बदलाव की जिद
बदलाव की जिद
"दादी! एक बात समझ नहीं आती। हम इतनी मेहनत से दिन रात एक करके पढ़ते हैं। नौकरी के लिए ना? अच्छी नौकरी मिलती नहीं। मिलती है तो अपने देश से बाहर।मैं तो अपने देश में रहकर ही कुछ करना चाहता हूँ।"
"यह तो बहुत अच्छी सोच है बेटा।यही सोच होनी चाहिए।अब धीरे-धीरे आज के युवकों की सोच बदल रही है।हमारे देश के ही कई युवक अब *अपने देश और गाँव की प्रगति* के बारे में सोच रहे हैं। केवल सोच नहीं रहे बल्कि कर रहे हैं।अगर तुम जवान लोग ठान लो तो क्या नहीं कर सकते। चाह होगी तो सकारात्मक बदलाव आकर रहेगा।"
"पर मैं एक अकेला क्या कर सकता हूँ?"
"अकेला क्यों? अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर कुछ ऐसा ही काम करो, जैसा राजस्थान के एक गाँव कैरवाली में कुछ युवाओं ने किया।"
"ऐसा क्या किया उन्होंने?"
"कोरोनाकाल तो याद है ना?"
"भला उसे कौन भूल सकता है दादी?"
"उस दौरान कई युवकों की अलग-अलग कारणों से नौकरी छूट गई थी लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।बल्कि गाँव के लोगों के लिए *रोशनी की किरण* बन कर आए।"
"वो कैसे दादी? पोते ने पूछा।
"सुन,गाँव लौटकर निठल्ला न बैठकर उन्होंने कुछ करने की ठानी।"
"क्या?" पोते ने उत्सुक होकर पूछा
"बता रही हूँ। बीच में टोक मत। उन सबने मिलकर सोच विचार करने के बाद एक समिति बनाई। कई युवा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगे हुए थे। हाॅस्टल व पी.जी बंद हो गये थे। खाने पीने की असुविधा के कारण वे विद्यार्थी भी गाँव लौट आए थे। गाँव लौट तो आए, लेकिन पढ़ने का माहौल नहीं मिल रहा था।"
"फिर पढ़ाई कैसे की?"
"जो लोग नौकरी छोड़कर आए थे या छूटी थी, उन सबने कुछ करने की ठानी।उन्होंने15 लोगों के साथ मिलकर एक टीम बनाई और गाँव में ही पढ़ाई और खेल का बेहतर माहौल तैयार करने का फैसला किया।"
"क्या किया उन्होंने?"पोते ने पूछा
"सबसे
पहले तो उन्होंने एक बंद हो चुके स्कूल के जर्जर भवन को श्रमदान से ठीक करवाया। लायब्रेरी शुरू की ताकि गाँव के युवा दिन भर पढ़ाई कर सकें। फिर स्कूल के खेल मैदान को समतल करके ट्रैक बनाया।एक कमरे को फिटनेस सेन्टर में बदल दिया।"
"वो क्यों?फिटनेस सैण्टर की क्या जरूरत थी?"
"ताकि सेहत पर भी फोकस रहे, इसलिए। सेहत ठीक होगी तभी तो कुछ कर सकते हैं।और सुन, अभी वो यहीं नहीं रुके।फिर उन्होंने ग्राउन्ड में बच्चों के लिए झूले व बैठने के लिये बैंच भी लगाईं।उनका नेतृत्व करने वाला था दीपक बुडानिया।ग्राउन्ड के चारों तरफ खूब सारे पौधे भी लगाए।"
"पर इसके लिए पैसे कहाँ से आए?"
" इन युवकों की ऊर्जा को देखकर गाँव के बुजुर्ग व जनप्रतिनिधि भी इस पहल में सहयोग करने लगे। गाँव की *पर्यावरण शिक्षा खेल समिति* बनाई। उनके सदस्य आपसी सहयोग से खर्च के लिए राशि जुटाते हैं। शुरुआत में पूरे प्रोजेक्ट के लिए ₹2 लाख जमा किए जिससे स्कूल भवन मरम्मत व अन्य सुविधाएँ जुटाई गईं। समिति के नौकरी करने वाले सदस्य हर माह ₹400 सहयोग देते हैं। बेरोजगार सदस्यों से साल में एक बार ₹365 लिए जाते हैं। लाइब्रेरी में उन युवाओं के नोट्स व किताबें रखवाई हैं, जिनकी नौकरी लग चुकी है। अब तो नौकरी भी ऑनलाइन हो रही है। पैसा एकाउण्ट में आ जाता है।
समिति का पूरा रिकॉर्ड ऑनलाइन है। यूट्यूब पर अब तक हुए कार्यों की पूरी डिटेल व वीडियो अपलोड किए हैं।
लायब्रेरी में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए पूरा माहौल रहता है। युवा एक दूसरे से महत्वपूर्ण विषयों और मुद्दों पर डिस्कशन करते हैं। *मॉडल पेपर और परीक्षाओं की तैयारी के लिए जरूरी स्टडी मैटेरियल भी लाइब्रेरी में ही उपलब्ध करवाया जाता है।* केवल एक वही गाँव नहीं, *आसपास के कितने ही गाँवों के युवा पढ़ाई करके और वृद्ध व प्रौढ़ खेतीबाड़ी करके अब दिनों दिन तरक्की के नये कीर्तिमान बना रहे हैं।* अब तू ही बता, यह काम ज्यादा अच्छा है या विदेश जाकर नौकरी करना?"