ख्वाबों की उड़ान
ख्वाबों की उड़ान
चंपक वन में आज उत्सव का माहौल था। चारों ओर धूम मची हुई थी। आज उनके यहां राजा चुना जाना था। सभी जानवर कमर कस तैयार थे। प्रतियोगिता होगी और उसी के बल पर राजा का चुनाव होगा। पूरे वन को दुल्हन सा सजाया गया। गुब्बारे, रंगीन कागज की जालियां, सफेद चौक से रास्ता सजाया गया था। सभी जानवर बेहद खुश थे।
शेर सिंह राजा ने इस बार यही करने का विचार करा था। हर बार जनता उनपर लांछन लगाती थी कि वो कभी किसी और को मौका ही नहीं देते है। एक तानाशाह की तरह बस सदियों से राज करे आ रहे हैं।
उमस भरी दुपहरी में सभी जानवर गण रामलीला मैदान में इकट्ठा होने लगे थे।
बंटी गिलहरी को बड़ी उम्मीद थी कि वही चुनी जाएगी। उसके पास प्रभु श्री रामजी का आशीर्वाद जो है। उसकी मेहनत और लगन देख कर ही तो राम जी ने उसको शरीर पर तीन धारियां दी थीं, जब उसके पूर्वज ने रम सेतु बनाने में वानर सेना की मदद करी थी। उस दिन राम जी ने ही तो उसकी मेहनत को समझा था। मन ही मन ' जय श्री राम ' की माला जपने लगी।
भीख़ू खरगोश अपनी ही सपनिली दुनिया में खोया हुए था। उसके पूर्वज ने तो कछुए से दौड़ प्रतियोगिता में हार पा कर उनके सम्पूर्ण वंश पर दाग ही लगा दिया था। कैसे भी करके वह जीत जाए तो कुछ शांति मिले उनके वंश को।
उधर चतुर कौवा अपने आप पर इतराता घूम रहा था। कितनी सदियां बीत गईं, उस ने अपने बुद्धि का प्रयोग कर उस मटकी से पानी जो पिया था जिसमें पानी थोड़ा था और वह बहुत प्यासा। उसने अपनी बुद्धि लगाई और कंकड़ डाल पानी को ऊपर ले आया था ना। एक अलग ही अकड़ी चाल ले इधर से उधर घूम रहा था।
बंटी बंदर कहां पीछे रहने वाला था। कौवे की चाल देख बोला, "भैया जी आप काहे इतना इतरा रहे हैं? भूल गए वो दिन जो अपने बड़बोले पन और लड़ाई की वजह से अपनी रोटी बिल्ली मौसी को खिला दी थी। भूल गए लगता है। पानी क्या पी लिया अपने आप को बादशाह समझ रहे है।
हमें देखें। हम ही थे वो जिसने अपनी जान मगरमच्छ की कुटिल चाल से बचाई थी। उससे यह कह कर की हम तो अपना दिल जामुन के वृक्ष पर ही छोड़ आए है, पहले बताया होता तो उसे भी ले आते, आपकी बीवी की खिदमत में पेश कर देते" अपनी बात कह बंटी खीसे निपोरता इस डाल से उस डाल झूलने लगा।
चूँ चूँ चूहा तो पूरी तरह जानता था कि जीतेगा तो वहीं, टीले पर चढ़, सबसे बोला " देखो, भाइयों और बहनों, आप सब वापिस चले जाएं, जीत तो हमारी ही निश्चित है। वो हम ही थे जिसने बहादुरी से शेर सिंह महाराज को एक दिन शिकारी के जाल से बचाया था। हमने ही वह जाल कुतर कर शिकारी के चंगुल से आजाद करवाया था। तो जीत तो हमारी ही पक्की है।"
"बात तो सही कह रहा है चूँ चूँ । हमारी क्या औकात उसके सामने टिक पाएं हम। फिर भी प्रतियोगिता में भाग तो लेना ही पड़ेगा हमें, नहीं तो शेर सिंहजी नाराज़ हो जाएंगे। उनकी सख्त हिदायत है कि सभी को बड़ चढ़ कर हिस्सा लेना ही है।" हप्पु सिंह हाथी अपने नन्हे बच्चे को सूंड से अपनी ओर खींचता हुआ बोला।
आसमान में बादल घिर आए थे। रह रह कर बिजली भी चमक रही थी। "लगता है आज तो जंगल राज तो बदलेगा ही बारिश के बाद खुशनुमा भी हो जाएगा। आज कुछ अच्छा होने वाला है" पिंकी हिरनी सोच रही थी।
तभी..... बिजली की कोंध के साथ ही शेर सिंह जी की दहाड़ से जंगल गूंज उठा। एकदम चुप्पी छा गई, कुछ देर पहले तक जो खुसर पुसर चल रही थी, अब सब शेर सिंहजी की मौजूदगी में शांत हो चली थी।
रंगा सियार, जो शेर सिंहजी का चापलूस था, आगे आया और सभी को संबोधित करता बोला "शेर सिंहजी की देख रेख मे, आप सभी प्रतिद्वंदियों को इस प्रतियोगिता में शामिल होने की बधाई देते हैं। कई तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन करा गया है। बीच बीच में मनोरंजन के लिए इंतजाम भी करा है। प्रतियोगिता के उपरांत भोज का भी आयोजन करा गया है, सब से निवेदन है कि भोजन करने के बाद ही यहां से जाएं। आशा करते हैं आप सब, अब तैयार होंगे?"
