Neeraj Saraswat

Abstract

4.3  

Neeraj Saraswat

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अनुत्तरित प्रश्न

अनुत्तरित प्रश्न

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कुछ रिश्ते अनायास ही बन जाते हैं ।दो अजनबी जिंदगी के किसी तीखे मोड़ पर टकरा जाते हैं और फिर आगे का सफर साथ में शुरू करते हैं ।कंचन और नीरव भी इस रास्ते के मुसाफिर थे।जिनका रास्ता एक था पर मंजिल अलग।

"कंचन! तुम मुझसे प्यार क्यों नही कर सकती? क्या मैं तुम्हारे प्यार के लायक नही?" नीरव ने पूछ ही लिया।

" सुनो नीरव! जिसे तुम अपना प्यार कहते हो वैसा मैं तुम्हे नही कर सकती क्युकी उसमे शारीरिक लगाव है,लेकिन मैं तुमसे जो प्यार करती हूं उसमे केवल आत्माओं का लगाव है" तुम जानते हो ना हम दोनो अपनी सामाजिक बंधनों से जुड़े है और मैं अपने पति को बेहद प्यार करती हूं और तुम भी......."कंचन का ये हर बार का जवाब था।

" हां यार ये सच है पर ये भी सच है कि मैं फिर भी तुम्हे सच्चा प्यार करता हु अपने सामाजिक दुनिया के साथ भी", जैसे मीरा ने मोहन से....।

" अच्छा! मैं तो तुम्हारे प्यार के इस रूप को स्वीकार कर चुकी हूं और चाहती हू कि तुम भी मेरे प्यार को उसी रूप में अपनाओ जैसा मैं तुम्हे करती हूं"

" पर मेरी फीलिंग्स"?

"मैं तुम्हारी फीलिंग्स का सम्मान करती हूं क्योंकि ये मानवीय और पौरूषेय है पर तुम मेरे स्त्रीत्व को मत नकारो प्लीज!'

"पर,हम दोनो अगर ऐसे ही अलग अलग सोच रखेंगे तो प्रेम पूर्ण कैसे होगा? कंचन! "

" जो प्रेम है वो पूर्ण है और जो पूर्ण है वही प्रेम है ',प्रेम व्यक्त होकर भी अव्यक्त है,प्रेम बीज है और साथ ही वृक्ष भी,प्रेम पुरुष है और स्त्री भी,प्रेम सहयोग है और वियोग भी या यूं कहूं प्रेम ईश्वर की तरह है जो है भी और अनुभूत भी होता है पर हम उसे पा नही सकते बस उसके हो सकते हैं। क्या हम प्रेम करते हैं नीरव?


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