अनजान फरिश्ते
अनजान फरिश्ते
सुमन के दो बेटे थे, एक डेढ़ साल का और दूसरा तीन साल का। पति के नाइट ड्यूटी पर चले जाने के बाद, वह शाम को अपने बच्चों को घुमाने के लिए पास के ही पार्क में चली जाती थी। आज भी वह पार्क आई हुई थी। अंधेरा होने लगा था। पास में ही छोटा सा बाजार भी था। उसने सोचा कि बाज़ार से एक दो सामान खरीदती हुई चलती हूं। उसने सामान खरीदा और घर की ओर लौटने लगी।
उसी समय भयंकर तूफान सा आने लगा और बरसात होने लगी। वह जल्दी-जल्दी अपने घर की ओर कदम बढ़ाने लगी। छोटा बेटा चिंकू उसकी गोदी में था और बड़ा बेटा रिंकू उसका हाथ पकड़कर चल रहा था। रिंकू पूरी कोशिश करने के पश्चात भी छोटे-छोटे कदमों से ज्यादा तेज नहीं चल पा रहा था। भीषण बारिश होने लगी और पानी धीरे धीरे भरने लगा। पानी रिंकू के घुटनों तक जा पहुंचा। अब वह चलने में असमर्थ हो रहा था। दोनों बेटों को गोदी में उठा कर चलना सुमन के बस के बाहर था।बारिश के थमने तक, एक पेड़ के नीचे खड़ा होना ही उसने उचित समझा। पर बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। जलभराव बढ़ता जा रहा था। उसे ऐसा लगने लगा कि कुछ देर में बहने या डूबने की नौबत आ जाएगी।
अंधेरा गहरा गया था। तभी दो लड़के वहां से गुजर रहे थे। सुमन को ऐसी अवस्था मेंं देख उन्होंने पूछा "क्या आपको मदद चाहिए ? आपका घर कहां पर है, हम आपकेेेेेेेे साथ चलकर आपके बच्चों को घर तक पहुंचा देंगे"। सुमन के पास कोई चारा नहीं था। उसने उनको अपने घर का पता बता दिया। वे लड़के बोले "ठीक है, हम बच्चों को घर तक पहुंचा देंगे, क्योंकि बारिश तो अभी घंटों नहीं रुकने वाली और बच्चे भी बारिश में भीग कर बीमार पड़ जाएंगे। हम इन्हें गोदी में लेकर भाग कर चलते हैं। आप पीछे-पीछे आ जाइए।
इससे पहले कि सुमन कुछ कह पाती, एक लड़के ने चिंकू को सुमन की गोदी से ले लिया और दूसरे ने रिंकू को अपनी गोदी में उठा लिया और दोनों हवा की रफ्तार से भागने लगे। पानी भरने की वजह से सुमन से ठीक से भागा भी नहीं जा रहा था। सुमन को अच्छा लगा कि उसकी कोई सहायता कर रहा है। पर तभी अनायास ही कुछ अशुभ होने की आशंका से उसका ह्रदय कांप उठा। उसने सोचा इन दोनों लड़कों को मैं जानती तक नहीं। अगर ये दोनों लड़के मेरे बेटे को लेकर कहीं भाग गए तो मेरा क्या होगा। ये सोचते ही उसके दिल की धड़कन मानो बंद सी होने लगी और वह बदहवास सी चीखने लगी "सुनो....रुको...रुको...सुनो..मेरे बच्चों को छोड़ दो..सुनो"। पर बिजली कड़कने और बारिश की रिमझिम के बीच उसकी आवाज बस अपने ही कानों तक पहुंच रही थी। वह अपने आप को कोसने रही थी।
एक-एक कदम पर मानो उसका दिल बैठा जा रहा था और वह भगवान से प्रार्थना करने लगी कि उसके बच्चों की रक्षा करे। आखिरकार वह अपने घर तक पहुंच गई। वे दोनों लड़के वहीं उसके बेटों को लेकर खड़े हुए थे। उसने उन्हें देखकर राहत की सांस ली और घर का दरवाजा खोला। दोनों लड़कों ने अंदर आकर रिंकू और चिंकू को सोफे पर बिठा दिया। वे दोनों लड़के भी बारिश में पूरी तरह भीग चुके थे और कांप रहे थे। पर सुमन उन डरावने खयालों से इतनी भयभीत हो चुकी थी कि वह अपने दोनों बच्चों से जाते ही लिपट गई और उन लड़कों को बैठने तक को नहीं कहा। वे दोनों यह कहकर " अच्छा दीदी, जल्दी से अपने और इनके कपड़े बदल लीजिए, नहीं तो सर्दी लगकर तबीयत खराब हो जाएगी", चले गए।
जल्दी से सुमन ने बच्चों के शरीर को तोलिये से पोंछ कर सुखाया और सूखे कपड़े पहना दिए। उसके बाद अपने कपड़े बदलकर वह चाय बनाने के लिए रसोई में आ गई क्योंकि ठंड के मारे उसका शरीर कांप रहा था। तभी उसको उन दोनों लड़कों की याद आई जो एक फरिश्ता बनकर आज उसके सामने आए थे। परंतु अपने बच्चों को खोने के डर के खयाल की वजह से उसने उनकी कुछ मेहमान नवाजी करना तो दूर, उन्हें एक "धन्यवाद" शब्द भी नहीं बोला था। यहां तक कि उनका नाम तक नहीं पूछा था।
वह मन ही मन सोचने लगी कि आए दिन होने वाले हादसों और दुर्घटनाओं की वजह से एक आदमी का दूसरे आदमी पर विश्वास करना, आज के जमाने में कितना कठिन हो गया है। आज किसी अजनबी पर विश्वास करने से पहले हजार बार सोचना पड़ता है। अगर इस स्वार्थी और मतलबी दुनिया में कोई भला मानसआपकी मदद करता है तो भीआप यह सोचने लग जाते हो कि कहीं इसमें उसका कोई स्वार्थ तो नहीं है या कहीं ये मुझे धोखा तो नहीं दे रहा।
चाय बन चुकी थी। इन्हीं विचारों में खोई हुई सुमन बड़े ही बेमन से
चाय का प्याला उठाकर अपने दोनों बेटों के पास आकर बैठ गई।