सभी जानवरों ने एक आवाज़ में सहमति प्रस्तुत कर दी। और फिर चारों तरफ खुशी की किलकारियां उठने लगती है। थोड़ी देर बाद रंगा सियार सबको शांत होने के लिए कहता है।
"शांत हो जाए आप सभी। कार्यक्रम की शुरुआत, दिया जला कर शेर सिंहजी करेंगे। आप सबसे अनुरोध है आप उनका स्वागत तालियों से करें"
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच दीप प्रज्वलित करा गया। शेर सिंह जी आगे आए और माइक हाथ में ले बड़ी ही अदब से गला खंकार बोले "कार्यक्रम शुरू करा जाए। आप सब मित्रों को मेरा प्रोत्साहन रहेगा। जीत सिर्फ एक की होती है, लेकिन वो जीत एक को तब मिलती है जब वो किसी और को हरा देता है। इसलिए मेरी नजर में हर कोई विजेता है। हार जीत तो लगी रहती है इसकी वजह से आपसी मतभेद को बढ़ावा ना देना। चलो शुरू करा जाये"
एक बार फिर चंपक वन तालियों की गड़गड़ाहट में डूब गया और कार्यक्रम की शुरुआत शाइना मोरनी ने अपने मधुरम नृत्य के साथ करी। बादल भी उसके नृत्य को देख बरसने को तत्पर होते जा रहे थे।
"पहली प्रतियोगिता, शुरू करी जाए......"
"हां तो, पहली प्रतियोगिता है रस्सा कस्सी प्रतियोगिता। एक तरफ है नील गाय और उसका कुनबा, दूसरी ओर है चींटा, चींटी, चूँ चूँ चूहा और उसका परिवार।" सियार ने ऐलान करा।
यह क्या यह कैसी प्रतियोगिता है? क्या मुकाबला दोनों का? खुसर पुसर् चारों ओर ही रही थी लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई शेर सिंह जी के फैसले को चुनौती देने की।
खैर, खेल शुरू हुआ, एक ही पल में नील गाय जीत कर आ गई। चूचू चूहा और चींटा चींटी मायूस हो अपनी जगह आ बैठे।
"अगली प्रतियोगिता है, पेड़ पर चढ़ने की प्रतियोगिता। चलो, चीकू गीदड़, सुर्मी हिरनी, भोंदू कछुआ, सोनू मछली, जानू मगरमच्छ सब यहां इस निशान पर आ कर खड़े हो जाए। तीन बोलने पर सबको उस सामने नारियल के पेड़ पर चढ़ना है।" सियार ने सबको आवाज़ लगाई और खेल के नियम समझ दिए।
सब एक कतार बना वहां खड़े हो गए। सिटी बजी और गिनती शुरू हुई।" एक... दो.... तीन...." सब जानवर भागते हुए पेड़ के नजदीक पहुंचे और वहीं रुक गए कोई भी ऊपर चढ़ नहीं पाया। सब मुंह लटका वापिस आ गए।
अब बारी थी रस्सी कूद प्रतियोगिता की। हप्पू हाथी और गोलू गैंडा के बीच। वो दोनो भी रस्सी एक बार भी नहीं कूद पाए। कोशिश बहुत करी लेकिन सब व्यर्थ था। समय बर्बाद ज्यादा ना करते हुए आगे के कार्यक्रम करते है। अभी आप सभी का मनोरंजन करने चपला खरगोश अपनी जादुई टोपी के साथ जादू का खेल प्रस्तुत करेगा।
चपला खरगोश आगे आया और अपनी टेबल सजा ली। फिर गीली गीली करता जादू के खेल से सबका मन मोहने लगा। बच्चे तो बहुत खुश थे उसका जादू देख कर। खूब सीटियां बजी, तालियां बजीं।
अब वक्त था अगली प्रतियोगिता का।
गोताखोरी प्रतियोगिता।
चतुर कौवा, मोरनी मोहिनी, जांबाज़ चील, गुल्लू गिलहरी, नीलगाय आप भी आ जाएं, आप सबको इस खेल के लिए बुलाया जाता है। सियार ने ऊंची आवाज़ में सबको पास बुलाया।
सिटी बजते ही सब तालाब की ओर सरपट दौड़े और पानी के नजदीक पहुंच सब ठिठक कर रुक गए। यहां भी कोई विजेता नहीं बना।
बादलों ने अंधकार बढ़ा दिया था। एक के बाद एक प्रतियोगिता हो रही थी। कोई भी जीतता दिखलाई नहीं दिया। झम झूम बारिश शुरू हो गई।
"आप सबको यह बताते खेद हो रहा है कि कोई भी विजेता नहीं बन पाया है। राजा किसको बनाया जाए अभी स्पष्ट नहीं हो पाया। अब बताएं क्या करना है" सियार ने चतुराई से सबकी राय जाननी चाही ।
सब आपस में बात करने लगे। काफी विचार विमर्श के बाद, हकला गधा आगे आया और बोला। हुज़ूर आप ही इतनी सदियों से हमारे राजा है। आज हमें पता चल गया कि कोई भी आपके सामने टिक नहीं सकता। आप अपना पद स्वीकार करे। हम सब आप को ही अपना राजा घोषित करते हैं।"
शेर सिंह अपनी मूंछों पर ताव देता आगे आया और राजा का ताज अपने सर पर रख लिया। इस बार भी राजा शेर सिंह ही बना। आखिर पूरे जंगल में उनसे ज्यादा समझदार और राजा की कुर्सी का दावेदार और कोई जो नहीं था।
बादलों का दामन छोड़ अब बरखा रानी भी शेर सिंह को बधाइयां देने चंपक वन पहुंच गईं। चारों ओर खुशी का माहौल था।