भूतिया ट्रेन या ???
भूतिया ट्रेन या ???
बात उन दिनों की है जब भारत आजाद नहीं हुआ था। अंग्रेज़ों की हुकूमत तले कैद था।गोरों और भारतीयों के बीच गहरा मतभेद था। भारतीयों को कुत्तों की श्रेणी में रखा जाता था। हर तरफ आजादी कि चिंगारी भड़की हुई थी। बाहर आग थी, उससे कहीं ज़्यादा मन में आग लग चुकी थी। आज़ादी पाने की आग।
भारतीयों की दशा अपने ही देश में पराई सी हो गई थी। होटलों, क्लब वगैरह के बाहर लिखा होता "कुत्ते और भारतीय का प्रवेश प्रतिबंधित है"
ऐसे में, ना भारतीय कहीं उठ बैठ पाते, ना कहीं जा पाते। रेल में भी अलग तीसरी श्रेणी के डब्बे थे। पहली श्रेणी में नहीं । एक सिद्ध पुरुष, जो कोमल हृदय , और उच्च विचार वाले थे। समाज में अच्छी पहचान व ओहदा था, उन्हे पहली श्रेणी की टिकट दी गई थी सफर के लिए। वो शालीनता से अपनी सीट पर बैठे, यात्रा कर रहे थे।
बाहर हल्की हल्की बारिश हो रही थी, वो आनंदित हो हल्की फुहार का आनंद ले रहे थे जो खिड़की से अंदर आ रही थी, उनके मुख पर छींटे मार रही थी। रेल की गती के साथ, कभी कभी तीखी मिर्च सी भी प्रतीत हो रही थी। उनके मुख पर असीम शांति और सुंदर मुस्कराहट थी।
"गुरुवर, आप मंद मंद मुस्करा रहे है, कोई विशेष बात है क्या??" उनका साथी बोला।
"नहीं, में तो बारिश का आनंद ले रहा हूं। और सोच रहा हूं पानी कितना कीमती है जीवन में। अभी मैं, दिल्ली के पास के गांव से आ रहा हूं, वहां पानी की बड़ी किल्लत होने लगी है। किल्लत क्या, पानी ही नहीं था।
ना जाने मुझे अंदर से ऐसा प्रतीत हुआ कि मैं उनकी मदद कर सकता हू। सो मैने एक जगह उन्हे खोदने को कहां, मुझे विश्वास था कि वहां पानी मिलेगा। मेरे बजरंग बली जी ने मुझे मार्गदर्शन दिया और उनकी मदद का रास्ता दिखाया। वहां खोदने पर, पानी मिल ही गया। जय बजरंग बली जी की" कह उन्होंने हाथ जोड़े और मन से बजरंग बली, जिनके वे भक्त थे, उनको प्रणाम करा।
उनका साथी उनकी बात से बड़ा प्रभावित हुआ। और उनको उसी क्षण से अपना गुरु मान लिया। उनसे खूब बाते करने लगा। और भी लोग उनके आस पास इकत्रित हो गए और उनसे प्रवचन सुनने लगे।
इतने में ही एक गोरा अधिकारी ट्रेन में चढ़ा। उसने जैसे ही स्वामी जी, महात्मा को, वहां बैठे देखा, वो गुस्से से लाल पीला हो गया।
"टूम काले लोग, हमारा गुलाम है। यह ट्रेन अमने बनाई टूमपर अपनी बादशाहत डीकाने को। टूम यहां फर्स्ट क्लास में कैसे यात्रा कर रहे हो?? उट्रो यहां पे" वो गोरा गुस्से में ट्रेन की चैन खींचते हुए बोला।
ट्रेन तब तक घने जंगल के बीच पहुंच चुकी थी। बीच रास्ते ट्रेन रोक उसने उन्हें उतरने का हुक्म दे दिया। वो शांत, निर्मल भाव से बिना कुछ बोले वहीं उतर गए, और पैदल चलने लगे।
बाहर बूंदे अब भी गिर रहीं थी। पीपल की डालियां हवा के झोंके से लहरा रही थी। फिर जैसे वो पीपल ट्रेन पर गुस्सा दिखाता ज़ोर से झपटा। लेकिन उस की डालियां पहुंच नहीं पाई ट्रेन तक। वो बस गुस्से से अपनी डालियां समेटे बिफरता रहा।
ट्रेन को आगे बढ़ने के आदेश दिए गए। ना जाने क्या हुआ। ट्रेन अपनी जगह से टस से मस ना हुई। बहुत कोशिश करी, लेकिन वो आगे बढ़ नहीं रही थी। किसी ने कहा "पीपल को देखा था, कैसा गुस्सा दिखा रहा था। ज़रूर उसपर बैठा भूत ट्रेन पर सवार हो गया है"
"हां पूरी जांच पड़ताल हो गई। कोई खराबी नहीं मिल रही। फिर भी रेल आगे नहीं बढ़ पा रही है। सच मे भूतिया ट्रेन ही है यह" दूसरे ने कहा
"मुझे लगता है.." विचारणीय मुद्रा से एक सभ्य व्यक्ति बोला "वो महात्मा का अपमान हुआ है, इसी से ट्रेन नहीं चल रही।"
"हां बड़े विद्वान थे वे। एक सूखा ग्रस्त गांव में अभी पानी निकाला था। सच मे सिद्ध पुरुष है वह। उन्हें वापिस बुलाना चाहिए"
बस एक दल को भेजा गया उन्हे ढूंढ कर लाने के लिए। बहुत दूर नहीं गए थे वे। बारिश का आनंद लेने एक वृक्ष के चबूतरे पर बैठे मिल गए। उन्हें आदर सहित ट्रेन में बैठने का आवेदन करा। वे मान गए, और ट्रेन की और चल दिए। उनको आता देख सब तरफ खुशी की लहर दौड़ गई। वो बूढ़ा पीपल भी झूमने लगा था, मानो उनके स्वागत में झूम रहा हो।
और, जैसे जादू हो गया। उनके बैठते ही ट्रेन चल दी। क्या रहस्य था यह कोई नहीं जान पाया। ट्रेन भूतिया नहीं थी, उनकी महानता बड़ी थी।
उनके इस चमत्कार की वजह से वहां एक स्टेशन बनाया गया "करोली" नाम दिया गया।
यह सिद्ध पुरुष, हनुमान भक्त "नीम करोली बाबा" के नाम से मशहूर हुए। यह एक सत्य घटना है। बाबा के कई आश्रम है । गुड़गांव के पास भी उनका आश्रम है जहां उन्होंने पानी निकाला था। नैनीताल के पास उनका बड़ा आश्रम है जहां फेसबुक फाउंडर मार्क जकरबर्ग को प्रेरणा दी थी, वो बात अलग है कि वे कभी उनसे मिल नहीं पाए, लेकिन मार्क का कहना है उनसे आशीर्वाद पाने के बाद ही फेसबुक इतना मशहूर हुआ। स्टीव जॉब्स के जीवन को भी उन्होंने छुआ था। कईयों जादुई, आश्चर्य चकित करने वाले किस्से उनके प्रचलित है।
जय हो नीम करोली बाबा की।
