बचत का पाठ
बचत का पाठ
"मीनू बत्ती बुझा दे बेटा। कितनी बार कहा है की फालतू में उसे जला नही छोड़ा कर।"
"ओहो दादी! आप हमेशा ऐसा ही कहती रहती हो। कभी बत्ती बंद कर, कभी नल बंद कर, छोटी है पेंसिल, तो क्या? उसमें ढक्कन लगा कर काम कर। इतनी छोटी छोटी बातों पर क्यों इतना ध्यान देती हो।" झुंझलाते हुए मीनाक्षी बोली। दस वर्षीय मीनाक्षी जिसे सब प्यार से मीनू बोलते थे, वो सबकी जान थी।
ऐसे तो वो बहुत समझदार थी, लेकिन जब छोटी छोटी बातें उसकी दादी उसको समझती थी, जो जैसे की हर बच्चे को नापसंद होता है, की कोई उसको टोके, ठीक वैसे ही उसको भी पसंद नही था, किसी भी तरह की टोका टाकी। वैसे वो खुद भी इस बात का ध्यान रखती थी की हर चीज का उपयोग जरूरत के हिसाब से ही करे। लेकिन कभी कभी चूक रह ही जाती थी।
आज उसकी झुंझलाहट से दादी को एक पल के लिए दुख हुआ फिर अगले ही पल उसको पुचकारते हुए अपने पास बुलाया। उसको प्रलोभन दिया की वो उसको कहानी सुनाएंगी। दादी की कहानियां मीनू को बड़ी पसंद थी, बस झट से उनकी गोद में सिमट गई।
प्यार से उसके बाल संवारते हुए दादी बोली "एक बार की बात है। एक छोटे से गांव में भानू अपने माता पिता के साथ रहता था। उसके पिता बहुत गरीब थे। घर में नल नहीं था, पानी लेने बहुत दूर, उसकी मां एक पोखर पर जाती थी। पानी साफ भी नहीं था उसे साफ कपड़े से छान कर पीने के लिए इस्तेमाल करते थे।
रोटी ही मुश्किल से जुगाड़ पाते थे, दीये के लिए तेल और भानू को पढ़ने कैसे भेजते? दीया तो किसी तरह कभी कभी जला लेते थे लेकिन पढ़ाई के बारे में कभी सोच भी नहीं पाए थे।
लेकिन भानू को पढ़ने की बड़ी लगन थी। वो गांव की पाठशाला में खिड़की के पास खड़ा हो जाता और पाठ सुनता था। फिर जब बच्चे बाहर आते तब अपने सवालों को उनसे ही पूछ लेता। ऐसे ही वो अपनी शिक्षा प्राप्त कर रहा था।
एक दिन एक बच्चे ने अपनी पेंसिल, जो बहुत छोटी हो गई थी, वह खिड़की के बाहर रखे कूड़ेदान में फेंक दी। भानू ने झट से उस पेंसिल को उठाया और लिखने की कोशिश करने लगा। लेकिन वो बहुत ही छोटी थी, हाथ से बार बार फिसल जा रही थी। तभी उसे एक तरकीब सूझी उसने उस पेंसिल के पीछे अपने गांव के मुनीम जी के पुराने पैन का ढक्कन लगा लिया, और बस उसकी पेंसिल हो गई बड़ी।
फिर कई दिन तक उसने उसी पेंसिल से बहुत कुछ लिखा। तभी से वह, स्कूल के बच्चों से उनकी छोटी पेंसिल ले जाता और मजे से लिखना सीखता रहा।
वही सीख उसको दिन दूनी रात चौगनी तरक्की देती रही। वो अपनी मेहनत और लगन से आगे बढ़ता गया और एक दिन पोस्ट ऑफिस में अफसर बन ही गया।
इतना कह दादी मीनू को देखने लगी। मीनू भी किसी सोच विचार में थी। थोड़ी देर बाद बोली, "दादी... भानू तो बड़ा होशियार निकला। जो चीज दूसरों के लिए बेकार थी उसी से अपनी पढ़ाई कर ली।" यह कह वह तालियां बजाने लगी।
"जानती हो बिटिया रानी वो लड़का भानू कौन था?" दादी ने प्रश्न करा
"कौन था दादी?" मीनू ने उत्सुकता से पूछा।
"वो थे तुम्हारे दादाजी भावेश कुमार ठाकुर"
"अरे वाह, सच्ची।" चहकती हुई मीनू बोली "अब मुझे समझ आ गया दादी, की हर काम जो आप हमेशा बोलती हो, वो क्यों बोलती हो। क्योंकि दादाजी और आप को पता है कैसे आपने अपना जीवन निकाला। छोटी पेंसिल से भी लिखा जा सकता है। पानी भी बहुत मुश्किल से मिलता है। है ना?"
"हां मेरी प्यारी बच्ची" दादी ने उसको स्नेह से गले लगा लिया। वो खुश थी की उन्होंने नाराज होने के बजाय प्रेरणादायक कहानी सुना कर मीनू को अच्छी राह दिखला दी।
