बाल कहानी **
बाल कहानी **
"सफलता के लिए संघर्ष करना कठिन है, पर जीने के लिए संघर्ष करना और भी मुश्किल है।
बचपन का दिन किसी भी व्यक्ति के जीवन के बड़े दिन होते है। बचपन में सभी व्यक्ति चिंतामुक्त जीवन जीते है।खेलने कूदने खाने पीने में बड़ा आनन्द आता है। इस समय मुझे रोना आ रहा था जबकि मेरे कई साथी मुझे देख कर बार बार हँस रहे थेl मैं बचपन कई तरह की शरारतें किया करता था।
एक बच्चा आस पास के वातावरण को देख कर सीखता है। इसीलिए हमें उनके आसपास अच्छा वातावरण बनाना चाहिए। बच्चे गिर के उठना सीखते हैं फिर चलना सिखाते हैं। दौड़ना सीखते हैं और फिर अपने पैरों पर खड़े होते हैं फिर वो माता पिता का सहारा बनना सीखते हैं। वैसे तो सीखने की कोई उम्र नहीं होती है पर जब एक बच्चा पैदा होता है तब से वह सीखता ही है मरने तक।
कुछ बच्चे है जिनके अपने गांव की पाठशाला में बस एक ही शिक्षक थे। वे पाठ याद न होने पर बच्चों को कोई तरह से दंड देते थे।
मनुष्य जन्म से लेकर किशोरावस्था के अंत तक उनमें होने वाले जैविक ओर मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों को कहते है , जब वे धीरे धीरे निर्भरता से ओर अधिक स्वतंत्रता की ओर बढ़ते है। चुकीं ये विकासात्मक परिवर्तन काफी हद तक जन्म से पहले के जीवन के दौरान आनुवंशिक कारकों और घटनाओं से प्रभावित हो सकते है इसीलिए आनुवंशिक और जन्म पूर्व विकास को आम तौर पर बच्चे के विकास के अध्ययन के हिस्से के रूप में शामिल किया जाता है। कुछ आयु संबंधी विकास आबादियां और निर्दिष्ट अंतरालों के उदाहरण इस प्रकार है नवजात ०से १ महीना, शिशु १महीना से १ वर्ष, नन्हा बच्चा उम्र १ से ३ बरस प्रिस्कुली बच्चा उम्र ४ से ६ ,स्कूली बच्चों उम्र ६ से १३ ,किशोर किशोरी उम्र १३ से २०। बच्चों के इस तरह विकास को समाज के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और इसीलिए बच्चों के सामाजिक, संज्ञानात्मक, भावनात्मक, और शिक्षा विकास को समझना जरूरी है।
माता -पिता अपने बच्चे के प्रारंभिक बचपन के विकास को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। शिक्षा का पहला अनुभव, बच्चा अपने घर से सीखता है। एक बच्चे के जीवन में उसका पहला विद्यालय पाठशाला ओर परिवार होता है। माता - पिता बच्चे के भविष्य को एक आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
यदि बच्चे अपने घर में अधिक समय बिता रहे है ,तो उनके माता - पिता को उन्हें एक स्वस्थ वातावरण देना चाहिए। एक अस्वस्त्य वातावरण बच्चे के विकास में रुकावट डाल सकता है।
बचपन से बच्चे जो देखते वह सीखते हैं। अच्छा देखे तो बड़े हो कर एक सभ्य व्यक्ति बनते हैं और बुरा वातावरण में रहे तो बुरा बन जाते हैं और फिर उन्हें अच्छा बनाना बहुत कठिन होता है। सब सही कहते हैं बच्चे मन के सच्चे होते हैं।
