अन्नदाता
अन्नदाता
"अरे रमुआ ! ई बार की को वोट दई हो ?"
खेत की मेड़ पर पेड़ की छाँव तले लगभग झूलती हुई सी टूटी हुई चारपाई पर पसरे हुए जमींदार ने हुक्के का धुआँ आसमान में छोड़ते हुए पूछा "माई बाप ! हमार वोट तो अन्नदाता को ही जई है।" बिना रुके खेत मे कस्सी चलाते-चलाते रमुआ ने जवाब दिया।
जमींदार का पारा सातवें आसमान पर था, "साले नमक हराम, ईका मतबल तू हमें वोट नाही देईबे।"
