अब मैं रोज स्कूल जाता था
अब मैं रोज स्कूल जाता था
मेरे पास बातें इतनी थी की मैं हर रोज उससे बहुत बातें कर सकता था ( हम सब की आदत होती है की अपनी कॉपी के आखरी पन्नों पे वो बातें लिखें जो हम किसी को कहना चाहते हैं पर कह नहीं पाते या फिर उसको (As an reminder use करते हैं) ये कॉपी वही थी ) जो मुझे सुना करती थी और याद भी रखती थी।
मैं हर रोज पीछे लिखता था मैं लिखता था वो बातें जो मैं उससे करना चाहता था ऐसा मेरा करना ज़रुरी था क्योंकि मैं ये नहीं चाहता था की जब हम मिले तो मेरी बातें ख़त्म हो जाए और हम सिर्फ चुप चाप बैठे रहें।
मैं चाहता ही नहीं था की स्कूल में कभी छुट्टी की घंटी बजे, मैं नए नए तरीके अपनाता था। ताकि एक बार उससे मेरी बात हो जाए पर ना जाने क्यों मैं फैल हो जाता था। मैं एक दम पागल था उसके पीछे कहीं न कहीं मुझे ऐसा भी लगता था वो भी मुझसे बात करना चाहती है क्योंकि ये सब उसने ही शुरू किया था।
अब मैंने फैसला कर लिया था की अब मुझे उससे बात करनी ही चाहिए क्योंकि यही एक तरीका था जो मुझे थोड़ी सी तसल्ली दे सकता था। मुझे मेरी दोस्त को ये ये सब कुछ जो इतने दिनों से चल रहा था बताना पड़ा क्योंकि वो ही थी जो उसको जानती थी और उसके घर के पास रहती थी और मुझे लगता था की यही से शुरुआत करना अच्छा और आसान भी होगा। मेरी दोस्त जो मुझे अच्छे से समझती थी उससे मैं हर रोज उसके बारे में पूछता रहता।
अब मैं रोज स्कूल जाता था....

