जज़्बात
जज़्बात
ज़रीना आज काम पर जाने में लेट हो गई थी। कारे कारे बदरा आसमान में छाने लगे थे। उसने अपने कदम तेज़ कर दिए, "आज तो आंटी बहुत डाटेगी, उन्होंने कल ही कहा था कि महमान आने वाले है, सुबह जल्दी काम कर जाना। उफ्फ.. ये सपने भी ना बड़े ही गंदे होते है। मेरे को मीठी लोरी सुना कर और सुला दिया। मां आप मुझे जगा नहीं सकती थी क्या??
कितना अच्छा सपना था, कितने दिन बाद मां दिखाई दी थी। बड़ी याद आती है। मां इतनी जल्दी क्यों छोड़ कर चली गईं हमे। सैफू, भी बहुत याद करता है आपको। एक बार भी हमपर दया नहीं आईं। बापू तो आपके जाने के बाद से बहुत पीने लगे है। आपके सारे घरों में मुझे ही जाना पड़ रहा है। कपूर आंटी के घर काम करना अच्छा नहीं लगता। पता नहीं क्यूं? झाड़ू पोंछा कर कर के मेरे हाथ में खुजली होने लगी है।
लेकिन अब, आप तो हो नहीं, हमारा खयाल रखनें को। बापू ने अपने आप को दारू मे डुबो लिया, तो सैफु को तो मुझे ही देखना पड़ेगा ना।"
जरीना आसमान में अपनी मां से शिकायतें करती भागी जा रही थी। आसमान की कालिमा बस्ती जा रही थी। "उफ्फ.. छाता भी से फू ने तोड़ दिया। ना जाने क्या सूझता है उसको। बबलू के घर जाने से रोकना पड़ेगा। कह रहा था टीवी पर कार्टून देखता हूं। उसी में दिखाया था कि बारिश में जब पानी भर जाता है तो छाता उल्टा कर उसको नाव की शक्ल दे कर तैराया जाता है। बस उसी की देखा देखी में सिफू भी पगला गया। उल्टा कर छाता को बैठ गए और तोड़ डाला। है मां, कैसे संभालती थी आप इस बदमाश को?"
चौदह साल की अल्प आयु में ही परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी उसके कंधो पर आ गई थी। महामारी के क्रूर हाथो ने उसकी मां को अपने आगोश मे ले लिया था। पढ़ाई हो नहीं रही थी तो उसने मां के ही घर पकड़ लिए थे। वहीं झाड़ू पोंछा, बर्तन, कपड़े वगैरह का काम करने लगी थी।
वह, एक घर में, एक दिन काम कर रही थी। कपूर आंटी को काम से कहीं जाना पड़ गया। कपूर अंकल थे तो उन्होंने काम के लिए बुला लिया। वो काम कर रही थी कि पीछे से अचानक दो हाथो ने मजबूती से कस कर उसे जकड़ लिया। वो कुछ समझ पाती की उंक्लेने उसे गोद में उठा बिस्तर पर पटक दिया। उसने शोर मचाना शुरू करा तो अंकल ने टीवी ज़ोर से चला दिया।
जरीना को समझ नहीं आया क्या करे। अंकल की आंखों में वासना घर कर चुकी थी। उन्हें जैसे कुछ दिखाई नहीं से रहा था। उन्होंने अपनी कमीज़ और पतलून उतार वहीं फेंक दी। और उसपर लपके। जरीना ने भागने की कोशिश करी तो उसका पैर चादर मे उलझ गया और धड़ाम से गिर गई।
अंकल के सर पर तो शैतान सवार हो गया था। वो ना आव देख रहे थे ना ताव। ना कुछ समझ रहे थे ना सुन रहे थे। उन्हें बस सामने एक औरत का जिस्म दिखाई से रहा था।
ज़रीन का हाथ किसी चीज़ से टकराता है, फूलदान को कस कर पकड़ लेती है। अंकल जैसे ही उसकी ओर पहुंचते है वो हाथ घुमाकर उन पर वार करती है। फूलदान सीधे उनकी बाईं आंख पर लगता है, वो दर्द से तड़प जाते हैं। मौका पा जरीना कमरे से बाहर भाग आती है, दरवाज़ा बंद कर चाबी घुमा देती है।
घर का दरवाज़ा खोल बाहर निकल जाती है। सामने से आंटी आ रही थी। उसकी प्यारी आंटी। वो उनको सब बात बता देती है। आंटी तूरंत पोलिस को खबर कर देती है। जब तक पुलिस आती है तब तक उस घर की कपूर आंटी भी काम से वापिस आ गई थी। वो बड़ी शर्मिंदा होती है अपने पति की हरकत से। जरीना से आंख भी नहीं मिला पाती है।
