मेरे आग़ोश में, आज, चाँद उतर आया है।*
*ये ग़ुलाम खातिर तेरे, ये गुलाब लाया है ।*
सान्वी :- (मुस्कुराते हुए गुलाब ले लेती है)
(आरव ने सान्वी के खूबसूरती का इतना दीवाना है, उसने हर जगह आईना लगा रखा था, के जब चाहे, जहाँ से चाहे, सान्वी को देख सके और कभी घण्टों उसे निहारता रहता)
सान्वी :-" एक बात पूछूँ ?"
आरव :- "हाँ कहो ।"
सान्वी :- "ऐसा क्या है ? जो मुझमें पसन्द है और मुझमें पसन्द नहीं।"
आरव :- "मुझे तुम पसन्द हो और इस आइने में कोई दाग़ पसन्द नहीं।"
(इसी खूबसूरत समां के साथ दिन गुज़रे और महीनों के साथ साल गुज़र गया, पीहू उनकी ज़िंदगी में एक खूबसूरत परी बन कर आई)
(अचानक ज़िन्दगी ने एक मोड़ लिया जो नहीं होना चाहिए था वो हो गया------आरव के दिल पे एक पहाड़ सा टूट पड़ा जब उसे मालूम हुआ के सान्वी को ब्लड कैंसर है)
सान्वी :-" मेरी ज़िंदगी की साँस कब तक है में नहीं जानती लेकिन तुम मेरे साथ हो यही बहुत है मेरे लिए।"
आरव :- "तुम बेकार की बातें मत करो और जल्दी तैयार हो जाओ फिजियोथेरेपी है आज तुम्हारा, मैं गाड़ी निकलता हूँ।" (प्यार से बोसा देते हुए)
(दोनों गाड़ी से निकलते हैं, और अचानक ......)
सान्वी :- "आराम से, इतनी जल्दी क्या है ?"
आरव :-" हाँ सान्वी।" (सान्वी की तरफ़ देखता है)
(पों---पी---.....धड़ाममममम ,-----खचाक...सान्वी एक ओर और आरव दूसरी ओर)
सान्वी :- आ°°°°°र°°°°°व°°°°°°
(सान्वी की आँखे हॉस्पिटल में खुलती हैं और पता चलता है के आरव ने अपनी आँखें हमेशा के लिए खो दी।)
(घर पे आरव को जूस देते हुए)
सान्वी :- (फिजियोथेरेपी की वजह से सारे बाल झड़ चुके , चेहरा अब काफी बदल चुका) आरव आप बुरा न माने तो मैं नीदरलैंड जाना चाहती हूँ। मेरी आखरी ख्वाहिश समझ कर पूरी कर दे
आरव :- "ये क्या कह रही हो, अकेले तुम वहाँ क्या करोगी ???"
(काफी ज़िद के बाद आरव मान जाता है। 5 दिन से उसका कोई फोन नही आया , पीहू और आरव काफी परेशान थे, आया तो आज ख़त`````)
आरव :- मेरे हमसफर,
मैं नीदरलैंड पहुँच कर एक हॉस्पिटल गयी जहाँ मैं अपनी मर्ज़ी से मरना चाहती थी, वहाँ मैं एडमिट हुई। जब तक ये ख़त आपको मिलेगा तब तक मैं दुनिया से जा चुकी होंगी लेकिन आपने कहा था के आपको मेरे चेहरे के आईने में दाग़ नहीं पसन्द और आपने, धीरे-धीरे वो सारे शीशे तोड़ डाले जिसमें मेरा अक़्स दिखता था।
मैं जानती हूँ के आप अंधे नहीं, मेरी तकलीफ आप नहीं देख पाते थे और मैं आपको इस हाल में नहीं देख पाती। मैंने अपनी मर्ज़ी से ये रास्ता चुना है ताकि मैं सुकून से मर सकूँ और आपके सामने मर कर मैं आपको और कोई तकलीफ़ नहीं दे सकती थी।
आज मेरा आखरी दिन है, जब ये उड़ान मेरे हिंदुस्तान की सरजमीं को छुएगी मेरी रूह परवाज़ कर चुकी होगी। पीहू का और अपना ख्याल रखना।
सान्वी
(आरव के हाथों से ख़त गिर जाता है जिसे उठाकर पीहू पढ़ती है। दोनों एक दूसरे से लिपट कर रोते है)