अनोखा बदला - भाग ७ ( आखरी )
अनोखा बदला - भाग ७ ( आखरी )
अगले दिन सुधीर जब उठा तो बहुत खुश नजर आ रहा था। बदले का भूत तो उसका पहले से ही उतर चूका था और अब वो कुछ ऐसा करना चाहता था जिससे कि वो उन पाँचों लोगों की मदद कर सके और उनसे दोस्ती कर सके। उसे लग रहा था कि वो उन लोगों की बुराई को अपनी अच्छाई से मारेगा ना की बदले की बुराई से। उस दिन इतवार का दिन था। वो सीधा दिनेश के घर चल गया उस का हाल चाल पूछने। दिनेश को अच्छा तो नहीं लगा पर उसकी मम्मी ने सुधीर को बैठा लिया। दिनेश की मम्मी उससे पूछने लगी कि पढ़ाई कैसी चल रही है तो सुधीर बोला कि अच्छी चल रही है। दिनेश की मम्मी ने कहा कि दिनेश को तो अच्छी तरह समझ ही नहीं आता तो सुधीर बोला कि मैं दिनेश के साथ पढ़ लिया करूंगा इसकी मदद भी कर दूंगा और मुझे भी कंपनी मिल जाएगी। दिनेश की मम्मी को ये बात अच्छी लगी और वो दोनों साथ साथ पढ़ने लगे। धीरे धीरे दिनेश को भी लगने लगा की सुधीर के साथ पढ़ने में उसे काफी फायदा मिल रहा है तो वो भी उसके साथ रहने और पढ़ने में अच्छा महसूस करने लगा। धीरे धीरे वो अच्छे दोस्त बन गए।
जब बाकी लोगों को इसके बारे में पता चला तो उनके माँ बाप ने उन्हें भी दिनेश के घर साथ पढ़ने के लिए भेजना शुरू कर दिया। शुरू शुरू में उनको थोड़ा संकोच हुआ पर जब सब को लगा कि इकट्ठे पढ़ने में उन सब का फायदा है तो वो भी सुधीर के अच्छे दोस्त बन गए। अब सब एक दुसरे के घर भी आने जाने लगे। पी एम टी का पेपर भी नजदीक आ रहा था इसलिए अब वो सारा दिन पढ़ाई में ही लगे रहते थे। उन पाँचों को सुधीर से बहुत फायदा हो रहा था। सुधीर को भी लग रहा था कि वो उन सब के साथ रहकर ज्यादा अच्छी तैयारी कर पा रहा है। वो पांचों लोग भी दिल के अच्छे थे बस उन्हें कोई समझाने वाला चाहिए था जो कि उन्हें सुधीर के रूप में मिल गया था।
जब पी एम टी का रिजल्ट आया तो उन सब की अच्छी रैंक आई थी। सुधीर तो पूरी डिस्ट्रिक्ट में फर्स्ट आया था। वो फूले नहीं समां रहा था। उसके माँ बाप भी बहुत खुश थे। बाकी पाँचों लोग भी बहुत खुश थे। वो और उनके माता पिता इस सब का श्रेय सुधीर को ही दे रहे थे। कोचिंग सेंटर वालों ने भी सुधीर को एक लाख का स्कालरशिप दिया। एक ही गांव से छह बच्चों का मेडिकल में सिलेक्शन होना गांव के लिए भी बहुत बड़ी बात थी। सुधीर की फोटो हर अखबार में छपी और कुछ अख़बार वाले तो सुधीर का इंटरव्यू भी लेने आये। सुधीर को इस सब पर विश्वास नहीं हो रहा था।
टीनू के पापा ने सुधीर को सम्मानित करने के लिए एक जलसे का प्रबंध भी कर दिया और उसमें शहर से एक मंत्री को भी बुला लिया। आस पास के गांव के लोग भी उस जलसे में शामिल हुए। मंत्री जी ने जब सुधीर के गले में मैडल डाला तो उसकी आँखों में आंसू आ गए। सुधीर देख रहा था की उसके पाँचों दोस्त भी ख़ुशी से तालियां बजा रहे हैं। तभी उसकी नजर अपने माता पिता पर पड़ी जो गांव के बड़े बड़े सम्मानित लोगों के बीच स्टेज पर सोफे पर बैठे थे। उन्हें भी अपने बेटे सुधीर के ऊपर गर्व महसूस हो रहा था। अपने माता पिता को इतना खुश देखकर सुधीर भी गर्व महसूस कर रहा था। उसके मन की प्रसन्नता उसकी आँखों में झलक रही थी।
सुधीर की आँखों के आगे शुरू से आखिर तक की तस्वीरें चल रहीं थी कि कैसे वो पहले बदले की आग में जल रहा था और जब उसने बदले की जगह प्यार को अपनाया तो सब कुछ ही बदल गया। उसे अब समझ आ चूका था कि दुनिया में हर चीज का हल सिर्फ प्यार ही है।
