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Radhika Sawant

Tragedy

4.6  

Radhika Sawant

Tragedy

अपराधी

अपराधी

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 उस दिन सुबह से कहीं मन नहीं लग रहा था। आज हमारी जग्गू हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चली गई थी। पिछले चार दिनों से बीमार थी। उसने खाना पीना बंद कर दिया था। उसे बार-बार उल्टियां हो रही थी। हम उसे थोड़ा दूध छाछ आदि पिला रहे थे पर उसका कोई लाभ नहीं हो रहा था। हमें लगा कि वह ठीक हो जाएगी।

2 दिन तक हम लोग घर की सफाई में व्यस्त रहें क्योंकि घर में सत्यनारायण जी की पूजा थी। इसी बीच उसकी तबीयत और खराब हो गई। दो दिन बाद संध्या समय यह आभास हुआ कि उसका स्वास्थ्य और ज्यादा बिगड़ता जा रहा है।

दूसरे दिन उसे इलाज के लिए अस्पताल ले जाने का निर्णय लिया, और रात में उसे दूध, पानी पिला दिया, और उसने पी भी लिया और वह सो गई।

उस रात सभी को इतनी गहरी नींद कैसे आई इसका कोई जवाब नहीं। रोज रात को कम से कम दो बार मैं जाग जाती हूं पर उस दिन मैं सुबह 6:30 बजे जाग गई। उठ कर बाथरूम की तरफ गई तो मेरी सांसे जैसे अटक गई। हमारी जग्गू पूरी तरह से शांत हो गई थी।

उसकी सांसे रुक गई थी। मैं नीचे बैठ गई और उसे स्पर्श किया इस उम्मीद से कि शायद वह गहरी नींद में हो। पर नहीं सब कुछ समाप्त हो चुका था।

मेरी बेटी संजू को कैसे बताएं? संजू उससे बहुत प्रेम करती थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था मुझे स्वयं पर क्रोध आ रहा था। कदाचित मैंने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया इसीलिए वह हमें छोड़ कर चली गई। यह सब कुछ मेरी वजह से हुआ है। मैं अपने आप को अपराधी मानने लगी थी। मुझे स्वयं से जैसे द्वेष होने लगा था।

मैंने ईश्वर से क्षमा मांगी। उसकी मुक्ति के लिए प्रार्थना की।

जग्गू हमारी बिल्ली का नाम था। अब  मेरी आंखों के सामने वे सारी बातें आने लगी कि कैसे वह हमारे घर में आई और हम सब ने उसे अपना लिया।

एक रात  हमारे घर के पीछे वाली खुली जगह से बिल्ली के बच्चों की आवाजें आ रही थी। आवाजें  पूरी रात चल रही थी। सुबह उठकर हमने जब देखा तो पाया कि वहां बिल्ली के दो छोटे -छोटे प्यारे बच्चे हैं। और मां का कहीं पता नहीं। एक बच्चा भूरे -पीले रंग का था जिस पर बाघ के सामान पट्टे थे। दूसरा बच्चा पूरी तरह से काला कहीं कोई निशान नहीं। दोनों बच्चों को हम उठा लाए। बच्चे भूखे थे उन्हें दूध पिला दिया बच्चे शांत हो हो गए और सो गए।

मेरी बेटी संजू ने उनकी पूरी जिम्मेदारी ले ली। दूध पिलाना। उन की गंदगी साफ करना उन्हें सुला देना आदि वह करने लगी। बच्चे उसकी ओर कृतज्ञता से देखते थे।

बहुत ही जल्दी बच्चे बड़े हो गए। चलने फिरने लगी दौड़ने लगे। हमारे घर

में पहले से ही प्रिंसी नाम की एक और बिल्ली थी। उसे इनका आना कुछ अच्छा नहीं लगा था मगर बाद में उन तीनों  में दोस्ती हो गई। दोनों बच्चों का नामकरण भी हो गया भूरा पट्टेदार बच्चा जो था नर था। उसका नाम सिंबा रख दिया गया तथा दूसरा बच्चा जो मादा थी उसका नाम जग्गू रख दिया गया।

तीनों मिलकर घर में धमाचौकड़ी मचाने लगी। किसी चीज के साथ जैसे कोई कागज, कागज की गेंद आदि के साथ  खेला करते थे ।खेलते समय रास्ते में आई चीजों का गिर जाना तो तय था जैसे कोई चीज गिर जाती और आवाज होती तो तीनों कहीं छुप कर बैठ जाते। घर में हमेशा शोर शराबा होता था पर उनके कारण घर में एक तरह का चैतन्य था। हम सब मंत्र मुग्ध होकर उनके खेल देखा करते थे।

जग्गू दिखने में बहुत ही सुंदर दिखती थी। पूर्णकाला और और चमकदार बदन, लंबी पूंछ, छोटे और सीधे कान, कुछ पीली सी आंखें, उसकी टांगे मजबूत लगती थी, पंजे चौड़े, चेहरे पर हमेशा शरारती भाव। शेरनी जैसी चाल ।कुछ लोग उसे छोटा बगीरा भी कहने लगे।  धूप में उसके काले रोए और भी चमकदार लगते थे

शरारती भी हो बहुत थी। एक बार वह नारियल के पेड़ पर चढ़ गई नारियल का पेड़ काफी ऊंचा था जहां से उसे उसे उतरना मुश्किल था। वहां जाकर फंस गई और चिल्लाने लगी। थोड़ी देर बाद कौए आकर उसे चोंच मारने की कोशिश करने लगे। हमारी समझ नहीं आ रहा था कि अब कैसे उतारे। आस पड़ोस के लोग भी वहां जमा होकर देखने लगे। पेड इतना ऊंचा था किसी का चढ़ना भी संभव नहीं था। किसी तरह वह स्वयं ही फिर उतर कर आ गई और सबकी जान में जान आ गई।

इसी तरह एक दिन वह किसी और ऊंची जगह पर चढ़ गई। जिसके लिए हमें पड़ोसी के किचन में जाकर उनकी किचन की खिड़की से लकड़ी से उसे वहां से दूसरी जगह गिराना पड़ा और तब जाकर उसे निकाल सकें।

ऐसी अनेक शरारतें  वह करती रही। और हमारे साथ साथ पड़ोसियों को भी परेशान करती रही। किसी को उसकी शरारतों से कोई शिकायत नहीं थी। फिर वह हमसे क्यों रूठ गई?

वह हम सब से बहुत प्रेम करती थी। अगले 4 दिन तक उसके दोनों साथी  प्रिन्सी  और सिंबा उसे ढूंढते रहे। हमारे चेहरों की ओर देख कर म्याऊं -म्याऊं करके आंखों में सवाल लेकर हमारे आगे पीछे घूमने लगे। उनकी आंखों में जो सवाल थे उनका हमारे पास कोई जवाब नहीं था। क्या वे भी हमें अपराधी मान रहे थे? और तब मुझे खुद से और घृणा हो जाती थी। मैं ईश्वर से तो क्षमा मांग सकती थी पर स्वयं से क्षमा मांगने का साहस नहीं हो रहा था। बार-बार मेरा मन कह रहा था कि तुम अपराधी हो।



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