अंकों को नहीं संस्कार देखिए
अंकों को नहीं संस्कार देखिए
आज स्कूल में बुलाया था पीहू की टीचर ने, उन्हें शिकायत थी पीहू के नंबर कम आए थे।
"मालती जी ध्यान दीजिए प्रतियोगिता का दौर है बच्ची पीछे रह जाएगी" टीचर ने कहा था।
"माँ! एक मिनट" पीहू की आवाज़ से मालती की तन्द्रा टूटी "अरे कहाँ बेटा ?"
पीहू दौड़ते हुए गई और सड़क किनारे मंदिर के पास प्यासे बैठे वृद्ध दंपति को अपनी बोतल से पानी दे रही थी
और वो नम आंखो से दुआएँ दे रहे थे, गैर धर्म वालों को किसी ने पानी देना भी मुनासिब ना समझा था।
मालती की आँखों में खुशी और गर्व था, टीचर को दिखाना चाहती थी देखो भारी बस्ते के बोझ तले भले ही मेरी बेटी के नंबर कम होंगे, पर वास्तविक संसार में बिना भेदभाव किए कोमल हृदय और प्राणियों में सद्भाव रखते हुए उसके संस्कार पूरे नंबर पाते हैं। प्रतियोगिता की दौड़ में इंसान बनने में अव्वल रहेगी।
हम इस भौतिकता वादी दुनिया में बहुत आगे बढ़ सकते हैं पर साथ साथ एक सामाजिक प्राणी होने का दायित्व भी निभाते चलना है। लोक व्यवहारों की जानकारी हो, बड़ो को सम्मान, छोटे को प्यार, जरूरतमंद की मदद ये सभी बातें हमें समाज में रहने के काबिल बनाती है।