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हरीश कंडवाल "मनखी "

Inspirational

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हरीश कंडवाल "मनखी "

Inspirational

अपनापन

अपनापन

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सौरभ स्कूल से लौट रहा था रास्ते में एक कुत्ता का बच्चा अपनी मां से बिछुड़ गया था और कूं कूं की आवाज कर खोजने की कोशिश में लगा हुआ था। सौरभ ने कुत्ते के बच्चे को गोद में उठाया और उस पर हाथ फेरा, कुत्ते के बच्चे को मानो जैसे सहारा मिल गया होगा। सौरभ को अचानक क्या सूझा और वह उसे गोदी में लेकर घर आ गया। 


  सौरभ की मां को कुत्ते ज्यादा पसंद नहीं थे, पहले तो उसे वापिस करने को कहा लेकिन सौरभ के हट और दादी के समर्थन मिलने से मां कुत्ते के बच्चे को रखने के लिए राजी हो गयी। सौरभ ने प्यार से कुत्ते के बच्चे का नाम जिम्मी रख दिया। जिम्मी सौरभ का दोस्त बन गया, सौरभ और जिम्मी एक दूसरे के साथ खेलते रहते। सौरभ उसका पूरा ख्याल रखता, खाने से लेकर नहलाने तक। जब भी सौरभ कहीं से आता था उसका वह पूंछ हिलाकर स्वागत करता और कभी दोनों पैर उसके गले में डालकर खड़ा हो जाता। सौरभ को जिम्मी में अपनापन नजर आता। 


सौरभ और जिम्मी की दोस्ती पूरे परिवार में मिसाल थी, कई बार सौरभ की मां जिम्मी के शैतानी जैसे जूते, मौजे या कपड़े फाड़ने पर उसे फटकारती तो जिम्मी के पक्ष में सौरभ खड़ा हो जाता और जब कभी सौरभ को मां कुछ कहती तो जिम्मी गुर्राने लगता। इधर जिम्मी बड़ा हो गया और सौरभ का 12 वीं का बोर्ड था। सौरभ रात को देर तक पढ़ाई करता तो जिम्मी उसकी कुर्सी के पास बैठा रहता, सौरभ उसे सोने के लिए कहता तो वह पूंछ हिलाकर अपनी मौन सहमति व्यक्त करता, मानो कहता कि दोस्त तुम्हारा साथ छोड़कर भला मैं अपनी दोस्ती के साथ कैसे दगाबाजी कर सकता हूँ, जानवर जरूर हूँ लेकिन भावना तो मेरे अंदर भी वैसी ही भरी हैं, बस मेरा व्यक्त करने और आपके समझने के ऊपर निर्भर करता है।


  क्रिकेट खेलने से लेकर गाय चुगाने के लिए जिम्मी सौरभ के साथ जाता, सौरभ के बगल में ही बैठना, खड़ा होना, उसके पीछे पीछे चलना जिम्मी के आदतों में शुमार हो चुका था। सौरभ भी जिम्मी की बखूबी देखभाल करता था। बोर्ड के परीक्षा परिणाम आने के बाद सौरभ ने ग्रेजुएशन के लिए दाखिला ले लिया, और साथ में फौज और पुलिस में भर्ती के लिए शारीरिक तैयारी करने लगा। सौरभ सुबह 05 बजे दौड़ लगाने सड़क पर निकलता तो जिम्मी भी उसके पीछे हँफाता हुआ दौड़ता, सौरभ उसको कहता जिम्मी तुम वापिस जाओ, तुम्हें कौन से भर्ती होना है, या सिपाही बनना है, तुम घर पर ही रहो, जिम्मी पूंछ हिलाकर मौन स्वीकृति देता कि मुझे भर्ती तो नहीं होना है, लेकिन दौड़ तो आपके साथ लगानी ही है, घर में बैठकर बेकार में मोटा हो जाऊंगा तो शिकार करने लायक शरीर भी नहीं रहेगा। आगे आगे सौरभ दौड़ता पीछे पीछे जिम्मी। दोनों दौड़ लगाकर घर आते और नाश्ते में मट्ठा पीते। 


