Anwar Ansari

Romance Fantasy

3.9  

Anwar Ansari

Romance Fantasy

अधूरा प्यार

अधूरा प्यार

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बस अभी कुछ दिन पहले ही तो उस लड़की ने मेरी कविता को अच्छा कहा था और फिर हमने एक दूसरे से मैसेज पर बात करनी शुरू की थी और फिर मैंने कहा था यार आपकी आवाज़ बड़ी प्यारी होगी तो उसने बोला नहीं, आपसे कम, मैंने कहा मेरी आवाज़ आपने कब…? तो बोली सुनी है बस।

जब कि मैं जानता था मेरी आवाज़ बहुत बेकार है। मगर वो बोलती नहीं, तुम्हारी आवाज़ बहुत प्यारी है मेरे लिए और किसी से मुझे क्या लेना। और फिर जब मैंने उसकी आवाज़ के बारे में बोला तो वो खुद से बोल उठी -- सुनकर ही तय कर लेना। मैंने बोला कैसे…? तो उसने मुझे अपना नम्बर भेज दिया। शायद वो भी इंतजार में थी कि कब मैं नम्बर तक बात लाऊं और फिर बस मैंने उसे कॉल की और वाकई उसकी आवाज़ बेहद प्यारी थी।

फिर हम यूँ ही बातें करने लगे। उसे मैंने अपने बहुत से सच बताये थे। उसने मुझे अपने बहुत से सच बताये थे और हाँ! उसने कहा था--- तुम मुझे इस मोबाइल के जमाने मे खत लिखना और मैंने भी हाँ कर दी थी। मगर फिर भेज न पाया था। मगर आज सोचता हूँ--- काश ! भेज दिया होता।

वैसे बड़ी नादान थी वो और बहुत प्यारी भी और सबसे अच्छी बात वो मुझसे तो बहुत ज्यादा प्यारा लिखती थी। मगर कभी इस बात को मानती नहीं थी। हमेशा बोलती थी -- नहीं, तुम बहुत अच्छा लिखते हो, तुम्हारे हर अल्फ़ाज़ में दर्द है गहराई है और मैं भी अड़ा रहता-- नहीं, तुम अच्छा लिखती हो तुम्हारे हर अल्फ़ाज़ में प्रेम का सागर है, बस यूं ही चलता रहता न वो मानती न मैं। और खैर झगड़ा तो हमारा होता ही न था बस वो मुझसे नाराज़ हो जाया करती थी। वो भी मेरे ही लिए, मैं जब भी कभी सिगरेट पी लिया करता तो वो बोलती मत पिया करो और मैं मजाक में बोलता की कहीं तुम सिगरेट छुड़ा कर चरस तो नही पीलाना चाहती हो फिर वो यह बात सुनकर नाराज़ हो जाती मगर सच बोलूं तो वो नाराज़गी में भी बड़ी प्यारी लगती और फिर कुछ देर बाद मुझसे कहती कि तुम्हें कुछ नहीं कहना, क्या तुम्हें माफ़ी नही मांगनी…? मैं मना कर देता तो वो बोलती तुम लड़के ऐसे क्यों होते हो कि जब कोई तुम्हारी परवाह करे तो तुम उसकी कदर क्यों नहीं करते? और मैं कहता सबका तो पता नहीं मगर मैं सिर्फ अपनी ही सुनता हूँ तो वो फिर गुस्सा हो जाती, तो मैं उससे कहता तुम चली जाओगी तो मेरे साथ बात कौन करेगा..? मेरी ये बेकार से कविताएं कौन सुनेगा..? और हाँ! मेरे साथ लूडो कौन खेलेगा (जो अक्सर हम ऑनलाइन खेल लिया करते थे) और वो कहती खुद को सुना लेना, अकेले खेल लेना। 

 मैं हँसता और जैसे ही ये बोलता अच्छा बाबा, माफ़ कर दो अब नही पियूँगा वो झट से मान जाती। सच में बहुत प्यारी थी वो और सबसे अच्छी बात वो मुझे और मेरी परेशानियों को समझती थी।

और मैंने तो उससे ये झुठ कहा की मुझे नींद में कुछ भी बोलने की आदत है, अपने दिल की बात बोल भी दी थी। खैर बाद में उसे बता दिया था, कि वो सच था मैं सच में तुमसे प्यार करने लगा हूँ। और जब मैं उससे उसके ख्याल पूछता तो वो कहती खुद ही समझ लो, आँखे पढ़ लो और मैं समझ लेता (मगर शायद गलत समझ लिया था) और फिर मैं बार-बार पूछता तो कहती यार सही वक़्त आने पर और मैं कहता सही वक़्त कभी नहीं आता बस फिर यूं ही एक सुबह जब मैं उठा तो उसने कुछ मैसेज किये हुए थे, मगर बाद में उसने उनको डिलीट कर दिया था तो मैं पढ़ नहीं पाया, फिर मैंने पूछा क्या था ये, तो तब भी वो मेरी फ़िक्र करती हुई बोली नहीं बाद में बताऊंगी, अभी तुम्हारा 5 दिन बाद पेपर है, तुम उसको दे आओ अच्छे से खैर मैं समझ तो गया था मगर फिर जानना चाहता था तो उससे पूछ ही लिया और उसने कहा--

बस ये समझ लो अब मैं तुम्हारी नहीं हो पाऊँगी

अब तुमसे मैं कभी मोहब्बत न कर पाऊँगी

मैं मुस्कुराया और बोला--

कोई बात नहीं खुश रहनाा

और बस रुक गया उसी जगह और वो चले गए आगे किसी और तलाश में।

शायद यही मोहब्बत होती है कि आप प्यार करे सिर्फ प्यार मगर इसे पाने की ज़िद नहीं …..

खैर वो थी बहुत प्यारी।


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