अहं
अहं
पिछले 6 महीने से करुणा से मेरी बातचीत न के बराबर है।उसने मां से भी बातचीत बंद कर रखी है।तनाव बढ़ता जा रहा है।उसकी एक ही समस्या है- माँ के साथ नहीं रहना चाहती।वैसे माँ उसके आफिस जाने के बाद पीछे से राघव का पूरा ख्याल रखती है।माँ से अलग होने की मैं कल्पना भी नहीं कर सकता।पापा के जाने के बाद हम भाई बहनों को जिन मुश्किलों के साथ माँ ने पाला,भूल नहीं सकता।सबसे छोटा होने की वजह से मेरा माँ से लगाव ज़्यादा है।लेकिन करुणा के प्रति अपने कर्तव्यों का भी मैंने पूरी तरह निर्वाह किया है। पर जाने क्यों नियति ने मुझे ऐसे धर्मसंकट में डाल दिया है।न माँ के बिना जी सकता हूँ न करूणा और राघव के बिना।और करुणा की भी एक ही रट है माँ के साथ नहीं रहेगी।कितनी बार पूछा, समझाया, किन्तु वही रट! माँ को कितना समझाया है कि कुछ न कहे लेकिन माँ है न! गलती पर टोक ही देती है।बात बिगड़ती जा रही है।पिछले 2 महीने से करुणा मौन साधे है।उसके पिता आये थे।वो सब कह गए जो नहीं कहना चाहिए था। माँ को भी, न जाने क्या क्या ।तब से घर के वातावरण में एक ख़ौफ़नाक सी चुप्पी पसरी है।मेरा अहं भी मुझ पर हावी हो गया है।बस अब और नहीं।माँ को कहीं नहीं भेजूंगा।करुणा जो निर्णय लेना चाहें ले ले। करुणा के चचेरे भाई की शादी है।राघव को ले कर चली गयी है एक हफ्ते के लिए।न माँ के पाँव छुए न कुछ कहा।4 दिन में खाली घर काटने को दौड़ रहा है।करुणा ज़िद्दी है।मैं ही अहं त्याग देता हूँ।तीन चार बार फ़ोन मिलाया।नो रिप्लाई।नींद नही आ रही थी।सोचा फिर कोशिश करता हूँ।इस बार फ़ोन उठाया।उधर से ठंडी सी आवाज़ आयी-"क्या है?"
"कुछ नहीं...बस वैसे ही!राघव कैसा है?मुझे याद तो नहीं कर रहा?"
"नही, बच्चों के साथ बिजी है"।
"शादी कब है?"
"तुम्हें क्या लेना? तुम करो मां की सेवा।"
"नहीं, वो..वो माँ ही कह रही थी कि बेटी की इज़्ज़त दामाद के साथ दुगुनी हो जाती है।अगर तुम शादी की डेट बता दो तो मैं भी पहुंच जाऊं।"
"तुम रहने दो। ये इज़्ज़त विज़्ज़त पुरानी बातें हैं।मैंने सबको बोल दिया है कि तुम बाहर गए हो।अच्छा, मुझे नींद आ रही है।"करुणा ने फ़ोन काट दिया।
"समझती क्या है अपने आपको?उसे मेरी ज़रूरत नहीं तो मुझे भी नहीं है!"
मेरा अहं फिर से मुझ पर हावी होने लगा था।
सुबह के छः बजे थे।फोन बजे जा रहा था।ओहो, सुबह सुबह किसका फोन है! देखा तो करुणा कालिंग....। नहीं उठाया मैंने।उसने कई बार कोशिश की।नहीं उठाया मैंने। क्यों उठाऊं? आखिर मेरी भी सेल्फ रिस्पेक्ट है!
सात बजे फिर फ़ोन आया।खीज कर मैंने उठा लिया।
"क्या है?"-ठंडी सी आवाज़ में मैंने पूछा।
"परसों है शादी।मन करे तो आ जाना।वैसे राघव भी बार बार पूछ रहा है।मैं भी तंग आ गयी रिश्तेदारों को जवाब देते देते।लेकिन हाँ, तुम्हे ठीक लगे तो ही आना, मेरी तरफ से ज़बरदस्ती नहीं...तुमने पूछा, मैंने बात दिया। ओके !"( फ़ोन डिसकनेक्ट)
मैं उछल कर बिस्तर से खड़ा हो गया।तैयारी जो करनी थी जाने की!!