ऐसा भी होता है
ऐसा भी होता है
दिवाली की रात में बड़े दीए में, मैं मौली वाली बत्ती बनाकर जलाती हूँ ताकि रातभर अच्छे से जलती रहे।
जैसे ही आरती करने के लिए चीजें इकट्ठी की तो देखा मौली नहीं थी। सोचा चलो जा कर ले आती हूँ। फिर मैं अपने पास ही छोटी मार्केट में चली गई। वहीं से मैं हमेशा सब्जी खरीदती हूँ तो सोचा जब आई हूँ तो कुछ सब्जी ले लेती हूँ।
मौली खरीद, वहाँ जाकर जल्दी से सब्जी ली और देखा सब्जीवाला आज अकेला था। उसकी वाइफ और बच्चे नहीं थे। मैंने उससे पूछा, 'बच्चे कहाँ है ?' उसने कहा, 'घर गए।
मैंने 100 रुपये निकाले और कहा कि भैया मेरी तरफ से उनके लिए कुछ लेकर जाना। मैं हैरान रह गई उसने मुझसे पैसे नहीं लिए, बोला, 'बच्चे तो गाँव गए मैं लेकर क्या करूँगा !'
नमन उसकी खुद्दारी पर ।आजकल हाल ऐसा है कि साल भर ठीक से काम न करने वाला भी दीपावली पर बक्शीश की कामना करता है।