अब मैं रोज स्कुल जाता था P-1
अब मैं रोज स्कुल जाता था P-1
इस बात का पता मुझे तब चला जब उसने मुझसे मेरी किताब मांगी (जैसे की कई फिल्मों में देखा जाता है ) मानो मुझे लगा मैं कि हां अब मेरी फिल्म चालू हो चुकी है।
अब मैं हर रोज स्कुल जाता था। हम हर रोज हम किताबों के जरिये मिला और बात किया करते थे । न जाने क्या बात थी जो मुझे उससे दूर नहीं जाने देती थी । उसका मुझे यूँ उसकी सहेलियों के बीच बैठ के देखना उसका सीधा साधा पन मुझे हर रोज सुबह उठ कर तैयार हो जाने को मजबूर कर देता था । उसका यूँ दो चुटिया बनना मुझे काफी पसन्द था ।
मेरी क़िताब भी उसको ही सिर्फ ढूंढा करती थी मानो जैसे उसे भी आदत हो गई हो । कई बार तो उसके सेक्शन के लोग भी मुझे ताका झांकी करते देख लेते थे । उसका सेक्शन बिलकुल मेरे सेक्शन के सामने ही था तभी तो उसने मुझे जाना ।
काफी समय हम सिर्फ किताबों के जरिये ही बात किया करते थे। उसका पहला सवाल मेरी हिस्ट्री बुक के कवर पेज पर मोटे मोटे अक्षरों में (आपका नाम क्या है मानो उसने पता ही न किया हो) मैने भी अपना नाम लिख कर फिर से वही बुक उसको दे दी।
मगर ऐसा किताबों के फेर बदल करने से कहाँ ज्यादा बात हो पाती थी हर रोज कुछ पूछ कर फिर से अगले दिन का इंतज़ार करना मुश्किल होता जा रहा था ।
अब मैं रोज स्कुल जाता था ..