जरीना को उसकी प्यारी आंटी ही संभालती है। पानी पिलाती है और अपने सीने से चिपकाए उस्को शांत करती रहती है। जरीना काफी देर बाद ठीक होती है।
अपने घर की ज़िम्मेदारियों के साथ साथ, सैफू की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी भी अब उसे ही निभानी थी। काम कम हो गया था। उस दिन आंटी का प्रेम से उसको संभालना, बेहद भाया था। बिलकुल मां की झलक दिखलाई दी थी। उसी दिन से वह आंटी का काम सबसे ज्यादा लगन से करती थी। कपूर आंटी के घर के आस पास वाले घर भी अब छोड़ दिए थे। बस एक घर में और करती थी काम।
बादलों की गड़गड़ाहट तेज़ होने लगी थी। हल्की हल्की बूंदे भी गिर रही थीं। देरी तो हो रही है लेकिन
उसे बारिश बड़ी पसंद है, हमेशा से ही। वो सपनो की दुनियां में पहुंच जाती है, जब भी बारिश होती है। आज भी यह छोटी चचल बूंदे उसको प्रफुल्लित कर रही थी।
वह सोचने लगी की, दूर कहीं दुनियां के दूसरे छोर पर भी ऐसी ही बारिश हो रहीं होगी। कहीं उस छोर पर उसके जैसी कोई दूसरी लड़की बारिश में भीगते हुए नाच रही होगी। कहीं कोई ऐसा भी होगा जो बेखौफ, बेपरवाह हो बस बारिश की बूंदों से उठती खुशबू में खोया होगा। क्याबुसे भी अपने भाई की पढ़ाई, पिता का ध्यान, घर की ज़िम्मेदारी उठानी पड़ती होगी??
इन्हीं खयालों में डूबी हुई थी कि वो अपने काम वाले घर पर पहुंच गई। उसने डरते हुए घंटी बजाई, आज तो उसकी खैर नहीं।
आंटी ने दरवाज़ा खोला और बिना कुछ कहे अंदर चली गईं। "लगता है गुस्सा है। तभी तो कुछ कहा नहीं" जरीना ने मन ही मन सोचा, अंदर आ चुप चाप अपना काम करने लग गई।
दीदी के कमरे से कुछ घुसर पूसर आवाज़ें आ रही थी। पिछले महीने दीदी का एक्सिडेंट हो गया था। स्कूटर से जा रही थी कि ऑटो वाले ने टक्कर मार दी थी। हल्की बहुत चोट थी लेकिन दीदी चल नहीं पा रही थी। आंटी ने कई बार डाक्टर को दिखाने को कहा लेकिन दीदी टाल रही थी।
झाड़ू ले कर दीदी के कमरे में पहुंची तो देखा आंटी और अंकल परेशान से, सोई दीदी के पास बैठे थे। एक अंकल और थे शायद डाक्टर जैसे लग रहे थे।
जरीना ने इशारे से आंटी से पूछा कि क्या वह उस कमरे में काम कर ले?
आंटी ने भी मुंह पर उंगली रखते इशारे से ही उसे काम करने की सहमति दे दी।
जरीना चुपचाप वहां सफाई कर बाहर आ गई। बाकी का काम खत्म कर बाहर जाने के लिए आंटी से बोलने गई तो देखा उनकी आंखों में आसूं थे। उसे समझ नहीं आया कि क्या करे। धीरे से उनके पास जा कर उन्हे इशारे से ही बता दिया कि वह जा रही है। और वह घर से बाहर आ गई।
बारिश तेज होने लगी थी, उसने सड़क पर उधर उधर नजर दौड़ाई तो एक पन्नी उड़ती दिखाई दी, झट से उसे पकड़ लिया और अपना सर ढक लिया। आज उसके विचार मां से हटकर आंटी पर अटक गए थे। उसका मन कर रहा था दौड़ कर जाए और आंटी के गले लग जाए, उनसे कहे, सब ठीक हो जाएगा।
बस यह विचार आया ही था कि उसने अपने कदम रोक लिए। मुड़ी, और वापिस आंटी के घर चल दी। आंटी हैरान तो हुईं उसे देख कर, पूछा भी कि क्या हुआ। लेकिन अब जरीना कि हिम्मत नहीं हुई की उनको गले लगा ले।
वह बोली "आंटी, परेशान मत होइए, जब तक दीदी ठीक नहीं हो जाती, में उनकी सेवा करूंगी। अभी घर जा रही हूं। वहां शाम तक का इंतजाम कर के थोड़ी देर में आती हूं"
आंटी ने भी हां में गर्दन हिलाई और उसको आने को कह दिया।
