अंतरद्वंद्व

अंतरद्वंद्व

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"मैं जो भी सोचती हूँ या जो मेरे मन में है वही मेरे आचार विचार में है। तुम्हारी तरह नहीं हूँँ, साफ साफ कहो तुम मुझसे क्या चाहते हो।"

नीरू भड़क कर अमर से अपने को अलग करती बोली।

"मेरी जान, बहुत भोली हो तुम, दो साल से हमारे सम्बंध है, तुम नहीं जान पाई। मुझे क्या चाहिये।"

अमर के होठों पर कुटिल हँसी फैल गई।

अपने अस्त व्यस्त कपड़ों को नीरू ने ठीक किया। उसने गहरी सांस ली, कुछ कुछ साफ हो रहा था। वो और अमर एक ही ऑफ़िस मे कार्यरत थे। नीरू की पोस्ट अमर से बड़ी थी। साधरण से भी साधारण रुप रंग की नीरू की एक आँख की पुतली तिरछी थी। ऑफिस में लोग उसे कही पे निगाहे कहीं पर निशाना का सम्बोधन करते ये बात वो अच्छे से जानती थी पर मन और शरीर ये नहीं जानता न। वो तो संपूर्ण प्यार का भूखा होता है।

ऐसे मे उसके अधीनस्थ अमर से मुलाकात हुई। मुलाकातें अपनत्व में बदली फिर प्रेम की सीमाओं को पार कर गई।

अमर ने उसे बता दिया था कि वो विवाहित है। शादी के बाद ये पता लगा कि वो मानसिक रुप से बीमार है, साथ शरीर से भी अपूर्ण है। सन्तान सुख तो दूर वो मेरी शारीरिक अवश्यकता पूरी करने मे अक्षम है। ये सब बताते बताते अमर भावुक हो गया।

"मैं उसे जल्दी ही तलाक दे दूँगा और तब मैं और तुम शादी कर लेंगे।"

स्त्रियाँ फरेब को पहचानने में कमजोर हो जाती है, उस समय जब वे खुद अपने लिये किसी का साथ चाहती है। ये तलाश की उनकी चरम सीमा पर होता है। नीरू भी अपने अकेलेपन से घबरा गई थी उसे एक साथी की जरुरत थी जो उसके जीवन में प्यार भरता। बस, आकन्ठ डूब गई अमर के प्यार में। एक को प्यार की तलाश थी और दूसरे को स्त्री के शरीर सुख की।

आज जब दोनो आलिंगनबद्ध एक दूसरे के आगोश मे थे नीरू ने कहा- "अमर मैं प्रेग्नेंट हूँ, टू मंथ।"

अमर चौंक गया, बाहु बन्धन ढीले पड़ गये।

बोला- "ये क्या,मेरी पत्नी है, जो तुम्हारी तरह कानी नही है, सुन्दर, बड़ी बड़ी आँखे है उसकी। हाँ थोड़ी गुस्सेल है पर पागल नही है और वो अपने मायके गई है डिलीवरी के लिये।"

नीरू सन्न रह गई बोली- "तो अब तक जो होता रहा वो तुम्हारा मुझसे प्रेम नहीं था, तुमने मुझे धोखा दिया।"

"मैंने किसी को धोखा नहीं दिया, हम दोनों ने अपनी अपनी जरूरतें पूरी की है।"अमर ने कहा।

"मतलब तुमने प्यार का नाटक किया, मैंने तो तुम्हारे प्रेम मे अपना सब निछावर कर दिया।"

"मैंने जबरजस्ती तो नहीं की थी, तुमने खुद ही अपना सब कुछ मुझे सौंप दिया। भले घर की लड़कियां ऐसी नहीं होती मैडम नीरू।"

अमर तेजी से बाहर निकल गया।"

ओह ये क्या कर लिया मैंने, इतनी विचार हीन कैसे हो गई। अब देर करना ठीक नहीं, नीरू महिला डॉ से मिलने अस्पताल की ओर चल पड़ी। मन में अनेक अंतर द्वंद लिये इस बहुरूपिये के बीज को पलने दे या........।


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