अनसुलझी सी जिदगी
अनसुलझी सी जिदगी
कहते हैं! जिंदगी में कभी पीछे पलटकर नहीं देखना चाहिए लेकिन फिर क्या करे... जब जिंदगी फिर उसी मोड़ पे ले आयें। जहाँ सदियों पहले दो राहो पे लाकर छोड़ा हो। शायद किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था इसलिए उस पूर्णिमा की रात को अचानक से उसके सामने लाकर खड़ा कर दिया।
बहुत आसान था उसके सामने से निकल जाना पर न जाने नीरज के पाँव उसे देखते आहिस्ता क्यों हो गया था। वो सारे दृश्य बिजली की तरह एक पल में नीरज के आँखों में समा-सा गया। ऐसा क्या था? किसकी गलती थी? जो एक पल में सारे रिश्तें को भुलाकर आखिर फैसला बिछड़ने तक आ गया। लाखों सवाल उसी दिन कि तरह आज फिर से मन में चलने लगा बस फर्क एक चीज का था उस दिन से अलग आज दिल बहुत शांत था।
जीवन में कभी कभी समय ऐसा भी सवाल लेकर आता है जिसे किसी एक का चुनाव करना पड़े तो जीवन ही खत्म सी लगने लगती है जैसे कि अगर सवाल यह हो कि आपको 'जल और भोजन' में कोई एक चीज का चुनाव करना हो तो आप क्या करेगें ठीक इसी प्रकार का सवाल कभी न कभी हर किसी इंसान के जीवन में आता है और एक दिन नीरज के जीवन में भी आया। लेकिन सवाल थोड़ा-बहुत हट कर था 'जीवन में संघर्ष और प्यार को पाने की चाहत' जो इंसान बचपन से एक साथ रहा हो और उसी इंसान से एक-दूसरे को प्रेम हो जाये और एक दूसरे को अपना जीवनसाथी मान ले इस दुनिया में वह इंसान कितना खुशनसीब होता है। नीरज को भी कुछ ऐसा ही हुआ था अपने स्कूली जीवन में उसे एक साथी मिल गई थी कहते हैं न कि गंगा का उदगम हिमाद्री से होती है और लाखों किलोमीटर के सफर के बाद समुद्र में जाकर मिल जाती हैं ठीक उसी प्रकार का प्यार दोनों प्रेमी का था। एक-दूसरे के पाँच साल साथ रहने के बाद नीरज अपनी आगे कि पढ़ाई के लिए दूसरे शहर में चला गया। इस दौरान रेशमी घर में अपनी माँ से विधालय की सारी कहानियाँ सुनाया करती थी क्योकिं आवासीय विधालय होने के कारण रेशमी अपने घर तभी जा पाती थी जब विधालय में कोई आवकाश हो। कहानियों में उसने नीरज की भी चर्चा की और सारी बाते बताई।एक माँ अपने बच्चें को कभी दुःखी नहीं देख सकती है इसलिए रेशमी की खुशी को देखकर उसने चाह कर भी मना नहीं कर सकी।इस तरह से दोनों के रिश्तें और भी मजबूत हो गये। नीरज के दूसरे शहर में रहने के कारण अब मोबाईल के माध्यम से सप्ताह में रविवार के दिन ही दोनों की बाते हो पाती थी।
अब नीरज की बाते भी कभी- कभी रेशमी की माँ से हो जाया करती थी इस तरह से रिश्ते में कब सात साल बीत गया पता भी नहीं चला।स्कूलिंग की पढ़ाई के बाद नीरज दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और ई.ए.एस. की तैयारी भी साथ- साथ करने लगा। रेशमी की भी स्कूलिंग समाप्त हो गई और वह मेडिकल की तैयारी घर पर रह कर करने लगी।दोनो की जब भी बाते होती थी तो किसी बात को लेकर आपस में असहमति हो जाने पर नोक-झोंक भी हो जाती थी। इस तरह से समय बीतता गया दोनों अपने-अपने भविष्य बनाने में लग गये। अब दोनों कि महीनें में एक-दो बार ही बाते हो पाती थी । फिर अचानक से एक दिन नीरज को रात नौ-दस बजे के करीब काॅल आता हैं और रेशमी एक-दूसरे से अलग होने की बाते करती हैं नीरज बहुत मनाने की कोशिश करता है लेकिन रेशमी कोई भी बात नहीं मानती है फिर नीरज रेशमी की माँ से बात करता हैं। माँ भी कुछ भी बताने से मना कर देती हैं क्योंकि उसे कोई भी कारण नहीं मालूम होता है बस इतना कहती है कि अब शायद तुम दोनों की सोच बदल गई है।
