अमर प्रेम
अमर प्रेम
पार्टी पूरे शबाब पर थी। हो भी क्यों न ! किसी ऐरे गैरे की बर्थडे पार्टी थोड़े न थी ! शहर के सबसे खास होटल में आज मिसेज़ कुमार के पचहत्तरवें जन्मदिवस का भव्य आयोजन था। मि. एंड मिसेज कुमार इस छोटे से कस्बे के जाने-माने लोगों में गिने जाते हैं। उनके दोनों बच्चे महानगर में उच्च पदों पर अधिकारी हैं, जिनकी शान और रूतबा के क्या कहने !
बच्चों ने गुपचुप सब कुछ प्लान कर लिया था और अचानक आज सुबह दोनों अपने अपने परिवार के साथ उपस्थित हो गए। घर में कोई तैयारी नहीं थी। पोते पोतियों को देख प्यार उमड़ रहा था। मि. कुमार तो एकदम से सकते में आ गए कि कैसे क्या मँगवाऊँ, कहाँ बिठाऊँ, क्या खिलाऊँ पर मिसेज कुमार अब इन सभी उलझनों से मुक्ति पा चुकी हैैं। गृहस्थ जीवन के पूर्वार्ध में इतना मानसिक दबाव उठाया कि अब उन्हें सबकुछ भूल कर बस उस पल को जीना आ गया है .........अल्जाइमर के शुरुआती लक्षण प्रकट होने लगे थे।
सबसे मिलना जुलना हो गया, फिर एक बारगी पोते को देख इशारे से बुलाकर पूछताछ करने लग गई, "विनय के बेटे हो ? विनय भी आया है ? अरे वाह लेकिन कैसे आ गया, कुछ खास बात है क्या ?"
बेटे एक दूसरे को देख फीकी मुस्कान देकर रह गए। शाम में माँ को दोनों बहुओं ने लेटेस्ट साड़ी, गहनों से सुसज्जित किया और पार्टी में पहुँच गए सभी। आज पत्नी को यूँ सजा सँवरा देख मि. कुमार का युवा दिल एक बार फिर जोर-जोर से धड़कने लगा। सच, उनकी ऋचा आज भी वैसी की वैसी ही दिखती है। अब ये उनकी नजरों का असर है या प्रेम का कमाल है, पता नहीं पर ऐसा सोचने मात्र से मन गुलाबी हो गया।
बच्चों के लिए माता पिता के प्रति अपनी कृतज्ञता दिखाने का सुनहरा मौका था, पता नहीं फिर ऐसा पल आए कि ना।
"पापा, है न खूब बढ़िया इंतजाम ? आप खुश हैं न।"
"हाँ बेटे, सब बढ़िया है लेकिन देखो तुम्हारी मम्मी ज्यादा परेशान न हो।"
"मम्मी तो कितनी खुश हैं। बच्चों सा एन्जॉय कर रही हैं ,अपना जन्मदिन। देखिए......."
"वो तो है लेकिन भीड़भाड़ में अब वो घबड़ा जाती हैं।" पत्नी के लिए चिंता और उसकी सलामती की फिक्र बढ़ गई और मि. कुमार की नजरें पूरे समय पत्नी पर ही केंद्रित रहीं। एक उम्र के बाद प्यार का रूप बदल जाता है, वह और परिपक्व होकर पके फल की तरह मीठा हो जाता है। मि.कुमार की आँखों में देखेंं तो प्रेम का यह पावन रूप सहज ही प्रस्फुटित हो रहा था। बीमारी के कारण मिसेज कुमार बहुत कुछ भूलने लगी थी, पर अभी तक अपने सबसे प्रिय सखा के प्रति उनका समर्पण धूमिल नहीं हुआ था । जीने के लिए और क्या चाहिए !
पार्टी शुरू हो गई। सभी मस्ती में डूब गए। बस एक तरफ रह गए मि. एंड मिसेज कुमार। मि. कुमार ने पत्नी का हाथ थामा और धीरे से कहा, "बेहद खूबसूरत लग रही हो। मैं तो घायल हो गया।" मिसेज कुमार का चेहरा गुलाबी हो गया पर अगले ही पल शोरगुल ने चिढ़कर उन्होंने शिकायत की,
" ये सब इतना शोरगुल क्यों मचा रहे हैं, मुझे बेचैनी हो रही है। और देखो सबने मुझे क्या-क्या पहना दिया है। अब भला उम्र है इसकी ? मैंं बहुत अनकॉम्फोर्टेबल फील कर रही हूँ। अब चलें यहाँ से ?"
"अरे, ऋचा ये तुम्हारे बर्थडे की पार्टी चल रही है, बच्चे आए हुए हैं खासतौर पर इसे मनाने, ऐसे कैसे बीच में चल दें।"
"अच्छा... मेरा जन्मदिन है, तो लाओ मेरा गिफ्ट। तुम हर बार की तरह इस बार भी भूल गए क्या ?"
मि. कुमार ने झट से एक गुलाब का फूल निकाला और थमा दिया, ये तो वहीं पुरानी वाली ऋचा है....भोली भाली, थोड़ी जिद्दी, मगर प्यारी सी ,कमसिन। उम्र तो बस एक संख्या है जिसके बढ़ने से उनके प्यार पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। अंतर है तो बस ये कि अब समय हाथ से फिसलता प्रतीत हो रहा। जवानी के दिनों में ऐसा कभी नहीं लगा। आज सभी हैं लेकिन ना जाने क्यों लग रहा कि भीड़ में सिर्फ वे दोनों पति पत्नी साथ-साथ हैं। और यहीं बलवती इच्छा हो रही है कि समय थम जाए और वे अपने इस भरपूर प्यार को ताला लगाकर बंद कर दें, फिर चाबी को कहीं दूर बहुत दूर फेंक आए जो खोलने के लिए कभी नहीं मिले और उनका ये प्रेम, ये साथ, ये समर्पण हमेशा हमेशा के लिए अमर हो जाए।