  कुछ दिनों बाद लैंसडाउन में भर्ती खुली और सौरभ भर्ती होने चला गया। जिम्मी उसको सड़क तक छोड़ने आया और टपकते आंसुओं और पूंछ हिलाकर मानो अग्रिम शुभकामनायें दे रहा हो कि दोस्त जरूर सफल होकर आना, मैंने तुम्हारी मेहनत देखी है। इधर सौरभ गाड़ी में बैठ जाता है, और जिम्मी कुछ दूर तक गाड़ी के पीछे दौड़ लगाता है, और गांव की सीमा समाप्त होने पर घर वापिस लौट आता है। जानवर बेजुबान जरूर होता है लेकिन वह अपनी ड्यूटी का धर्म बखूबी निभाना जानता है, जिम्मी हमेशा घर में कोई भी मेहमान या घर के सदस्यों को छोड़ने के लिए सड़क तक अवश्य जाता है, यह शिष्टाचार बेजुबानों पर स्वयं ही आ जाते हैं। 


  इधर सौरभ का फिजीकल और मेडिकल पास कर लेता है, कुछ दिन बाद रिर्टन भी पास करके उसका चयन भारतीय सेना में हो जाता है, यह खबर सुनकर पूरे गांव में खुशी का माहौल है, जिम्मी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहता है कि दोस्त अब तो मैं ट्रेनिंग पर जा रहा हूँ, घर में रखवाली ढंग से करना और कोई शैतानी मत करना वरना मां तुझे बहुत मारेगी और मुझे भी गाली देगी, यह सुनकर जिम्मी पूंछ हिलाकर उसकी बातों पर सहमति व्यक्त करता है। 

कुछ दिन बाद सौरभ ट्रैनिंग के लिए निकल जाता है, सौरभ की इधर जाने की तैयारी हो रही है, उधर जिम्मी एक कोने में दोनों पैरो के ऊपर सिर रखकर चुपचाप बैठा हुआ है, उसके आंखों से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही है, वह व्यक्त नहीं कर पा रहा है, आज उसका अपना दोस्त उसे छोड़कर जा रहा है, उसको बिछुड़ने का गम और अपनापन टूटने का दर्द हो रहा है। 


  सौरभ अपना सामान लेकर आंगन में निकलता है तो जिम्मी पूंछ से अभिवादन करते हुए आगे आगे रास्ता लग जाता है, सौरभ की मां कहती है कि देखो इस बेजुबान को कैसे समझ गया कि आज इसका साथी जा रहा है। सौरभ को छोड़ने के लिए जिम्मी सड़क तक आता है, सौरभ उसके गले में हाथ डालता है और पुचकारते हुए उसको घर जाने को कहता है, जिम्मी मोटे मोटे आंसू छलकाते हुए दोस्त को जाने की इजाजत देता है और फिर जल्दी मिलने का वादा लेता है।  


  इधर सौरभ गाड़ी में बैठ जाता है और उधर जिम्मी कुछ देर तक गाड़ी के पीछे दौड़कर अपनी दोस्ती का धर्म निभाता है। उदास मन से जिम्मी घर आ जाता है, अपने व दोस्त के कमरे में अपने स्थान पर चुपचाप लेट जाता है। सौरभ की मां उसका पूरा ध्यान रखती है, लेकिन जिम्मी अब उस कमरे में ही ज्यादा रहता है और सौरभ की तस्वीर देखकर पूँछ हिलाता रहता है, मानो कहता है कि दोस्त फौज की नौकरी करेगा तो मुझे भूल मत जाना, और जल्दी ही घर आना। 


  नौ महीने की ट्रेनिंग के बाद जैसे ही सौरभ घर आता है, जिम्मी उसके स्वागत के लिए पहले ही सड़क पर मां के साथ पहुँच जाता है, सौरभ को देखकर वह गाड़ी के चारों ओर चक्कर लगाकर जोर जोर से भौंकने लगता है, जैसे ही सौरभ नीचे उतरता है दोनों पंजे उसके गले में रखकर पहले तो रोने की आवाज निकालता है फिर उस पर खूब प्यार लुटाता है, सौरभ भी उसके पूरे शरीर में हाथ फेरकर उसको चुप होने को कहता है, जिम्मी का खुशी का ठिकाना नहीं होता है, उसके बाद वह दो चार चक्कर इधर उधर दौड़ लगाकर अपनी खुशी का इजहार करता है।

  

  सौरभ की जब तक छुट्टी रहती हैं तब तक जिम्मी को खाने पीने के लिए चिकन मटन अंडे सब मिलते हैं, दोनों साथ में टाइम पास करते हैं, जब वह वापिस ड्यूटी जाता है तो जिम्मी उदास हो जाता है, और कमरे में बैठकर हर रोज सौरभ के आने का इंतजार करता है, शायद बेजुबान का यह अनोखा अपनापन ही है कि जो इतना इंतजार करता है। 



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