नीरज फिर रेशमी से बात करता है वो सारे पल याद दिलाता है पर रेशमी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं होती है फिर नीरज फैसला करता है कि वह उससे मिलने आयेगा नीरज रेशमी से मिलने के लिए दिल्ली से फ्लाइट लेता है फिर वो रेशमी के शहर पहुंचकर वहाँ एक होटल में रूकता है रेशमी आती है एक-दूसरे के सामने देखकर नीरज को ऐसा लगता है कि अब वो रेशमी नहीं रही फिर नीरज रेशमी की माँ से भी मिलता है बहुत सारी बाते होती है वो कहती है की इसके पापा अब इसका शादी कर देगें। रेशमी इस बात को लेकर कभी नीरज से कोई चर्चा नहीं की थी। रेशमी को विधालय से निकले हुए भी तीन साल हो गये थे और अभी तक वो मेडिकल कॉलेज नहीं ले पाई थी शायद इसके लेकर रेशमी के घर वाले शादी के बाड़े में सोच रहे होगें नीरज ऐसा सोच रहा था । लेकिन नीरज अंदर से संतुष्ट नहीं था वह किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहता था लेकिन इस बात को लेकर उसका साथ देने वाला कोई नहीं था अंत में उसने रेशमी और माँ से मिलने के बाद वह दिल्ली आ गया।
दिल्ली आने के बाद कई महिनों तक नीरज परेशान रहता था अकेले रूम में रहना शाम के समय सड़क पर बहुतों किलोमीटर तक पैदल ही चले जाना मानों उसे किसी समाधान की तलाश में हो। नीरज अपने घर वाले से बहुत बात करता था लेकिन इस बात को लेकर कभी वह किसी से चर्चा नहीं किया था। कहते है समय हर जख़्म को भर देता समय बीतता गया नीरज अकेले रहने लगा मानों अब तो उसकी आदत सी बन गई हो वह अपने माँ से बात करता था माँ घर के सारे परेशानियाँ सुनाती थी नीरज चुपचाप सारी बातों को सुनता था। जब इंसान को कुछ खोने को नहीं बचता है तब इंसान वह कर जाता है जो कभी कोई सोचा तक भी नहीं हो नीरज के पास भी खोने के लिए कुछ भी नहीं बचा था। वह एक साल बात आई.ए.एस. का पेपर देता है पिरीलिम्स पास होता है लेकिन मेंस में फैल हो जाता है। तीन-चार महीने के बाद किसी उसके मित्र से पता चलता है कि रेशमी तमिलनाडू के किसी मेडिकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. कर रही है नीरज को जानकर यह खुशी होता है पर वह कभी उससे संपर्क करने की कोई कोशिश नहीं करता है । दो साल बाद नीरज फिर आई.ए.एस. का पेपर देता है इस बार वह पास हो जाता है और वह आई .पी.एस. बन जाता है। उसे आई.पी.एस. में बिहार कैडर मिलता है। चार साल बाद एक मित्र के शादी फंक्शन में जाता है और वहां वह रेशमी को भी देखता है उसे देखकर ऐसा लगा मानों आचानक से समय रूक सा गया हो। एक मित्र से बात करने के बाद पता चलता है कि वह आज तक शादी नहीं की है ,नीरज की नज़र रेशमी से मिलती है पर कुछ कह नहीं पाता है।रेशमी एक सार्वजनिक हॉस्पिटल में डाक्टर है साथ ही एक नीजि हॉस्पिटल भी खोल रखी हैं जिसमें गरीब लोगों को मुक्त में इलाज करती है। और जिस शहर में उसका हॉस्पिटल है नीरज उसी शहर का आज ई.पी.एस. है।