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Madhuri Gambhir

Inspirational

4  

Madhuri Gambhir

Inspirational

वसुधैव कुटुंबकम

वसुधैव कुटुंबकम

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340


जबरदस्त ट्रैफिक जाम था गाड़ी पिछले 10 मिनट से उसी रेड लाइट पर खड़ी थी.... मौसम भी उमस भरा था हालांकि गाड़ी में एसी चल रहा था फिर भी शालिनी और उसका परिवार परेशान हो रहा था.... 


" मम्मी बहुत भूख लगी है और गला तो सूखा जा रहा है..... "..... 14 साल के समीर ने शालिनी का आंचल खींचकर कहा तो.... शालिनी ने बैग खोला और उसमें से चिप्स और कोल्ड ड्रिंक्स निकालकर सबको दे दिए।


" अब कुछ चैन मिला वरना गर्मी और भूख से तो हालत खराब हो रही थी.... ".... वरुण मुस्कुराते हुए बोला और गाड़ी के स्टेरिंग पर तबला बजाने लगा.... 


बच्चों के चेहरे भी खिल गए थे। शालिनी भी कुछ अच्छा महसूस कर रही थी .....तभी उसका ध्यान बाहर फुटपाथ पर बैठी एक छोटी बच्ची की और गया जिसकी गोदी में एक, डेढ़ साल का बच्चा था.....पसीने से दोनों की हालत खराब थी.... शायद उन्हें भी बहुत प्यास लगी थी यह देखकर शालिनी को दुख हुआ एक बार तो मन हुआ कि गाड़ी से बाहर निकले और उन बच्चों को भी चिप्स और कोल्ड्रिंक्स दें....दे लेकिन फिर उनके मैले कुचैले कपड़े देखकर उसका मन बदल गया।


तभी 8 साल की हर्षिता अटकते हुए सामने खड़े ट्रक का बोर्ड पढ़ने लगी..... "वसुधैव कुटुंबकम"..... 


" मतलब समझती हो इसका..... "....दादी ने प्यार से हर्षिता से पूछा।


" क्या मां आप भी, आजकल के कान्वेंट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों से ये क्या पूछ रही हैं? .... देखा नहीं इसे पढ़ने में ही हर्षिता को कितनी मुश्किल हुई अब अर्थ तो समीर को भी नहीं पता होगा.. .. ".... वरुण, समीर के बालों से खेलते हुए बोला समीर ने भी हां में सिर हिला दिया।


यह देख कर शालिनी मुस्कुराने लगी.... 


" मां, हिंदी....संस्कृत को पूछता कौन है? इसीलिए जो पढ़ रहे हैं बच्चे वही सीख ले.....क्यों उन्हें फालतू के झमेले में डाला जाए.... "


शालिनी ने कहा तो वरुण ने उसकी बात से सहमति जताई यह देखकर दादा जी मुस्कुराए और कहने लगे.... 


" धन्य है तुम जैसे माता-पिता जो अपनी राष्ट्रभाषा का यूं सम्मान कर रहे हैं जब तुम्हारी सोच ही ऐसी है तो बच्चों को कौन समझाएगा इन बातों का मतलब. .... वैसे हर्षिता बेटा, "वसुधैव कुटुंबकम", संस्कृत भाषा के दो शब्द हैं जो भारतीय संसद के प्रवेश द्वार पर अंकित हैं.... "


" लेकिन क्यों?.....ऐसा क्या है इन शब्दों में..... ".... समीर ने उत्सुकता से पूछा।


" बेटा, ये दो शब्द हमारी सभ्यता और संस्कृति के चिह्न हैं.... 


पूरा श्लोक इस प्रकार है.... 


अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।

उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम् ।।


इसका अर्थ है कि हम बिना किसी भेदभाव के संपूर्ण पृथ्वी को एक परिवार समझते हैं।


" अच्छे से समझाओ ना दादा जी.. . ".... हर्षिता मासूमियत से बोली।


दादा जी हंसने लगे हो प्यार से हर्षिता को अपनी गोद में बैठाते हुए बोले..... 


