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Madhuri Gambhir

Inspirational

4  

Madhuri Gambhir

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बदलाव

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रोहन से बात करके प्रीति ने फोन रख दिया उसके हाथ अभी भी कांप रहे थे जानती थी रोहन के गुस्से को इसलिए घबरा रही थी 

"आंटी, अंकल आ रहे हैं ?"

कबीर के दोस्त मयंक ने पूछा प्रीति ने हां में सिर हिला दिया  

कबीर सर झुकाये परेशान खड़ा था पापा की हाकी की चोट उसे अभी से महसूस हो रही थी उसकी ऐसी हालत देखकर मयंक ने उसका हौसला बढ़ाने के लिए कहा " इतना घबरा क्यों रहा है हमने कोई गलत काम थोड़े ही किया है पकड़वाया है उन चोरों को जो हमारा मोबाइल छीन कर भाग रहे थे 

" जानता हूं लेकिन तू मेरे पापा को नहीं जानता कुछ सुनने से पहले ही उनका हाथ उठ जाता है " कबीर कांपते हुए बोला। 

" राक्षस है ना तुम्हारा बाप उसे ना तो तुम्हारी परवाह है ना ही वह तुम्हें प्यार करता है गधा है गधा जो दिन भर काम में जुटा रहता है और तुम उसकी मेहनत की कमाई पर आवारागर्दी करते हो " 

तभी रोहन का कड़कता हुआ स्वर कबीर के कानों में पड़ा तो उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गयी उसने घबराते हुए अपनी बात कहने की कोशिश की लेकिन रोहन के तमाचे ने उसकी कोशिश पर पूर्ण विराम लगा दिया इसके बाद तो रोहन बिना रुके कबीर के अवगुणों का बखान करने लगा 

इंस्पेक्टर ने मुश्किल से रोहन को शांत किया और बैठने के लिए कहा तभी वहां मयंक के पिता भी आ गए  

" और चैम्प कमाल कर दिया" मयंक के पिता ने गर्व से उसका माथा चूम लिया 

मयंक सीना का और भी चौड़ा हो गया वही कबीर घबरा कर बेहोश हो गया 

कुछ देर बाद जब उसे होश आया तब भी वह सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था ये देखकर इंस्पेक्टर साहब को गुस्सा आ गया 

" डालो अंदर मिस्टर रोहन को "

हवलदार ने तुरंत आज्ञा का पालन किया और रोहन को पकड़कर सलाखों के पीछे डालने लगा तो रोहन गुस्से से चिल्लाने लगा 

" पागल हो गए हो इस्पेक्टर?....किस कारण से मुझे अंदर कर रहे हो "

" बिल्कुल सही सवाल किया....एक बच्चे से उसकी मासूमियत छीनने के जुर्म में....देखा आपने, कितनी दहशत है कबीर को आपकी....जैसी हम पुलिस वालों को देख कर जेब कतरों को होती है। कैसे पिता है आप? उसे हर वक्त सूली पर चढ़ाए रखते हैं....आपकी इतनी सख्ती उसे देश का अच्छा नागरिक तो नहीं मगर एक डरा सहमा हुआ व्यक्तित्व जरूर बना देगी.....और मैं हरगिज़ ये जुर्म नहीं होने दूंगा आखिर मैं भी एक पिता हूं "

इंस्पेक्टर साहब की बातें सुनकर रोहन ने ध्यान से कबीर को देखा जो बुरी तरह घबराया हुआ था वही मयंक किसी खिले फूल की तरह आत्मविश्वास की खुशबू फैला रहा था....अपनी पत्नी प्रीति का मुरझाया हुआ चेहरा भी रोहन को गलती का एहसास कराने लगा....उसने सब से माफी मांगी और खुद ही जेल की सलाखों के पीछे जाने लगा  

" जो सुधर जाता है उसकी जगह जेल नहीं समाज होता है और अपनों का दिल "

इंस्पेक्टर साहब ने मुस्कुरा कर कहा रोहन ने भी आगे बढ़कर कबीर को गले से लगा लिया आंसुओं की अविरल धारा में अपनी गलतियां बहाने का प्रयास करने लगा। 


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