अंधा इश्क़
अंधा इश्क़
कहते हैं हर क्यूँ का
जवाब नहीं होता
पर सच ये नहीं है
उस क्यों में ही
हर सवाल का जवाब होता है।
बस उन जवाबों पर
हमें विश्वास नहीं होता
बस यूँ ही बैठे-बैठे अक्सर
मैं खुद से ही पूछ लेती हूँ
और खुद को ही बता देती हूँ।
मैं खुद से ही रूठ जाती हूँ
और खुद को ही मना लेती हूँ
उसका होना एक छल था
न होना भी छल है।
वो खुद एक
अनसुलझी पहेली
और झूठ का दलदल है
उस झूठ में ढकेला
मुझे सच दिखाकर।
साथ चलना चाहा
गलत को सही समझाकर
कभी हँसा करते थे
सुनकर प्यार अंधा होता है
लेकिन अब जान लिया कि
इश्क़ में भी धंधा होता है।