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yashoda nishad

Fantasy Others Children

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yashoda nishad

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बचपन के हसीन पल...!

बचपन के हसीन पल...!

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समय के साथ सब बीत जाता हैं। ये बात सच है किंतु जो नहीं बिताता वो हैं। हमारी बचपन की यादें। हमारे बचपन जैसे शायद ही अब के बच्चों का बचपन हो। कहाँ हम सब स्कूल से आते ही बस्ता फेंककर निकल पड़ते थे। जेब में चार कंचे लिए। या फिर गिल्ली डंडा लेकर गली के एक छोर पर निकल पड़ते।  

फिर तो भैया क्या ही कहना जब तक किसी के घर से बुलावा ना आ जाए। तब तक खेलते रहते थे। बहुत ही याद आता हैं। बचपन के वो हसीन पल। जब जेब में अठानी चबैनी लिए पूरे गाँव के चक्कर लगाते थे।


शाम को चारपाई बिछ जाती थी। एक सीधी लाइन में तो गाँव के कुछ बुजुर्ग भूतों से लड़ने की कहानीयां सुनाते तो कुछ अल्ह लोग दुकानों पर बैठकर उधार ही गुड़ की चाय पीते थे। वो गन्ने का रस और छाछ अब कहाँ है। अब तो हर एक चीज में मिलावट है।


यहाँ तक कि रिश्तों में भी मिलावट है। अब हर कोई अपने अपने मोबाइलों में लगे रहते हैं। किसी को किसी से कोई भी मतलब नहीं हैं। घर में क्या चल रहा है। सब ठीक ठाक हैं भी या नहीं। कुछ नहीं सही तो एक फोन कॉल कर के हाल चाल ही ले ले। ये कोई अब मुनासिब नहीं समझता है। समय के साथ लाइफ में बदलाव अच्छा होता है। लेकिन यही बदलाव आगे चलकर हमारी बचपन की यादों को वो हसीन पलो को ताजा कर देता हैं।  



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