अपने मित्रों के साथ एक दिन
अपने मित्रों के साथ एक दिन
मेरी एक सहेली बहन संगीता ।बचपन के साथी मेरे घर की एक दीवार में एक खुला भाग जिसमें खिड़की नहीं बस लकड़ी का दरवाजा छोटा सा पहले जमाने के लोग आपस में चीजों को बातों को आपस में बाटते और बातें करते मैं भी बहुत बातें करती हटना मुश्किल होता।
मेरी शादी जल्दी हो गई और वो अकेले रह गई मेरी विदाई पर बहुत रोई थी वो और मै भी ।शादी के बाद मैं उससे मिलती थी काफी समय हो गया था मैं अपनी जिंदगी में रच बस गई पर वो उलझनो में फँस गई। 20 साल बाद अचानक वो मेरी मम्मी से मिली बाजार में मेरा नंबर माँग कर फोन किया बहुत खुशी हुई वो उदास थी जी भरकर हम रोए।
उसकी शादी जल्दबाजी मे शराबी निकम्मे से हुई हालात सही नही थे ।मैं देहरादून से अपनी मम्मी के पास उत्तरप्रदेश गई और उसके घर गई ।बहुत अच्छा लगा उसे भी और मुझे भी। मैंने उसका दु:ख लिया नहीं पर सुना हिम्मत दी।
बेटियो की माँ थी। आज वो अपना व्यूटी पार्लर चलाती है जीविका का सहारा। मैं आज भी उसके साथ हूँ और सदा रहूँगी। उसके साथ बीताए पल मेरे लिए एक धरोहर है, ईश्वर का साथ लगता है और नयन सजल।