विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...!
विचित्र मोहब्बत अरुंधति कि...!
रात में चांद अपने पूरे आकार में चमक रहा था, और आज की ये रात अमावस की काली अंधेरी रात थी। मिर्ज़ा पुर रेलवे फाटक के उस पार एक स्टेशन है, और उस स्टेशन से कुछ एक दो घंटे की दूरी पे कब्रिस्तान है, और उस कब्रिस्तान के बाहर ही कुछ लोग खूब एक दूसरे को खरी खोटी सुनाए जा रहें थे, देखने से लग रहा था, जैसे पूरी एक फैमली लग रहे थे वो, दो लड़के थे एक आदमी और एक औरत आदमी की उम्र यहीं कोई चालीस लग रही थी, और उस औरत की उम्र यकीनन तो नहीं पर शायद बतीस लग रही थी।
उन दोनों लड़कों में से एक की उम्र लगभग पच्चीस छब्बीस साल लग रही थी तो दूसरा बीस बाइस साल का लग रहा था। ना जानें क्यों और किस बात पे लड़ रहें थे, दोनों भाई नहीं पता। रात का अंधेरा इतना था की कुछ साफ न तो दिखाई दिया और ना ही सुनाई दिया।
ये किस्सा प्रदीप जी धार्विक कश्यव जी को सुना रहें थे। प्रदीप जी स्टेशन के फाटक पे खड़े होकर हरी झंडी दिखाते है। यहीं इनका जॉब है, और सुबह चाय की चुस्की लेते हुए बड़े ही रहस्यमयी तरीके से सारा किस्सा सुना रहे थे। धार्विक जी बोले अमाँ यार, यह तुम क्या फालतू बातें कर रहें हों तुम हमको क्यों डरा रहें हो तुमको वो लोग कुछ नहीं कहें और तुम इतनी रात का करने गए थे ऊहा। प्रदीप जी बोले हम तो फ्रेश होने गए थे। धार्विक जी ट्रेन ड्राइवर है। और मिर्ज़ा पुर में ही रहते है!
मिर्ज़ा पुर में सबसे बड़ा घर समझ लो इनका ही है, घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं है। बड़ा ही हँसता खेलता और छोटा परिवार है, बीवी है, और दो बेटियां है। बड़ी बेटी शहर में साइंस साइड से पढ़ाई कर रही है कॉलेज की। और छोटी बेटी मिर्ज़ा पुर में ही रह कर दसवीं कक्षा में पढ़ने जाती है।
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टिंग टिंग….
सुहानी ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई हेलो…मैं अरुंधति बोल रही हूं, सुहानी ने कहा और मैं सुहानी अरुंधति बोली मम्मी कहां है, सुहानी ने कहा मम्मी कुछ काम कर रही है। आप हमसे बोलो दी क्या काम है, अरुंधति बोली हमारी कल की ट्रेन है हम कल परसों तक घर पहुंच जाएंगे सुहानी बोली अभी आप कहां हो दी, अरुंधति बोली अभी हम हॉस्टल में है, सुहानी ने कहा ठीक है दी हम मम्मी को बता देंगे। इतना बोल सुहानी ने कॉल रख दिया!
अरुंधति घर जानें के लिए ट्रेन में सफर कर रही थी, बहुत देर से बैठी हुई अपनी सीट पे विंडो के बाहर का नज़ारा देख रही थी, देखते देखते जाने कब उसकी आँख लग गई।
अरु रात में खाना खा कर बाहर टहल रही थी, टहलते टहलते जानें किस धुन में रेलवे फाटक के पास पहुंच गई, और वहीं कुछ देर खड़ी होकर सामने की और ही देख रही थी। और बिना पलकें झपकाए चलती चली जा रही थी नहीं पता किस धुन में थी की घर से इतनी दूर निकल आई और उसे पता ही नहीं चला, वहीं दूर एक घना और बहुत ही सुंदर सा पेड़ था, उस पेड़ के पीछे से एक जोड़ी आँखें अरू को ही देख रही थीं। अरु भी जैसे उसे देखने की चाह में उसकी ही ओर खींच जा रही हो।
धीमे कदमों के साथ वो रेलवे फाटक की और बढ़ने लगी जैसे ही उस पार जानें को हुई के तभी दूर से आती ट्रेन की आवाज़ सुनाई दी और धीरे धीरे ट्रेन की आवाज़ तेज़ होने लगी और बहुत ही देखते ट्रेन तेज़ गति से उसकी ओर बढ़ने लगी.....
शेष…

