Atul Aakrosh

Tragedy Inspirational

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Atul Aakrosh

Tragedy Inspirational

अम्मा की वो सोने की कमरबंद

अम्मा की वो सोने की कमरबंद

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गाँव में पंडित रामलखन और उनके परिवार की बड़ी इज्जत थी। चार भाइयों में सबसे बड़े रामलखन ने शहर में सरकारी नौकरी करके न सिर्फ अपना परिवार पाला बल्कि अपने भाइयों को भी सक्षम बनाया था।


गांव में आज उनके बड़े से पक्के मकान के बाहर सारे गांव वाले इकट्ठा थे, क्यों कि कल रात अचानक कई महीनों से बीमार 'अम्मा' चल बसीं थीं। रामलखन की पत्नी को पूरा गांव 'अम्मा' कहता था, और कहे भी क्यों न..आखिर वो सबका ख्याल एक माँ की तरह ही तो रखती थीं। दरअसल जब राम लखन शहर में नौकरी कर रहे थे तब 'अम्मा' ही तो थीं जो खेत खलिहान, जानवर और घर का ख्याल रखती थीं।


खेत पर काम करने वाले मजदूर हों या गांव के लोग सब अम्मा को उनके स्वभाव की वजह से बहुत चाहते थे और सम्मान करते थे। आज सब रो रहे थे।


इधर गाँव के लोग चढ़ते दिन को देखकर अम्मा के अंतिम संस्कार को लेकर चिंतित थे लेकिन घर के सदस्य न जाने क्या मामला लेकर घर के अंदर अम्मा के कमरे से बाहर नहीं आ रहे थे।


अम्मा के दो बेटे अपनी पत्नियों के साथ शहर से आ गए हैं और तीनों बेटियां भी..फिर अब काहे की देर है चाचा..?

जब नहीं रहा गया तो कल्लू ने अम्मा के देवर बद्री चाचा से पूछ ही लिया..

बद्री चाचा को खुद नहीं पता था कि आखिर हो क्या रहा है..?


बाहर घाट जाने की सारी व्यवस्था हो गयी थी, ट्रैक्टर भी आ गया था फिर काहे नहीं निकल रहे ये लोग..?

सूरज चढ़ता जा रहा था और गांव वाले खुसुर फुसुर करने लगे तो बद्री चाचा खुद ही अंदर गये, वो दरवाजे पर पहुंचे ही थे कि उन्हें अंदर से बहस की आवाज सुनाई दी तो उन्होंने दरवाजा खटखटा कर कहा कि 'दिन चढ़ रहा है, काहे देर कर रहे हो तुम लोग..?


दरवाजे पर खटखट की आवाज पर अम्मा के छोटे लड़के ने दरवाजा खोला और उसके चेहरे पर दुख के बजाय नाराजगी देखकर बद्री चाचा समझ गए कि दोनों बेटे और बहु में कुछ खटपट जरूर हुई है। लेकिन दिन चढ़ रहा था तो वो बोले कि 'बेटा जो भी बात है बाद में बैठकर सुलझा लेना..पहले 'अम्मा' का अंतिम संस्कार कर दो..मुर्दा को घर में रखना अच्छा नहीं होता..


ये सुनकर अम्मा का बड़ा बेटा बोला 'ठीक है चाचा, पहले इसी काम को निपटा लेते हैं..इतना कहते हुये वो अपनी पत्नी को इशारा करके गुस्से में ही कमरे से बाहर निकल गया..


बद्री चाचा ने जिंदगी के 81 बसन्त देखे थे और दुनियादारी की समझ रखते थे तो वो समझ गए कि आखिर माजरा क्या है..?

एक घण्टे बाद 'अम्मा' का अंतिम संस्कार हो गया..घाट पर क्रिया कर्म के दौरान गांव के लोगों ने इस बात को नोटिस किया कि बेटों की आंख में आँसू नहीं है और दोनों ऐसा व्यवहार कर रहे थे एक दूसरे से जैसे भाई नहीं बल्कि पट्टीदार हों..वहां घर से अम्मा की लाश लेकर आते समय भी बेटों और बहुओं की आंख में न आँसू थे और न ही चेहरे पर कोई दुःख, बेटियों के चेहरे पर भी दुख कम नाराजगी ज्यादा दिख रही थी..आखिर माजरा क्या है..?

सब बस कयास ही लगा रहे थे..


अम्मा के अंतिम संस्कार के बाद सब गाँव लौट आये..घाट से आये अभी कुछ घण्टे ही हुए थे कि घर के अंदर से बेटों और बड़ीबहु की तेज आवाज ने बद्री चाचा ही नहीं बल्कि दुःखी मन से बाहर बैठे बाकी परिवारीजनों का ध्यान खींचा लिया..सब लोग इकट्ठा होकर घर के अंदर गये की आखिर हुआ क्या..


अंदर बेटे और बहुएं आपस में लड़ रहे थे और एक दूसरे को उल्टा सीधा बोल रहे थे..

उनकी लड़ाई देखकर कुछ रिश्तेदार बोले 'अम्मा को गए अभी कुछ घंटे भी नहीं हुए कि देखो कैसे लड़ रहे हैं ये लोग', एक बोले 'बेशर्म हैं ये लोग'..

वहां जितने मुंह, उतनी बातें थीं..कुछ रिश्तेदारों ने बहस शांत कराने की कोशिश भी की, पर सब बेकार..


आखिर में बद्री चाचा आये और तेज आवाज में चिल्ला पड़े..तो सब शान्त हो गए..

चाचा ने दोनों बेटों और बहुओं को हड़काकर कहा उस 'सोने की कमरबन्द' ले लिए लड़ रहे हो..?