दूसरे घर वाली आंटी को बता दिया कि कुछ दिन वो काम पर नहीं आएगी। वो आंटी गुस्से में आ गईं बोली की नहीं आईं तो काम से निकाल दूंगी। यह क्या बात हुई कि हफ्ते भर काम पर ही नहीं आओगी। जरीना ने शांति से हाथ जोड़े और माफी मांगी। बोली "माफ़ करिएगा आंटी, आपको तकलीफ से रही हूं। लेकिन मेरी ज़रूरत अभी किसी और को ज्यादा है। आप किसी और को काम पर रखना चाहती है तो रख सकती है"
जैसी उम्मीद थी वैसा ही हुआ। आंटी ने नौकरी से निकाल दिया। जरीना को इसका कोई मलाल ना था। वो तो अपनी प्यारी आंटी को, और दीदी को अपनी सेवा देना चाहती थी। अब वो तन्मयता से उनका काम कर पाएगी। कहीं और जानेंकी जल्दी नहीं रहेगी।
जरीना घर पहुंचकर सेफू को ढूंढ कर लाई, पड़ोस में बबलू के साथ गिल्ली डंडा खेल रहा था। उस्कों सब समझाया। रात तक का खाना बनाया और आंटी के घर पहुंच गई।
दीदी का एक पैर घायल तो था ही जिसको काफी नजरअंदाज कर दिया था। वहीं इन्फेक्शन, अब काफी फ़ैल गया था। आज डाक्टर ने उनका पैर काटने की सलाह दी थी इसी से सब परेशान थे। कोई और उपाय नहीं बचा था। काटा नहीं गया तो जहर पूरे शरीर में फ़ैल जाएगा।
छोटी सी लापरवाही कितनी बड़ी कीमत मांगती है। वहीं लापरवाही उसकी मां को भी लील गई थी। महामारी के ज़रूरी उपाय अपनाए नहीं। मास्क, लगाया नहीं, बस ज़रा सी लापरवाही और उनकी दुनिया उजड़ गई।
" नहीं .. नहीं। मां तो चली गई में दीदी को कुछ नहीं होने दूंगी। उनकी हर ज़रूरत मेरी ज़िम्मेदारी होगी" उसने अपने आप से वादा क रा।
उसी दिन से, जरीना साये की तरह दीदी के साथ रहने लगी। वो कब घर जाती वहां का काम संभाल कब वापिस दीदी के पास पहुंच जाती, आंटी को पता ही नहीं चलता। इतनी मुस्तैदी से उसने दोनों घर का काम संभाल रखा था, जैसे कोई नर्स हो।
आंटी उसकी निष्ठा और धैर्य को देख गदगद होती जाती। उन्हें जरीना पहलेबई पसंद थी। फिर जब उस दिन कपूर ने उसकी इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश करी, और उसको सीने से लगाया था, तब ना जाने क्यूं, वो बड़ी अपनी सी लगी थी। जब भी जरीना को देखती उसको अपनी बहन और उसकी नन्ही बिटिया याद हो आती।
कोरोना के चलते बेचारे दोनों अस्पताल में कितने दिन मौत से लड़े। लेकिन उसने उनको नहीं बख्शा। गया तो साथ ले कर ही गया। जरीना को देख उसकी ममता जाग जाती थी। पहले उसकी मां काम करने आती थी। उसे भी तो इस बीमारी ने खा लिया था। जरीना ने हार नहीं मानी, तुरंत पूरी ज़िम्मेदारी अपने कंधो पर ओढ़ ली। फक्र है उसको उसपर। बड़ी प्यारी बच्ची है।
जरीना ने बाकी के घर छोड़ दिए थे। अब, उसका सारा ध्यान अपने और आंटी के घर पर ही था। सैफू को भी कभी कभी यही लें आती थी। वो भी दीदी के आगे पीछे उनके काम करते घूमता था। आंटी और अंकल जब घर पर होते तब उसे पढ़ा भी देते थे। उसको उनसे पढ़ना अच्छा लगता था। दिमाग भी तेज ही है। जरीना अपने भाई पर बड़ा नाज़ करती थी।
दीदी की दिन रात सेवा करती। उनकी हर छोटी बड़ी ज़रूरत की ज़िम्मेदारी उसने अपने कंधो पर ले ली थी। दीदी उसको अपने कपड़े और साज श्रृंगार का सामान देती रहती थी। दीदी, बड़ा स्नेह करती थी। जरीना को कभी लगता है नहीं था कि यह उसका परिवार नहीं है। सब उसको एक बच्चे की तरह ही प्रेम करते थे। वो भी कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं देती थी।
आंटी के हाथ के बने आलू के परांठे उसे बेहद पसंद थे। बिलकुल उसकी मां के हाथ का स्वाद था। उस दुनिया से मां भी देखती होंगी। वैसे तो जरीना हीं खाना भी बनाती थी,लेकिन इतवार को आंटी बनाती और सबको खिलाती थी। जरीना को कभी भी बिना खिलाए जाने नहीं देती थी।
