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Dinesh Dubey

Tragedy

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Dinesh Dubey

Tragedy

अनाथ

अनाथ

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सावित्री के पति चंदन को अभी स्वर्गवासी हुए ,15 दिन ही हुए थे,।

पति का बनाया हुआ एक दो मंजिला मकान गांव में था,और करीब दस एकड़ जमीन थी ,जिस पर उसके पति खेती बाड़ी करवाते थे,।

सभी रिश्तेदार जाने लगे थे ,जो सिर्फ खाना पूर्ति करने आए थे,कुछ के थोड़े बहुत आसूं निकले थे तो कुछ के वो भी नही,।

यहां तक जब शव यात्रा निकलने का समय हुआ था तो कुछ लोग चाय सिगरेट में लगे हुए थें,।

खैर जैसे तैसे चिता की अग्नि ठंडी भी नही हुई थी की उनके दोनो बेटे में किसी बात को लेकर बहुत कहा सुनी हो गई ,उन्होंने यह भी नही सोचा की घर का माहौल क्या है ,और नाते रिश्तेदार भी आए हैं।

दोनो ही अपने मरे हुए बाप और जिंदा मां को खूब महिमा मंडित कर रहे थे। एक दूजे को मां की गलियां दे दे कर ।

कहने को तो दोनो ही शहर में अपने अपने फील्ड में महारत हासिल किए हुए थे।

पर फिजूल खर्ची ने बड़े बेटे को हमेशा ही कर्ज में रखा था तो छोटे में इतनी लालच थी की वह सब कुछ पा लेना चाहता था।

बड़ा बेटा चाहता था की तेरहवीं के बाद गांव की जगह जमीन बेच दिया जाए ताकि उसके कर्जे चूक जाएं और गांव में मकान रहने देंगे ,जब मन करे आते जाते रहेंगे।

छोटा चाहता था की बड़ा भाई अपने कर्जे चुकाने के पैसे उस से ले कर पूरी जगह उसके नाम कर दे।

इसी बात को लेकर झगड़ा भी हुआ था ,पर दोनो समाज के सामने उस बात को अभी कह नहीं सकते थे ,तो यह कह दिया की बड़ा चाहता है की बाबूजी की अस्थियां हरिद्वार में विसर्जित करें और छोटे का कहना है,लोग बनारस आते हैं और ये बनारस से हरिद्वार जायेंगे।

खैर जैसे तैसे तेरहवीं निपटा ,तब तक दोनो भाइयों और उनकी पत्नियों की आपस में बात चीत बंद थी।

सावित्री बेटों का हाल देख बहुत दुखी हुई ,।

सोलहवे दिन छोटा बेटा सुबह सुबह मां के पास आया और कहने लगा,"मां तुम मेरे साथ मुंबई चलो वहां तुम आराम से रहोगी ,बहु की हाथ का बना बनाया खाना खाया अपने पोते पोतियों के साथ खेलते भी रहना,।

यह बात जैसे ही बड़े बेटे को पता चली तो वह मां के पास दौड़ गया,और उनके चरण दबाते हुए कहा ,"मां अब तो हमे सेवा का मौका दे अब तुझे मैं एक दिन भी यहां अकेले नहीं रखूंगा, तुझे अपने साथ दिल्ली ले चलता हूं, तू हमारे साथ रहेगी ।

यह बात छोटी बहु ने सुन लिया और तुरंत ही बिफर पड़ी,"अरे वाह जेठ जी बहुत खूब अब मां की सेवा करने की याद आ रही बाबूजी बीमार थे एक बार भी देखने नही आए थे , हम तो दो दो बार आकर देख गए थे ,कुछ पैसे भी दिए थे।

सावित्री आश्चर्य चकित थी की आज दोनो ही बेटे उसे इतना चाहने लगे की दोनो ही उसे साथ ले जाने के लिए पगलाए हुए हैं।

तब तक बड़ी बहू यह सुन आ जाती है और मोर्चा सम्हालते हुए कहती है ,"अरे दस हजार रूपल्ली देकर दुनिया को गाकर सुना रही हो ,अभी का खर्चा तो अधिकतर हमने किया वो नही दिखाई दिया ,? अभी भी तो तुमने पचास हजार हाथ में रख कर कह दिए थे की भईया इस से अधिक नही कर पाऊंगा। दो लाख खर्च हुए सबमें ,।

