बेटियाँ अनमोल होती हैं
बेटियाँ अनमोल होती हैं
नैना आई है ,ससुराल से ? वाह, खूब आराम करके जाना बिटिया। कल आकर खूब अच्छी मालिश करती हूँ ,देखना ससुराल की सारी थकान भाग जाएगी। जीजी कल ग्यारह बजे आती हूँ नैना बेटी से मिलने।" नैना की माँ ने भी खुशी-खुशी सुखिया चाची की बात स्वीकार कर ली।
नैना दो दिन पहले ही अपने मायके(गाँव) आई है। सबसे मिलने- जुलने में दिन कैसे निकल रहा है, पता ही नहीं चल रहा। इन सब मिलने वालों में नन्हकू चाचा की बीवी सुखिया चाची सबसे अव्वल हैं। पचास पचपन साल की चाची अपने सभी बच्चों की शादी ब्याह से निबट चुकी हैं। दोनों पति-पत्नी दिन भर खेतों में काम करते है और चाची बीच-बीच में समय निकाल कर अपना पसंदीदा काम कर लेती हैं... मतलब कुछेक घरों में जाकर चावल-गेहूँ बीनना, साफ-सफाई में हाथ बँटाना या औरतों की तेल मालिश करना। ये सब तो बस एक बहाना है ,असली काम तो होता है सारे जहाँ की बातें करना। गाँव में किसी भी घर में पूजा-पाठ, शादी -ब्याह, छट्ठी-छीला हो सुखिया चाची को सबसे पहले बुलावा जाता। या यूँ कहा जाए कि वो खुद ही आ जाती क्योंकि उनका ऐसा मानना था कि अपने लोग न्यौता के लिए बैठे रहेंगे क्या भला ! उनके आने भर की देर रहती, आते के साथ घर की मालकिन के सिर से कामों की सारी जिम्मेदारी ले लेती ..." जीजी ,आप बस काम बता दो मुझे, मैं हूँ ना। सब सँभाल लूँगी।"
घर की बेटी यानि नैना के आने से उनकी ख़ुशी देखते बन रही थी। उसे देखते उनका चेहरा खिल उठा। वो हँँस- हँस कर माँ से बोलने लगीं "बेटियाँ बड़े भाग्य से आती हैं। उन्हें मायके से कुछ नहीं चाहिए वे तो सिर्फ इसकी सलामती की दुआ माँगती है ,तो भला क्यों न खुश हुआ जाएं!" नैना जितने दिन वहाँ रही जाड़े की खिली धूप में हर दिन बारह बजे के आसपास चाची आ जातीं, अपनी बातों का पिटारा और तेल की कटोरी के साथ। तेल से सने उनके हाथ नैना के हाथों और पैरों पर फिसलते हैंं और जुबान फिसलती अड़ोसी पड़ोसी, नाते रिश्तेदारों की चटपटी मसालेदार कहानियों पर। उनकी कहानी कहने की कला इतनी उम्दा है कि बरबस ध्यान खिंचा चला जाता है। बड़े-बड़े स्टोरीटेलर भी फेल हैं उनकी कला के सामने !
एक दिन उनके साथ चार-पाँच साल की एक प्यारी सी बच्ची भी आई थी। इसके पहले उनका पिटारा खुले नैना ने ही उनसे उस बच्ची के बारे में पूछना शुरू कर दिया।
" चाची, ये छोटी बच्ची कौन है ?"
उसने बताया कि ये कावेरी है, उनकी पोती , मंझले बेटे की बेटी। लेकिन अब से वहीं उसकी माँ हैं सो, बच्ची उनके ही साथ रहती हैं।
बात समझ से परे थी। एक ही गाँव में माँ-बाप भी हैं लेकिन बच्ची अपने दादा-दादी यानि नन्हकू चाचा, चाची के साथ रहती है। जब उसने उनकी पूरी कहानी सुनी, सुखिया और नन्हकू जैसे अनपढ़ दंपती के प्रति मन श्रृद्धा से नतमस्तक हो गया।
आए दिन लड़का-लड़की में भेदभाव की बातें सुनने को मिलती हैं। परन्तु नैना ने आज तक इसे नज़दीक से कभी नहीं महसूस किया था। बचपन से लाड़ली पोती, लाड़ली बेटी और प्यारी बहन के रूप में पली-बढ़ी थी ,ससुराल में भी बेटा- बेटी का फर्क नहीं देखा। लेकिन आज भी समाज में ये भेदभाव कितनी गहराई तक फैला हुआ है, उसने बहुत करीब से महसूस किया। चंदन नन्हकू चाचा का मँझला बेटा है। वो भी चाचा की ही तरह गाँव में खेतों में काम करता है। कम उम्र में शादी और अशिक्षा के कारण अब वो पाँच बेटी और एक बेटे का बाप है। पहली चार संतानें तो लड़की हुईं ,बुझे मन से ही सही लेकिन अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रहा था। पाँचवीं बार सबकी निगाहें टिकी थी कि भगवान इस बार रहम करे और एक पुत्र रत्न दे दे। ईश्वर की अद्भुत लीला....इस बार जुड़वाँ बच्चे हुए ,एक बेटा और एक बेटी। बेटे का चेहरा देखते चंदन की पत्नी ने उसे सीने से लगा लिया और अभागी कावेरी से मुँह फेर लिया। चंदन और सुखिया चाची ने उससे कितनी आरजू-विनती की, चाची ने तो गालियाँ तक दे डालीं, पर उस माँ की ममता नहीं पिघली। वो किसी भी कीमत पर बेटी को दूध नहीं पिलाना चाहती थी कि वो उसके बेटे का हिस्सा है। वो बच्ची को पालने के लिए कतई तैयार न थी। उसने उसे मरने के लिए छोड़ दिया। दब्बू चंदन पत्नी के हठ के आगे मौन था। तब सुखिया चाची ने आगे बढ़कर कावेरी को अपने कलेजे से लगा लिया। " अभागों, तुमने भगवान के दिए बच्चे को ठुकराया है। बहुत पाप लगेगा। मैं इस फूल सी बच्ची को मरने नहीं दूँगी। जैसे इतने बच्चों को पाला है एक और सही। बेटियाँ अनमोल होती है, आज तुम्हें इनका मोल नहीं पता चल रहा। ईश्वर तुम्हें सद्बुद्धि दें और हम सब पर कृपा दृष्टि बनाए रखें। तू जा अपने बेटे को संभाल, अब से मैं और तुम्हारे बाबा ही इसके माँ-बा और तब से कावेरी नन्हकू चाचा-चाची के साथ है। दोनों उसे बेहद मानते हैं, वो भी उनका खूब मन लगाती है। अनपढ़ होकर भी चाचा ,चाची बेटी को इतना प्यार करते हैं, ये उनकी उन्नत सोच को दर्शाता है। स्पष्ट तौर पर शिक्षा हमारे बौद्धिक स्तर को बढ़ाती है पर समाज में नन्हकू चाचा और सुखिया चाची जैसे पिछड़ी जाति और अनपढ़ लोग भी हैं जिनकी सोच अनेक सुशिक्षित लोगों से आगे है और ये हमारे लिए एक अच्छा सबक है ....
