छेद

छेद

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"अच्छा, अच्छा मम्मी ! फोन रखती हूँ। तुम मुझे प्लीज फालतू की एडवाइज मत दो।"

"अरे, सुन तो बेटा.....हैलो..हैलो !"

"लो देख लो, आपकी साहबजादी ने फोन ही काट दिया। अब ऐसा भी क्या बोल दिया मैंने। ठीक है करती रहो सबकी फरमाइशें पूरी। बेवकूफ लड़की !"

"ठीक ही तो किया उसने। तुमसे उसने कुछ सलाह माँगी थी, जो तुम कूद पड़ी ?"

"अरे वाह, ऐसे कैसे कुछ भी ना समझाऊँ उसे ! उसकी सास कुछ भी अनाप-शनाप डिमांड करे और ये बुद्धु की तरह उसे पूरी करे। यही अस्तित्व रह गया है मौसमी का ?"

"अब तुमसे कौन जिरह करे। अच्छा है मौसमी ने ही संभाल लिया। मेरी समझदार बेटी।"

"हाँ.... हाँ...तुम्हें तो मेरी ही गलती दिखेगी न। पता है, उसकी सास ने कहा है हरी मिर्च का अचार घर में ही बना लो। बाजार में अच्छे नहीं मिलते। अब मेरी बच्ची का एक यही काम रह गया है ? अरे, भई पहले ये सब सुविधा नहीं थी, हम घर में बनाते थे। अब जब सब कुछ रेडीमेड उपलब्ध है तो ये सब बकवास क्यों ? अब ऑफिस भी जाए और घर आकर ये आदम जमाने के काम भी करे।"

"अच्छा अब समझा, मिर्ची कहाँ लगी है ! पहले जो बेटी आँख मूँदकर तुम्हारे इशारे पर चलती थी, आज किसी और का कहा मान रही है। हा..हा..हा सब समझ गया। अरे भागवान, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि हमारी पढ़ी लिखी आधुनिक सोच रखने वाली बिटिया अपनी नई गृहस्थी और नए संबंधों में घुल मिल रही है और इस बात को तुम जितनी जल्दी समझ जाओ, वही अच्छा है। उसने आज शुरु में ही तुमसे ऐसा कहकर अपनी गृहस्थी रूपी चादर के छोटे से छेद को बंद कर दिया। नहीं तो तुम समय-समय पर अपनी सलाह से उसे नवाजती जो उसकी नई-नई शादीशुदा जिंदगी को प्रभावित करता। कपड़े में बने छेद को जितना जल्दी सिल दो अच्छा है, नहीं तो बड़ा होकर वो कपड़े को ही बर्बाद कर देता है !"


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