" ठीक है आसान तरीके से समझा देते हैं। अभी थोड़ी देर पहले हम सब को बहुत भूख लगी थी तब तुम्हारी मां ने हमें चिप्स और कोल्डड्रिंक दिए..... क्योंकि हम एक परिवार के सदस्य हैं.. ... अब अगर इस श्लोक के हिसाब से चले तो तुम्हारी मां के लिए हम सब बराबर हैं ....अच्छा बाहर देखो वह एक छोटी सी लड़की बैठी है जिसकी गोद में एक बच्चा है.... अब अगर तुम्हारी मां इस श्लोक में विश्वास रखती है तो उसके लिए तुम में और उस बच्ची में कोई फर्क नहीं है....वह अगर चिप्स और कोल्ड ड्रिंक्स तुम्हें देगी तो उस बच्ची को भी देगी क्योंकि..... उसकी ममता तुम में और उस फुटपाथ पर बैठी बच्ची में कोई अंतर नहीं करती।


" रियली मॉम.... आप कितनी अच्छी हो। सब से प्यार करती हो।".... हर्षिता शालिनी की और लपकते हुए बोली।


तभी समीर बाहर की ओर इशारा करते हुए बोला "दादा जी देखिए, वह अंकल उस बच्ची को पानी की ठंडी बोतल दे रहे हैं इसका मतलब वह भी उन्हें अपना परिवार समझते हैं।"


"ओहो पापा, आप भी बच्चों को क्या सिखाने लगे? आजकल का वक्त ठीक नहीं है.... ज्यादा ही दानवीर कर्ण बनेंगे तो मुश्किल में पड़ जाएंगे..... बच्चों मेरी बात सुनो, दादा-दादी की ये बातें किताबों में अच्छी लगती हैं असल जिंदगी में तो ये मुश्किलों को दावत है".... समीर गंभीरता से बोला।


इस पर दादाजी हंसने लगे.....  

"बच्चों तुम्हारे पापा भी सही है और तुम्हारे पापा के पापा भी.... यह सच है कि आजकल का वक्त बहुत खराब हो गया है.. . . . लोभ, लालच के कारण किसी पर भी विश्वास करना मुश्किल है लेकिन.. . . इन सब से बचने के लिए हमें सावधान रहने की जरूरत है संवेदनहीन होने की नहीं। अगर परिवार का कोई सदस्य गलत कामों में लग जाए तो परिवार उससे दूरी बना लेता है लेकिन उसकी वजह से सब रिश्तो से दूरी नहीं बनाता कहने का मतलब समझे.. . . . "


दादाजी की बात सुनकर समीर मुस्कुराने लगा और उसने अपने कान पकड़ लिए..... 


" समझ गया पापा.... हमें बच्चों को जागरूक बनाना चाहिए ..... ताकि अपना भला-बुरा वह खुद ही समझ सके और ये भी कि उनका पालन हम ऐसे करें कि उनमें इंसानियत भी जिंदा रहे।"


तभी अचानक से शालिनी ने गाड़ी का दरवाजा खोला और.....चिप्स और कोल्डड्रिंक ले जाकर उस बच्ची को दे दिए...... 

खाने का सामान लेकर बच्ची मुस्कुराने लगी . ... शालिनी को लगा कि यह उसकी हर्षिता ही तो है . .... मुस्कुराहट का जवाब मुस्कुराहट से देकर शालिनी गाड़ी में वापस आ गई।


" बच्चों, तुम्हारी मम्मी तो फर्स्ट आ गई....उन्होंने वसुधैव कुटुंबकम को ना केवल समझा बल्कि अपने कर्मों में भी उतारा। दुनिया का हर इंसान अगर एक दूसरे को इसी भावना से देखेगा तो हमारा ये परिवार हमेशा खुश रहेगा।"


दादाजी की बात सुनकर सब खुश हुए और सबने शालिनी के लिए तालियां बजाई।

"पापा सिग्नल चेंज हो गया है....गाड़ी स्टार्ट करें । समीर ने खुश होते हुए कहा तो वरुण भी मुस्कुराया, 

" सच कहा बेटा, सिग्नल चेंज हो गया है . . . . . और ट्रैफिक भी छटने लगा है रोड का भी और हमारे विचारों का ।


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