बदनाम औरत
बदनाम औरत
बदनाम औरत यानि की बगल में रहने वाली महिला काँधे तक कटे बाल चमकीली सी आँखें चमकता हुआ गोरा रंग। पुरूष तो है ही महिलायें भी दीवानी है। हर समय व्यस्त; आ रही हैं, जा रही है। लोगों में बडी फुसफुसाहट होती कब कोई छोडने आता तो कभी कोई, कभी कार से कभी मोटरसाइकिल से। रात में, दिन मे, कभी आना, कभी भी जाना। यह महिला कुछ ठीक नहीं लगती है। फिर भी उसके निकलने का लोगो को इंतजार रहता। निकलती तो हँसती खिलखिलाती, सबको दुआ सलाम करती और आगे बढ़ जाती। सबके दुख में खडी होने वाली थी। हमको कभी भी वह गलत नहीं लगी। नाम भी बडा लंबा चौडा था यशोधरा। हम यानि सुधा घर में कैद पढ़ी-लिखी पर बिना दहेज की बहु थे। शादी के बाद से चिडचिडे पति और तानाशाह सास को झेल रहे थे। एक दिन जब पिताजी की याद आ रही थी तो तरकारी जल गयी। तो पति और सास दोनों ने ही हाथ उठा दिया। हमने विऱोध तो नहीं किया चुपचाप घर छोडकर निकल पडीं। आज तो मर ना ही है। चली जा रही थी तभी यशोधरा जी कही से लौट रही थी, हम तो अपनी धुन में ही थे। आ कर पकड लिया हम उनसे लिपट कर रोने लगे। अपने से चिपकाकर अपने घर ले आयी फिर घंटो समझाती रही और बोली तुम को उस घर में जाना है वापस हमने कहा नही। बस कूद गई हमारी जंग में। पति, सास आए, सब बहुत गिडगिडयें, पर हम भी कठोर हो गये। हमारी जीत यशी माँ की वजह से ही है। हम अब उनके साथ रहते है और आजादी की जिंदगी बिता रहे है, कदम से कदम मिला कर समाज के लिये लगे हुये है। इसी लिये किसी को कुछ कहने से पहले 10 बार सोचे। हम अपनी माँ को सलाम करते हैं।