खुशियों की दीवाली
खुशियों की दीवाली
"चल मिनी, चल उस घर के पास चलते है । कल मैंने साहब को बहुत बड़ी पेटी लाते देखा था।"
" पेटी?? कैसी पेटी?? मनु" मिनी ने उत्सुकता से पूछा।
"पटाखों की पेटी " मनु बड़ी बड़ी आंखें करता हुआ बोला।
"सच्ची?? बहुत सारे पटाखे होंगे उसमे तो?" मिनी ने उत्सुकता से हाथ नचाते हुए कहा।
"हां, होने तो चाहिए। रात में आवाजे जो आ रहीं थीं यहीं से आ रही होंगी। चल ना जल्दी कर, झाड़ू वाले आ गए तो सब झाड़ देंगे। उससे पहले ही हम खज़ाना ढूंढ लाते हैं"
मिनी ने झट से अपनी नीली पट्टी वाली जरूरत से ज्यादा बड़ी चप्पल पहनी और अपनी फ्रॉक का फटा कोना हाथ में दबा कर बाहर भागी। मनु भी अपनी बड़ी सी निक्कर को नाड़े से बांध कर एक पैर में जूता और दूसरे पैर में गत्ते को पट्टी बांध चप्पल का आकार देता चप्पल नुमा कुछ पहना और हाथ झड़ता मिनी के पीछे हो लिया।
दोनो आगे बढ़े ही थे की उनका चार पैर वाला पक्का दोस्त मोती भी आता दिखा। उसको सहला कर साथ ले चले, उस बड़ी कोठी की तरफ जहां से कल पटाखों की आवाज़ आ रही थी।
वैसे उन्होंने सुना था की आज दिवाली है। वो क्या होती है वो नही जानते लेकिन साल में एक दिन वो बड़ी मस्ती करते हैं। अध जले पटाखे जो जुगाड़ लेते हैं।
मनु दस वर्ष का है और मिनी तकरीबन नौ वर्ष की। पिता को कभी देखा नहीं था बस मां थी जो रोज सुबह उनके लिए भात बना कर मजदूरी पर निकल जाती। किसी दिन, देहाड़ी वाली मजदूरी मिल जाती तो कभी नही भी मिलती थी।
दोनो भागते हुए मोती के साथ उस कोठी पर पहुंच गए थे। दोनो ने जल्दी जल्दी रात के जले पटाखों के कूड़े से अपने लिए खजाना ढूंढना शुरू कर दिया था। कहीं लड़ी के बचे हुए छोटे छोटे बम मिले तो कहीं बीच में बुझी हुई पुलझड़ी।
"मनु इसे देख, यह तो नया सा लग रहा है" मिनी ने एक चमकता हुआ अनार उसको दिखाया।
"अरे हां, वाह क्या बढ़िया खोज करी मिनी आज मनाएंगे हम असली दिवाली।"
अपना खजाना समेट दोनो बड़ी मुस्कराहट लिए अपने घर की ओर चल दिए। आज वे बेहद खुश थे आज बहुत मजा आने वाला था। आज दिवाली मनाएंगे। बिलकुल नए अनार के साथ।