तब तक छोटा बेटा भी सा जाता है ,वह जगत कहता है,"क्या भाभी एक लाख साठ हजार ही खर्च हुए तीस हजार ही तो कम दिया है ,वैसे पिताजी ने तुम्हारी पढ़ाई में भी मुझसे ज्यादा खर्च किया था तुम्हे इंजीनियर बनाया ,और मुझे तो वकालत भी बड़ी मुश्किल से करवाया था।

यह सुन सावित्री कहती हैं,"भाई तुम दोनो लड़ो मत ,मैं किसी के साथ नही जाऊंगी, मैं यहीं रहूंगी तुम लोगो को जब इच्छा करे आना न करे तो मत आना , मैं यहां अपने पति के यादों के सहारे रहूंगी यहां रहकर मुझे ऐसा लगेगा की मैं अपने पति के साथ हूं।

बड़ा बेटा कहता है,*"मां तुझे जो अच्छा लगे कर मैं हर महीने एक दो दिन के लिए आ जाया करूंगा,।

छोटा कहता है ,"नही मैं तो मां को अपने साथ ले जाऊंगा ,इसे यहां अकेले नहीं छोड़ सकता ,।

यह सुन उसकी भाभी कहती है,*"सीधे सीधे ये क्यों नहीं कहते मां जी को मुंबई ले जाकर पूरी प्रॉपर्टी अपने नाम करवा कर मां का गला दबा दोगे,।

यह सुनते ही सभी शॉक्ड रह जाते हैं,।

तभी छोटी बहु कहती है,"हे भगवान देखा मां जी इसकी नियत कितनी गंदी है, अपनी बात मेरे ऊपर डाल रही जिसकी जो बात पेट में रहती है वह जुबान पर आ ही जाती है ,। इंजीनियर साहब पर बहुत कर्ज हो गया है ,तो ये तुम्हे साथ ले जाकर सारी जगह बिकवा कर अपना कर्ज चुकता करना चाहते हैं।

सावित्री कहती है,""मै तुम दोनो को जानती हूं, तुम दोनो ये भूल जाओ की मैं अपने जीते जी यहां का एक टुकड़ा भी बेचूंगी या किसी के नाम करूंगी , हां तुम दोनो मेरे बेटे होने के नाते जब इच्छा हो आना और जाना उसके लिए कोई मनाही नहीं है, तुम्हे तो इतनी भी शर्म नही थी की पिता की आग भी ठंडी नही हुई थी और तुम दोनो जगह के लिए लड़ने लगे थे, मुझे अपने कोख पर शर्म आ रही है जो तुम जैसे बच्चो को जन्म दिया ,।

इतना कह कर मां अपने कमरे में चली गई,।

छोटी बहु कहती है ,"ये बुढ़िया नागिन बन कर बैठी रहेगी ,चलो हम आज ही यहां से निकल चलते हैं।

बड़ी बहू कहती है ,"बुढ़िया छाती पर बांधकर जायेगी ,अपने बच्चो का ही हक खाने पे तुली है। चलो जी मैने पहले ही कहा था इतना खर्चा मत करो पर तुम्हारा दिमाग ही ठीक रहता तो इतने कर्जे होते।

शाम होते होते पूरा घर खाली हो जाता है ,सावित्री सुनी आंखो से घर को निहार रही थी फिर पति के फोटो को देख रही थी ,बहुओं ने जाते जाते खाना तक इनके लिए नही छोड़ा था ,।

उसी समय पड़ोस की बच्ची एक थाली में खाना लाते हुए कहती है ,"दादी मां ने आपके लिए खाना भेजा है ,।

वह खाने को देखती है ,और अपनी आंखो के आसू पोंछे और कहा ,"ला बिटिया आज बहुत भूख नही लगी थी पर तूने इतने प्यार से लाया है तो मना नहीं कर सकती ,।

वह पहला निवाला तोड़ती है तो फूट फूट कर तो पड़ती है ,आज वह पूर्ण रूप से अनाथ जो हुई थी।

 



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