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Shagird Sinha

Tragedy

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Shagird Sinha

Tragedy

औपचारिकता

औपचारिकता

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लकड़ी के चतुर्भुज में अपनी माँ का शव फूँकने के बाद त्रिलोक पाठक जी अगले रस्म के लिए घर की ओर प्रस्थान करते हैं। मुफ़लिसी के दौर में बाज़ारू समाज को मृत्युभोज कैसे कराएँ...? इसी उधेड़-बुन में वो लड़खड़ाते कदमों से राह माप रहे थे।

इसी तारतम्य में पाठक जी अपने विचारधाराओं में सामंजस्य बैठाते हुए मृत्युभोज के लिए सामाग्री की व्यवस्था करने लगे। तभी उनके ९ वर्षीय पुत्र ने पूछा- "यह क्या हो रहा है पिताजी ?" पिता ने रूँधे स्वर में कहा- "मृत्युभोज की प्रथा निभायी जा रही हैं।"

तभी बेटे ने कहा- "क्या यह सही है ? दु:ख में तले पापड़, आँसुओं से बने लड्डू और समाज के लोगों का बड़े चाव से खाना। इस मातम में भी पकवान बनेंगे क्या... !" पिता निरूत्तर.... कुछ समय बाद वे बोले:- "क्या करें बेटा औपचारिकता तो निभानी ही पड़ेगी, अगर समाज रूष्ट हो गया तो कल को हमारी अर्थी कौन उठाएगा ?"


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