जिन्दगी का टर्निंग प्वाइंट
जिन्दगी का टर्निंग प्वाइंट
बचपन में मैं खाने की बेहद शौकीन थी। मेरी फ्रॉक की दोनों जेबें चिलगोजे, बादाम और किशमिश से भरी रहती थीं। मक्खन घी और मलाई खाने की बेहद शौकीन थी। लेकिन जब चीन ने 1962 में भारत पर आक्रमण किया तो जिंदगी ने एकदम टर्निंग प्वाइंट लिया।
बचपन में महाराणा प्रताप की बहुत सी कहानियाँ पढ़ी थीं कि किस तरह से अनाज के अभाव में उनके बच्चों को घास की रोटी खानी पड़ी। राणा प्रताप... जब पूरे राजपूत शासक अकबर की अधीनता स्वीकार कर चुके थे, लेकिन राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। घास की रोटियाँ खाना मंजूर था। जंगल- जंगल भटकते रहे। पैसे के अभाव में नई सेना का गठन नहीं कर पाए। भामाशाह ने अपना सारा खजाना उन्हें सेना गठित करने के लिए दिया। प्रताप ने दोबारा सेना संगठित की और अकबर से युद्ध किया। मेवाड़ को जीत लिया।
वीर शिवाजी की कहानियाँ भी बहुत पढ़ीं। मुगल शासकों से भारत को स्वाधीन कराने के लिए उन्होंने कितने कष्ट सहे। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की कहानियाँ पढ़कर हम बड़े हुए। न जाने कितने ही शूरवीरों की कहानियाँ पढ़ीं, जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। गुरु गोविंद सिंह के दो पुत्र जिन्दा ही दीवार में चिनवा दिए गए। दो पुत्रों का शीश काटकर उनके सम्मुख थाली में प्रस्तुत किया गया।उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी का शीश इसलिए काट दिया गया... क्योंकि उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया था। बंदा बैरागी के 1200 साथियों को दिल्ली में दिल्ली गेट स्थित खूनी दरवाजे के पास पटक- पटक कर मारा गया था। पहले उनके पैरों को घोड़ों की रकाबों से बाँधा गया और घसीटते हुए पूरे शहर में घुमाया गया। फिर उनको पटक- पटक कर मारा गया। मरने के बाद उनकी खोपड़ियों को नेज़े पर टाँगकर पूरे शहर में घुमाया गया, ताकि लोग मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य हों।गाँधी जी के उपवास की कहानिया भी पढ़ीं।वे 21-21 दिन का उपवास रखते थे।
चीन द्वारा भारत पर आक्रमण करने पर यह सारी बातें जेहन में कौंधने लगीं।इसी चीन ने कभी हिन्दी चीनी भाई- भाई का नारा लगाया था।पंचशील के सिद्धांत अपनाने का वादा किया गया था।वो वादा कहाँ निभाया?भारत पर चढ़ आया।हमारे दिल में भी जोश भर आया और उन दिनों उस पर एक कविता लिखी जिसका शीर्षक था
'भारत की सीमा पर गीदड़ शेरों से लड़ने आए हैं'
वो कविता बाद में लिखूँगी।अभी टर्निंग प्वाइण्ट की बात
दिल ने सोचा यदि हमारे देश में भी अनाज की तंगी हो गई तो क्या होगा ? हमें उतना ही खाना चाहिए जितने की जरूरत है। खाने के लिए नहीं जीना अपितु जीने के लिए जितना जरूरी है,उतना ही खाना है। ऐसे लोग भी तो हैं जिन्हें एक वक्त का खाना भी मयस्सर नहीं होता और हम हैं कि इतना खाते हैं, जितने में कई परिवारों का भरण पोषण हो सकता है। यही सोच कर घर में रसगुल्ले, मलाई, मक्खन, देसी घी, महंगी सब्जियाँ, कुल्फी और अटरम- शटरम खाना बंद कर दिया।दूध दही भी बंद।
कई बार घर में इस बात पर डाँट पड़ती थी। कई बार रसगुल्ले फेंके गए।मुझसे बार-बार पूछा जाता था, "यह बता कि तू ये सब क्यों नहीं खाती? पहले तो कितना कुछ खाती थी। अब क्या हो गया ?"
उन्हें क्या जवाब देती ?
मालूम था कि मैं कुछ भी कहूँगी तो यही कहा जाएगा कि क्या तेरे अकेली के ऐसा करने से देश बदल जाएगा ?
आज भी तो मैं अपने घर में यही सब कुछ अपनाती हूँ, मैं जो दूसरों से उम्मीद रखती हूँँ। पहले स्वयं अपने आचरण में उसे अपनाती हूँ।कोई अपनाए या न अपनाए,यह उसकी मर्जी पर निर्भर।मैं जीने के लिए खाती हूँँ, खाने के लिए नहीं जीती।
बात कहाँ से कहाँ पहुँच गई। मेरी माँ एक दिन बहुत दुखी होकर मेरे कोचिंग इंस्टिट्यूट के प्रिंसिपल के पास पहुँची।(वहाँ से मैंने पत्राचार माध्यम द्वारा पढ़ाई की थी।)।माँ ने उनसे कहा, " इससे पूछो कि यह आजकल नमक से रोटी क्यों खाती है? पहले तो एक कटोरी घी के बिना इसे रोटी हजम नहीं होती थी। आजकल नमक से या बिल्कुल नाममात्र की सब्जी से खाना खाती है। कितनी बार बाजार से लाया सामान इसकी वजह से फेंकना पड़ता है। मैंने कई बार पूछा लेकिन इसने आज तक नहीं बताया। आपको बता दे। नहीं बताएगी तो मैं इसकी पढ़ाई बंद करवा दूँगी।"
बस,उनकी धमकी काम कर गई। मुझे यह बताना ही पड़ा कि, "यदि रोटी खाने से पेट की जरूरत पूरी हो रही है तो क्या जरूरी है कि रसगुल्ले खाए जाएँ,आइसक्रीम खाई जाए,या अन्य बहुत कुछ खाया जाए। देश में ऐसे लोग भी हैं,जिन्हें दो वक्त का भोजन नहीं मिलता। एक हम हैं कि खाना खाने के अलावा भी इतना कुछ खा लेते हैं।"
जिसका डर था, वही हुआ। माँँ ने उनके सामने ही कहा, " जरा इससे यह पूछो कि क्या इसके कम खाने से उन लोगों को खाना मिल जाएगा?" लेकिन हम पर कहाँ असर होने वाला था। बस उसके बाद से जिंदगी ने एकदम से टर्निंग प्वाइंट लिया।दिल में केवल यही विचार हर वक्त पनपने लगा कि कौन सा ऐसा काम करूँ जिससे अपने देश की सेवा कर पाऊँ।