जरीना के पिता एक दिन अपनी ही शराब के शिकार हो गए और अपनी पत्नी के पास पहुंच गए। जरीना और सैफद्दीन अब अकेले रह गए थे। पिता तो कितनी आसानी से दुनियादारी से मुंह मोड़ गए थे। मां के जाने के बाद से जैसे जीने ही भूल गए थे। अपने बच्चो की तरफ भी नहीं देखते थे। जरीना को इस बात को बेहद दुख था। लेकिन फिर भी उसने हार नहीं मानी थी। शायद बापू अब खुश होंगे यही सोच उसने तस्सली कर ली थी।
धीरे धीरे जरीना ने अपनी मेहनत और लगन से सबका मन जीत लिया था। दीदी अब बैंत के सहारे चलना सीख गई थी, जरीना को अपनी छोटी बहन सा प्यार करती थी। वो भी उनके घर का हिस्सा बन गई थी।
आंटी ने दोनों भाई बहनों को अपने घर का आश्रय दे दिया था। दोनों अब वहीं रहने लगे थे। पहले तो जरीना को अटपटा सा लगा, लेकिन आंटी, अंकल, दीदी सबका प्यार अपनेपन के अहसास से इतना भरा था कि सब कुछ सामान्य सा लगता था। ऐसा लगता मानो आंटी ही उनकी मां है, और अंकल पिता। खुद उसके पिता ने उसका हाथ ना जाने कब ऐसे थामा होगा जैसा अंकल थामते थे। दीदी के लिए कुछ लाते, तो उन दोनों को भी कुछ ना कुछ ज़रूर दिलाते थे।
एक दिन आंटी ने सेफु को ऑनलाइन स्कूल में दाखिला दिला ही दिया । जरीना को जैसे मन मुराद मिल गई वह बड़ी खुश थी। आंटी, उसे, उसकी मां की तरह ही प्यार करती थी।
जब तक ऑनलाइन स्कूल है तब तक, घर से पढ़ना था फिर तो स्कूल जाना था। बड़े स्कूल। जहां पर सुंदर सी यूनिफॉर्म भी थी। अभी नहीं दिलाई थी, आंटी कह रही थी जब स्कूल खुलेंगे तब उसको नई यूनिफॉर्म दिलवाएंगी।
वो दीदी के कंप्यूटर पर अपनी पढ़ाई करता है। थोड़ा बहुत जरीना कि मां के फोन पर भी पढ़ लेता है।
"जरीना, क्या तुम्हे मन नहीं करता पढ़ाई करने का? अपने भाई को देखो, कितना मन लगा कर पढ़ता है। तुम कहो तो तुम्हारा भी दाखिला कर दूं।?" एक दिन आंटी ने बड़े प्यार से उससे पूछा।
जरीना की आंखों में मोटे मोटे आंसू आ गए थे। ऐसा सिर्फ मां ही सोच सकती है। मां अपने सब बच्चो को समान प्यार करती है। किसी मे भी भेद भाव नहीं करती।
अब वो भी पढ़ने लगी थी। दीदी के रूम के पास ही एक छोटा सा रूम था। जिसको स्टोर की तरह इस्तेमाल करते थे। उसे दोनों भाई बहन के पढ़ने का कमरा बना दिया। टेबल, कुर्सी और लैपटाप भी रखा था।
सिर्फ पढ़ने का ही नहीं, दोनों के पास अपना खुद का बड़ा कमरा भी था। जहां पलंग था, गद्दे थे, ऊपर पंखा था और हां ए सी भी था।
जरीना ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी ज़िन्दगी यूं बदल जाएगी। जब वो कहानियां पड़ती, तो सिर्फ गंदे लोगों की मिली थी।खुद उसका पाला भी तो गंदे कपूर अंकल से पड़ा था। उस दिन तो जैसे तैसे बच गई थी। आंटी ने बचाया था और साथ दिया था। तब उसे नहीं पता था कि इतने अच्छे लोग भी हैं। इतने अच्छे, की परिवार ही बन जाते हैं। अपनी किस्मत पर नाज़ था।
उसको मां मिल ही गई थी। दूसरी दुनिया से उसकी मां उसको ढेरों आशीष देती होगी। असली मां ही मां होती है यह सच नहीं है। मां सिर्फ मां होती है। जैसी कृष्णा की थी यशोदा मां।
बरखा बहार रिमझिम बरस रही थी। दूर से किसी मोर की अवाज़ आईं, चिरैया भी चहक रहीं थीं, कलियां भी मुस्करा रही थी। अहा... कितना मधुरम है सब ओर, दूर दुनिया में किसी और को भला क्यूं खोजे। मां के साथ साथ, उसे खुद अपनी पहचान जो मिल गई।