बद्री चाचा के मुंह से सोने की कमरबन्द सुनकर दोनों बेटे और बहुऐं चौंक पड़ी..

छोटे बेटे ने पूछा कि चाचा आप जानते हैं अम्मा की उस 'सोने की कमरबन्द' के बारे में..?

बद्री चाचा ने ठंढी आह भरते हुआ कहा 'हां जानता हूँ, भौजी की उस 'सोने की कमरबन्द' के बारे में और भैया ने उस दिन उस 'सोने की कमरबन्द' को मुझे देते हुए जो कहा था वो भी याद है..

अब ये जानकर की अम्मा की सोने की कमरबन्द बद्री चाचा के पास है..दोनों बेटे और बहू बद्री चाचा को शक की निगाह से देखने लगे..बद्री चाचा कुछ कहते उससे पहले ही छोटी बहू ने कहा कि चाचा वह कमरबन्द अम्मा की है जिस पर हम लोगों का अधिकार है..


अधिकार की बात सुनकर बद्री चाचा का चेहरा तमतमा उठा और वो गुस्से से बोले 'अधिकार, किस अधिकार की बात कर रहे हो तुम लोग..?

अरे तुमने तो इस घर की हर ईंट से अपना अधिकार उस दिन ही खो दिया था, जब तुमने बीमार भैया को शहर में दिखाने के बजाये यहीं के अस्पताल में सिर्फ इसलिए भर्ती करवा दिया था ताकि तुम लोगों को उन्हें अपने साथ न ले जाना पड़े..जिस दिन भैया मरे थे, वो सोने की कमरबन्द भी उसी दिन उनके साथ चली गयी..

ये सुनकर अम्मा का बड़ा बेटा तेज आवाज में बोला 'कहां चली गयी कमरबंद..?

आप देना नहीं चाहते तो साफ साफ कहिये..

दोनों बेटे और बहु का चेहरा बता रहा था कि उनका कितना बड़ा नुकसान हो रहा है क्यों कि आज के समय में उस पुराने जमाने की 'सोने की कमरबन्द' की कीमत लाखों में है..


बद्री चाचा मुस्कुराते हुए बोले..मेरे पास होती तो जरूर दे देता..वो तो उसी दिन धर्मपाल सुनार के यहां गिरवी रखवा दी थी भैया ने जिस दिन तुम दोनों ने उनसे ऊंची आवाज में बात करते हुए, अपने व्यापार के लिए रुपयों को वापस करने से मुकर गए थे..


अरे तुम जैसी निकम्मी औलादें हों तो माता-पिता को थोड़ा झूठ तो बोलना ही पड़ता है..तुम दोनों कुछ कमाते धमाते तो नहीं थे..बस हर बार भैया और भौजी की सरलता को बेवकूफी समझ कर लूटा है तुमने अपने माता-पिता को..अचानक व्यापार करने का चस्का चढ़ा तुम लोगों को, भैया तो जानते ही थे कि तुम लोग नालायक हो लेकिन भौजी की जिद के चलते भैया को ये मकान गिरवी रखकर तुम लोगों को पैसा देना पड़ा था..और जब कर्ज चुकाने की बारी आई तुम दोनों ने कैसे बेशर्मों की तरह उनसे लड़ाई की थी और कर्ज चुकाने से ये कह कर मना कर दिया था कि 'आपने लिया है तो आप जानें'..

उस दिन के लगे सदमे से भैया उबर नहीं पाए और मरणासन्न पर ही आ गए थे..शायद भैया समझ चुके थे कि जो बच्चे अपने बाप के न हुए भला वो अपनी सीधी साधी अनपढ़ माँ के कैसे होंगे और इसीलिए भैया ने उसी सुनार के यहां भौजी की 'सोने की कमरबन्द' भी गिरवी रखवा दी इस शर्त के साथ ही जब तक भौजी जिंदा हैं तब तक वो इस मकान में ही रहेंगी और उनके जाने के बाद ये मकान और वो सोने की कमरबन्द उस सुनार की होगी..

भैया ने मुझसे और तुम्हारी अम्मा से वचन लिया था कि ये बात हम किसी को नहीं बताएंगे..कम से कम सोने की कमरबन्द के लालच में ही सही, तुम लोग उनकी थोड़ी सेवा तो करोगे ही..और वही हुआ भी..

पूरी जिंदगी तुम लोग भैया और भौजी को पैसों की खान समझते रहे और वो दोनों बेचारे ये सोचते रहे कि 'एक न एक दिन ऐसा भी आएगा जब उनके बच्चों को उनकी कद्र होगी..पर अफसोस ऐसा कुछ नहीं हुआ..


'पिता जी ने हमारे साथ इतना बड़ा धोखा किया'..दोनों बेटों के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला..और बहुएं माथा पकड़ कर बैठ गईं..

बद्री चाचा हंसते हुए बोले 'धोखेबाजों के साथ धोखा करना गलत नहीं होता। उस 'सोने की कमरबन्द' के लालच में ही तो तुम लोगों ने अपनी अम्मा की सेवा की है, वरना तुम लोग तो इतने बिजी थे की किसी तीज त्योहार पर भी तुमने कभी अम्मा की सुध नहीं ली..और भैया ने मरने से पहले ही अपनी पत्नी का स्वाभिमान जिंदा रख लिया वरना वो बेचारी तो कब की सड़क पर आ जाती।


दोनों बेटे और बहु अभी भी लाखों रुपये कीमत की उस 'सोने की कमरबन्द' के सदमे से बाहर नहीं निकल पाए..


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