अंतर्मन
अंतर्मन
कहता है ये अंतर्मन
मै हूं अब कितना निर्धन।
जीवन की अभिलाषा पूरी,
करने गुजर रहा है ये जीवन।
खुद में खुद को ढूंढ रहा है,
मेरा प्यासा अंतर्मन।
अद्भुत जीवन की क्षमता को,
लिए कसौटी फिरता मन।
कहता है ये अंतर्मन,
मै हूं अब कितना निर्धन।
आओ थोड़ी पहल करें हम,
चलो सुधारे अपना मन।
लेकर ज्योति हाथ में अपने,
सुखद करें अपना जीवन।